: १५२ : आत्मधर्म २४८१: चैत्र :
मानस्तंभ – प्रतिष्ठानो
अ धन्य महत्सव!
परम प्रभावक पूज्य गुरुदेवना पुनित प्रतापे तीर्थधाम सोनगढमां त्रेसठ फूट ऊंचो भव्य मानस्तंभ
थयो, अने बे वर्ष पहेलांं, भव्य महोत्सवपूर्वक चैत्र सुद दसमे तेमां सीमंधर भगवाननी प्रतिष्ठा थई. प्रतिष्ठा
महोत्सवनी वर्षगांठ प्रसंगे ए मंगळ महोत्सवनी ऊर्मिओ ताजी थाय छे.
आ मानस्तंभनी भव्यता नीखरतां भक्तजनोने अति आनंद थाय छे अने अंतरमां एवी ऊर्मि जागे
छे के अहो! जाणे महाविदेहना ज मानस्तंभना दर्शन थयां! अने वळी आकाशमां ऊंचे ऊंचे बिराजमान
सीमंधर भगवानने नीरखतां, महाविदेहमां विचरी रहेला सीमंधर भगवानने ज नीरखवा जेवो संतोष थाय
छे. आवा आ पावन मानस्तंभनी छायामां आवतां ज शांत....शांत लहरीओथी हृदय अत्यंत विश्रांति पामे छे.
मानस्तंभ माटे अनेक भक्तजनोना अंतरमां घणां वर्षोथी जे भावना घोळाया करती हती ते आखरे
सफळ थई. हजारो भक्तजनोए महान उल्लासथी ए मानस्तंभनो महोत्सव ऊजव्यो. अहो! ए दिवसोमां
नगरीनी शोभा, भगवान नेमीनाथ प्रभुनो गर्भकल्याणक अने पछी जन्म; भव्य गजयात्रा अने जन्माभिषेक,
पारणाझूलन अने राजसभा, जान अने पशुओनो पोकार, भगवाननो वैराग्य अने राजीमतीनी भावना,
आम्रवनमां दीक्षाकल्याणक ने त्यां गुरुदेवना प्रवचनमां वैराग्यनी धून, भगवानना आहारदाननो
अद्भुतप्रसंग, ने गुरुदेवना सुहस्ते अंकन्यास विधान, केवळज्ञान कल्याणक अने समवसरण–भक्ति,
निर्वाणधाम गीरनारजीनुं द्रश्य, छेवटे मानस्तंभमां उपर–नीचे चतुर्दिश सीमंधर भगवाननी प्रतिष्ठा अने
अंतिम भव्य रथयात्रा;–आ बधाय मंगल प्रसंगोनी हारमाळा नजर समक्ष तरवरतां आजे य भक्तिना
उमळकाथी हृदयमां हर्ष थाय छे. खरेखर–
“कल्याणकाळ प्रत्यक्ष प्रभुको लखें जे सुरनर घने
तिह समयकी आनंद महिमा कहत कयों मुखसों बने?”
प्रतिष्ठा पछी मंच द्वारा ए ऊंचा ऊंचा मानस्तंभनी यात्रा करतां पण भक्तोने आनंद थतो
हतो....उपरना शांत–शांत वातावरणमां ज्यारे पू. गुरुदेव भक्ति गवडावता त्यारे चारे कोर भक्तोनां हृदय
थंभी जतां हतां.
भारतमां अनेक स्थळोए मानस्तंभो छे; परंतु सौराष्ट्रमां तो अत्यारे आ एक ज मानस्तंभ छे.
गुरुदेवना अद्भुत प्रभावे स्थपाएल आ धर्मस्तंभ, जैनधर्मवैभवना जयगान दशे दिशामां प्रसरावी रह्यो छे.
जेनां दर्शन थतां ज भक्तिथी नम्रीभूत थईने हृदय पोकारी ऊठे छे के अहो! धन्य ए जिनेन्द्रवैभव!! धन्य ए
मानस्तंभ! धन्य ए महोत्सव!!