आम समजे तो विकल्प तरफनुं जोर तूटी जाय अने चैतन्यस्वभाव तरफनुं जोर प्रगटे, एटले
विकल्पथी छूटीने चैतन्यस्वभावमां ज्ञाननुं जोडाण थाय.–एनुं नाम धर्म छे. भाई! परमां तारी
चिंता निरर्थक छे, तारी चिंता प्रमाणे परनुं कार्य थतुं नथी. शरीर–लक्ष्मी वगेरेने केम साचववा–तेनी
घणी चिंता करे, छतां तारी चिंताने आधीन ते वस्तु रहेती नथी. तेमज ते चिंता वडे आत्माना
स्वभावनी श्रद्धा–ज्ञान–एकाग्रता पण थती नथी. अचिंत्य आत्मस्वभाव छे, ते मनना जोडाणथी
पार छे. मनना अवलंबनथी पण छूटुं पडीने जे ज्ञान अंर्तस्वभावमां वळे ते ज्ञानथी ज शुद्ध
चैतन्यस्वरूप आत्मानुं स्वसंवेदन थाय छे.
पाम्यो नथी. अनंतवार शुभभाव करीने स्वर्गमां गयो पण आत्मज्ञान वगर त्यां पण शांति न
पाम्यो. तीव्र पापभाव करीने नरकमां पण अनंतवार गयो. आवो मनुष्य अवतार पण अनंतवार
जीव पामी चूक्यो छे. परंतु पाप तेमज पुण्य बंनेथी पार मारुं चैतन्यतत्त्व शुं छे–ते कदी सत्समागमे
लक्षमां लीधुं नथी. धर्मना बहाने कांईक पुण्य परिणाम कर्यां त्यां मने धर्म थयो–एम अज्ञानीए
भ्रमणाथी मान्युं छे, पण धर्मनुं वास्तविक स्वरूप जाण्युं नथी. अरे! जड शरीरनी हालवाचालवानी
क्रिया थाय त्यां ते क्रिया में करी अने तेनाथी मने धर्म थयो–एम अज्ञानी माने छे ते तो मोटी
भ्रमणा छे, तेने तो हजी देहथी भिन्न पोताना परिणामनी पण खबर नथी. अहीं कहे छे के आत्मा
देहनी क्रियाथी तो पार छे, वचनथी पण अगोचर छे अने मनना विकल्पोथी पण ते अचिंत्य छे.
देह–मन–वाणीथी पार आत्मा ज्ञानानंद स्वरूप छे, तेना परमार्थ स्वरूपने स्वानुभवज्ञानथी जाण्या
विना कदी जीवने धर्म थाय नहि. बहारमां हीरा–माणेक, वस्त्र वगेरे चीज लेवा जाय त्यां तेनी
परीक्षा करे छे, अरे! बे पैसानी तावडी लेवा जाय त्यां टकोरो मारीने तेनी परीक्षा करे छे, पण
आत्मानो धर्म शुं चीज छे–तेनुं वास्तविक स्वरूप शुं छे–तेनी परीक्षा करीने कदी निर्णय कर्यो नथी;
पोतानुं वास्तविक स्वरूप शुं छे ते नक्की करवानी दरकार पण करतो नथी, अने एमने एम ऊंधी
मान्यताथी संसारमां रखडी रह्यो छे. भगवान! अनादिथी तें शुभ–अशुभ भावो तो कर्या छतां
चैतन्यस्वरूप तारा लक्षमां न आव्युं, तो ते शुभ–अशुभ भावो करतां तारा चैतन्यतत्त्वनी जात
कंईक जुदी छे–एम अंतरमां विचार करीने निर्णय कर, तो धर्म थाय अने संसारनी रखडपटीनो
अंत आवे.
आत्मामांथी नीकळती नथी, तेमज सामा सांभळनार आत्मामां कांई ते वाणी प्रवेशी जती नथी,
आ रीते वाणीथी आत्मा अगोचर छे. वाणी तरफनुं लक्ष छोडीने ज्ञानने अंतरमां वाळे तो ते
ज्ञानथी आनंदकंद आत्मा अनुभवमां आवे छे. अहो! अनुभवमां एक आत्मा सिवाय बीजा
कोईनुं अवलंबन छे ज