Atmadharma magazine - Ank 138
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: १५६ : आत्मधर्म २४८१: चैत्र :

रखडतां तेणे चारे गतिना अवतार अनंतवार कर्या छे. अज्ञानी जीव दया वगेरेना शुभ परिणाम
करीने तेने धर्म माने छे, पण एवा दयाना परिणाम करीने अनंतवार स्वर्गमां गयो छतां आत्माना
भान वगर किंचित् पण धर्म थयो नहीं ने भवभ्रमण मटयुं नहि. दया, भक्ति वगेरेना शुभ
परिणाम होय ते जुदी वात छे, धर्मीने पण दया–भक्तिना भाव होय, पण तेने अंतरमां भान वर्ते
छे के आ राग परिणाम छे ते धर्म नथी, मारुं चैतन्यतत्त्व आ रागथी भिन्न छे. आवी अंतर्दष्टिने
लीधे ज धर्मीने धर्म थाय छे; धर्मीने पण जे राग थाय छे ते कांई धर्मनुं कारण नथी.
तीर्थंकर भगवानने केवळज्ञान थतां देवो आवीने दिव्य समवसरणनी एवी अलौकिक रचना
करे छे के तेनी शोभा जोईने पोतेज आश्चर्य पामे छे के अहो! आवी अद्भुत रचना!! आ
अमारी शक्तिनुं काम नथी, भगवानना कोई अलौकिक पुण्यना प्रतापे आ रचना थई गई छे.
समवसरणमां भगवानने ईच्छा विना सहजपणे सर्वांगेथी दिव्य वाणीनो धोध छूटे छे, ने सिंह–
वाघ–हाथी–वांदरा–सर्प ने मोर वगेरे तिर्यंचो पण सौ पोतपोतानी भाषामां समजी जाय छे.
एकावतारी ईन्द्रो पण त्यां आवीने भगवाननी स्तुति करे छे; पण ते वखतेय तेनी द्रष्टि अंतरना
ज्ञानानंद स्वरूपमां पडी छे. राग थाय छे खरो, पण ते ज वखते मारुं ज्ञानानंद स्वरूप आ रागथी
पार छे–एवी अंतर्दष्टिनुं परिणमन धर्मीने वर्ते छे. मारो आत्मा देहथी पार छे, वचनथी के मनथी
ते गम्य नथी अने रागथी पण ते अगम्य छे, मात्र स्वानुभवथी ज गम्य छे. अचिंत्य आत्म
स्वभाव छे ने रागथी एटले के व्यवहारथी जणाय तेवो नथी, पण स्वसन्मुख थईने अंर्तद्रष्टि
करे तेनाथी ज आत्मा जणाय तेवो छे. व्यवहार करतां करतां निश्चय प्रगटे एम कदी बनतुं नथी,
चिदानंदस्वरूप आत्मा व्यवहारना विकल्पोथी पार छे, तेने निश्चयनयथी अंतरंगमां पकडे तो
सम्यक् दर्शन थाय छे. भाई! आवी सत्य वात लक्षमां लईने तेनो पक्ष तो कर...सत्यनो निर्णय
करीने तेनी हा तो पाड...पछी तेनुं अंर्तमंथन करतां करतां स्वसन्मुख थईने आत्मानो अनुभव
थशे. जो अंतरमां पुरुषार्थ करीने एकवार पण आवुं अपूर्व आत्मभान करे तो अल्पकाळमां जीव
मुक्ति पामे, ने पछी फरीने तेने अवतार न रहे. जीव अनादिथी पोताना वास्तविक ज्ञानस्वरूपने
भूलीने, विकारने अने देहने पोतानुं स्वरूप मानीने संसारमां रखडी रह्यो छे. कोई बीजाए तेने
रखडाव्यो नथी ने कोई बीजो तेने तारनार नथी; पोते ज भूल करी छे तेथी रखडयो छे, अने
यथार्थ समजण वडे पोते ते भूलने टाळे तो रखडवानुं मटे. आ सिवाय परनो वांक काढे तो ते
पोताना दोष टाळवानो प्रयत्न करे नहि अने तेनुं रखडवानुं मटे नहि. जेम–कोईने मोढा उपर मेल
होय ने अरीसामां तेनुं प्रतिबिंब देखाय, त्यां ते अरीसाने घसवा मांडे तो मोढा उपरनो डाघ
क्यांथी जाय? ज्यां मेल छे तेने तो जाणे नहि ने बीजे ठेकाणे उपाय करे तो मेल टळे नहि. मेल
क्यां छे ते जाणे तो तेने टाळवानो उपाय करे. तेम आत्मा पोतानी ज भूलथी संसारमां रखडे छे,
तेनी ज पर्यायमां मलिनता अने अपराध छे, तेने बदले परने कारणे रखडयो एम माने तो ते
पर सामे ज जोया करे पण पोतानी भूल टाळवानो उपाय करे नहि, एटले तेनी भूल कदी टळे
नहि ने तेनुं रखडवानुं अटके नहि. भाई! तारी भूलथी ज तुं रखडयो, ते भूल तें करी छे अने तुं
ज ते भूलने टाळ तो