Atmadharma magazine - Ank 139
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 11 of 22

background image
: वैशाख : २४८१ आत्मधर्म : १७७ :
संतो आत्माना आनंदमां लीन थाय छे.
ज्ञानानंदस्वरूप आत्माना ध्यानरूप सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते ज मोक्षनुं कारण छे, ने
तेना सिवाय बीजुं बधुंय संसारनुं कारण छे;––आम जाणीने बुद्धिमान जीव सहज
चिदानंदस्वरूपनो आश्रय करे छे. स्वभावनो आश्रय करीने एकाग्र थतां तेना अंतरमां सहज
आनंदरूपी अमृतनो दरियो ऊछळे छे, –आनंदना पूरमां आत्मा मग्न थाय छे. ते ज मोक्षनुं
कारण छे.
अहो, भगवान आत्मा अनाकुळ अकषायी शांतस्वरूप छे, आनंदनुं पूर छे–आवा आत्मानी श्रद्धा–
ज्ञानने एकाग्रता रूप ध्यान सिवाय बीजुं बधुंय घोर संसारनुं कारण छे. ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानी सन्मुखता
सिवाय जेटली रागद्वेषनी वृत्तिओ ऊठे ते बधुंय मोक्षनुं कारण नथी पण संसारनुं कारण छे. भगवान आत्मा
एक ज धर्मनुं मूळ छे, आत्माना स्वभावनो आश्रय ते ज एक मोक्षनुं मूळ छे. मुनिओने के गृहस्थोने बधायने
एक ज मोक्षमार्ग छे. गृहस्थ समकीतिने पण चैतन्यस्वभावना अवलंबने ज धर्म छे, ए सिवाय बीजा जे
शुभ–अशुभ भावो आवे ते बधाय संसारनुं कारण छे. बे भाग पाडी दीधा छे: एक तरफ मोक्षनुं मूळ ने बीजी
तरफ संसारनुं मूळ; चिदानंदस्वभाव कारणपरमात्मानो आश्रय ते मोक्षमार्ग छे, ने ए सिवायनुं बीजुं बधुंय ते
संसारनो मार्ग छे. चैतन्यना श्रद्धा–ज्ञान ने एकाग्रता सिवाय कोई पण बीजाना आश्रये जे मोक्षमार्ग माने छे
ते घोर संसारमां रखडे छे. धर्मीने भूमिका प्रमाणे अमुक राग आवे, पण ते रागने मोक्षनुं कारण मानता नथी,
रागने बंधनुं कारण ज जाणे छे.
मारा आत्मा सिवाय बहारमां क्यांय मोक्षनुं कारण नथी, एम जाणीने संतो परनो आश्रय छोडे छे ने
आनंदस्वरूप आत्मानो ज आश्रय करे छे. विकल्प तूटीने चैतन्यमां जेटली एकाग्रता तेटलुं ज मोक्षनुं कारण छे;
बाकी वच्चे ध्यान–ध्येयना भेदना विकल्प ऊठे ते पण बंधनुं ज कारण छे. व्यवहाररत्नत्रयनो शुभविकल्प ते
पण कल्पना मात्र रम्य छे; धर्मात्माने तो खरेखर पोतानो निर्मळ स्वभाव ज रम्य छे. व्यवहारनो शुभविकल्प
ते तो कल्पना मात्र रम्य छे, तो तेना आश्रये मोक्षमार्ग केम होय? न ज होय; ते तो संसारनुं ज कारण छे.
ज्ञानानंदस्वरूप आत्माना ध्यानरूप सम्यग्दर्शनज्ञान–चारित्र ते ज मोक्षनुं कारण छे, ने तेना सिवाय
बीजुं बधुं संसारनुं कारण छे;––आम जे जाणे छे ते ज जीव खरेखर बुद्धिमान छे. आ सिवाय व्यवहारना
रागने जे मोक्षनुं कारण माने छे ते कुबुद्धि छे. चिदानंद स्वभावना आश्रयरूप ध्यानने ज मुक्तिनुं कारण जाणीने
ते सम्यग्द्रष्टि–बुद्धिमान सहज परमानंदरूपी अमृतना पूरमां डूबता एवा सहज परमात्मानो एकनो आश्रय
करे छे जुओ, ज्ञायकमूर्ति आत्मानो आश्रय करीने एकाग्र थतां धर्मात्माने अंतरमां सहज आनंदरूपी अमृतनो
दरियो ऊछळे छे, आनंदना पूरमां आत्मा मग्न थई जाय छे, ने ते ज मोक्षनुं कारण छे. सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान
ने सम्यक्चारित्र ते त्रणेय अभेद स्वभावना आश्रये ज थाय छे, तेथी अभेदस्वभावना आश्रयरूप जे ध्यान ते
ज मोक्षनुं कारण छे; भेदनो आश्रय ते संसारनुं कारण छे. आ रीते आत्मध्यान सिवायनुं बीजुं बधुं घोर
संसारनुं मूळ छे–एम जाणीने संतो आत्माना आनंदमां लीन थाय छे. ‘आवो ज मोक्षमार्ग छे’ एम पहेलांं
अंतरमां बराबर निर्णय करवो जोईए, पछी एकाग्रता थाय. हजी तो निर्णयमां ज जेनी भूल होय, रागने
मोक्षनुं कारण मानता होय, तेने रागथी छूटो पाडीने स्वभावमां एकाग्रतानो उद्यम क्यांथी होय? ज्ञानानंद
स्वभावनो निर्णय करीने तेमां एकाग्रता करतां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र थाय छे, ने मिथ्यात्वादिनुं प्रतिक्रमण
थई जाय छे. आ ज धर्म अने मोक्षनुं कारण छे.
[नियमसार कळश: १२३ना प्रवचनमांथी]
वीर सं. २४८१ फागण वद १२.