वर्णन कर्युं छे, तेना उपर पू. गुरुदेवश्रीनां विशिष्ट अपूर्व प्रवचनोनो सार.
आ क्यो विषय चाले छे? जेने स्वर्गादि संयोगने प्राप्त करवानी भावना नथी पण
भगवान! आ आत्मा केवो छे ने कई रीते तेनी प्राप्ति थाय छे? ते समजावो. प्रभो! अनादिथी
नहि जाणेला एवा आत्मानुं स्वरूप जाणीने हुं तेनी प्राप्ति करुं अने संसारपरिभ्रमणनो अंत
आवीने मारी मुक्ति थाय–एवुं स्वरूप मने बतावो. ––आवी जिज्ञासावाळा शिष्यने आचार्यदेव
आत्मानुं स्वरूप अने तेनी प्राप्तिनो उपाय बतावे छे तेनुं आ वर्णन चाले छे. जो आत्माना
धर्मो वडे तेना वास्तविकस्वरूपने ओळखे तो तेमां एकाग्र थईने तेनी प्राप्ति करे अने मुक्ति
थाय. माटे जेणे संसारपरिभ्रमणथी छूटवुं होय ने आत्मानी मोक्षदशा प्राप्त करवी होय तेणे
आत्मस्वरूपने ओळखवुं जोईए.
परतंत्र थवानो तेवो धर्म छे. अस्थिरताने लीधे कर्मना उदयमां जोडातां विकार थाय, त्यां धर्मीने
पोताना चैतन्यनी ईश्वरतानुं तो भान छे अने विकार थयो तेमां कर्मने ईश्वरता आपीने कहे छे के
कर्मने आधीन विकार थाय छे. –आम जाणवुं ते ईश्वरनय छे. वस्तुनी द्रष्टिपूर्वकना आ नयो छे.
स्वभावनी मोटपनुं भान राखीने पर्यायनी नबळाईने धर्मी जाणे छे के हजी मारी पर्यायमां आटली
पराधीनता थाय छे. हुं कर्मने आधीन थईने विकार करुं छुं. ते मारो एक समयनी पर्यायनो धर्म छे.
द्रष्टिना विषयमां तो एम आवे के विकारने आत्मा करतो ज नथी, परंतु अहीं प्रमाणपूर्वकना
नयोनुं वर्णन छे, तेथी पर्यायना विकारने आत्मा पोते पराधीन थईने करे छे–एम ज्ञान कराव्युं छे.
आत्मा पोते परतंत्र थईने पर्यायमां विकार करे एवो तेनो धर्म छे, पण कर्म आ जीवने पराणे
विकार कराव