Atmadharma magazine - Ank 139
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४८१ आत्मधर्म : १७९ :
एवो धर्म तो परमां नथी ने आत्मामां पण नथी. साधकने पोतानी पर्यायमां हजी सर्वज्ञता नथी
पण साधकपणुं छे, अने साधकदशामां बाधकभाव पण साथे वर्ते छे अने ते बाधकभाव पराश्रये
थाय छे तेथी तेटली आत्मानी परतंत्रता छे–एम धर्मी जाणे छे.
(१) जो स्वाश्रय संपूर्ण थई गयो होय तो सर्वज्ञता थई जाय, ने विकार जरापण न रहे.
अने त्यां नय पण न होय.
(२) जो स्वाश्रयभाव बिलकुल न होय, एकलो पराश्रयभाव ज होय तो मिथ्याद्रष्टिपणुं
होय, तेने पण नय न होय.
(३) जेने सम्यक्श्रद्धा–ज्ञाननो स्वाश्रयभाव खील्यो छे अने हजी चारित्रमां अंशे
पराश्रयभाव पण वर्ते छे–एवा साधक जीवनी आ वात छे; ते ज्यारे पोतानी पर्यायनी
पराधीनताने जाणे त्यारे तेने ईश्वरनय होय छे. ते वखतेय साधकनी द्रष्टि तो शुद्ध स्वभाव उपर ज
पडी छे.
–क्षायक सम्यग्दर्शन थया पछी धर्मीने राग–द्वेष थाय, त्यां धर्मी तेने पोतानी पराधीनता
समजे छे, परने लीधे ते विकार थयो एम मानता नथी पण पोतानो अपराध समजे छे, पोतामां
हजी पराधीन थवानी तेटली लायकात छे–एम जाणे छे. आत्मामां आ परतंत्रता भोगववानो धर्म
त्रिकाळीस्वभावरूप नथी पण क्षणिक पर्यायने आश्रित छे.
अहीं जे धर्मोनुं वर्णन कर्युं छे तेमांथी केटलाक धर्मो त्रिकाळीस्वभावरूप छे अने केटलाक धर्मो
क्षणिकपर्यायरूप छे. केटलाक धर्मो एवा छे के जे साधकदशामां होय छे ने पछी नथी होता. आ रीते
आ धर्मो अपेक्षित छे; बधाय जीवोने आ बधाय धर्मो लागु न पडे. अहीं साधक जीव कया नयथी
केवा धर्मने जाणे छे तेनुं वर्णन छे.
धर्मी जाणे छे के मारो आत्मा शुद्धचिदानंदस्वरूप छे, राग मारो स्वभाव नथी, मारा
स्वभावने आश्रित राग थतो नथी, राग परने आश्रये थाय छे माटे ते परतंत्रता छे, अने आत्मा
पोते ते परतंत्रताने भोगवनार छे. आ रीते स्वभावनी स्वतंत्रता ने पर्यायनी अमुक परतंत्रता–
बंनेनुं ज्ञान करीने धर्मी पोताना स्वभावमां ढळतो जाय छे ने परतंत्रताने तोडतो जाय छे.
–जेम बाळक मातानी गोदमां होय त्यारे तो ज्यारे धाववुं होय त्यारे धावे–एम स्वतंत्र छे,
पण मातानी गोदमांथी नीकळीने परदेशमां गयो त्यां तो धावमातानी दुकाने अमुक वखत ज
धवरावे, एटले तेमां बाळक परतंत्रपणे धावनार छे. तेम माता एटले शुद्ध चैतन्यमूर्ति स्वभाव,
तेनी गोदमां रहे एटले के स्वभावनो आश्रय करीने तेमां लीन रहे तो ते आत्मा परतंत्र थतो नथी
पण पोताना आनंदने स्वाधीनपणे भोगवे छे. पण ज्यां स्वभावनी गोदमांथी बहार नीकळीने
परनो आश्रय कर्यो त्यां परतंत्रपणे रागादिने भोगवे छे. माटे ईश्वरनयथी आत्मा परतंत्रता
भोगवनार छे. जो स्वभावनो आश्रय करीने संपूर्ण ईश्वरता प्रगटी जाय तो परतंत्रता रहे नहि ने
त्यां ईश्वरनय लागु पडे नहि. पण हजी स्वभावनी पूर्ण ईश्वरता प्रगटी नथी ने अंशे परनो
आश्रय थाय छे तेटली पराधीनता छे, ते पराधीनतामां आत्मा पोते परने मोटप ईश्वरता आपे छे,
तेथी ईश्वरनये ते परतंत्रता भोगवनार छे. धर्मीए पोताना चैतन्यस्वभावनी ईश्वरताने जाणीने
तेनो आश्रय तो लीधो छे पण हजी पूरो आश्रय नथी लीधो तेथी कांईक पराश्रय पण थाय छे,
तेटली पोतानी पराधीनता छे. स्वतंत्र वस्तुस्वभावने जे समज्यो छे ते आ पराधीनताने पण जाणे
छे. पर्यायनी पराधीनता