खरेखर चैतन्यसामान्य वडे व्याप्त अनंतधर्मोना आधाररूप एक द्रव्य छे. भाई! तुं अंतरमां तारा
शुद्ध चैतन्यद्रव्यने जो, तेने माटे ज आ वात करी छे. हजी पर्यायमां नबळाईथी रागादि थाय छे तेथी
ईश्वरनयथी पराधीनतानुं ज्ञान कराव्युं छे, पण पराधीनता कहीने पर सामे जोवा माटे नथी कह्युं,
पण अंतरना शुद्ध चैतन्यद्रव्य तरफ वाळवा माटे कह्युं छे. पराधीनता ते तो एक क्षणिक अंश छे ने
ते ज समये आखो अंशी शुद्ध चैतन्यशक्तिपणे बिराजमान छे माटे तारा आत्माने शुद्ध चैतन्यपणे
अंतरंगमां देख, ––आवुं उपदेशनुं तात्पर्य छे.
“आत्मद्रव्य अनीश्वरनये स्वतंत्रता भोगवनार छे, –हरणने स्वच्छंदे स्वतंत्रपणे फाडी खाता
कोई ईश्वर नथी एवो स्वतंत्र आत्मा छे. जेम सिंह ते जंगलनो राजा छे, तेना माथे बीजो कोई
नथी, तेम आत्मा पोते अनंत शक्तिनो प्रभु छे, ते पोतानी प्रभुता सिवाय बीजा कोईने प्रभुता
आपे तेवो नथी. जेम जंगलमां सिंह हरणने स्वतंत्रपणे फाडी खाय छे, त्यां तेने बीजा कोईनो एवो
भय नथी के आ हरणना सगांवहालां आवीने मने मारशे! अरे! मोटा हाथीनां टोळां आवे तो
पण तेनाथी सिंह डरतो नथी तेम पोताना सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रने साधनारो आत्मा सिंह जेवो
निःशंक छे–निर्भय छे, तेने कोई कर्मनो क्षेत्रनो के प्रतिकूळ परिषहनो एवो भय नथी के आ मारी
प्रभुताने लूंटी लेशे! पोते स्वतंत्रपणे आत्माना आनंदने भोगवे छे. आत्मानो स्वभाव एवो
स्वतंत्र अनीश्वर छे के ते बीजा कोईने ईश्वरता आपतो नथी. आत्मानी स्वतंत्रतानो प्रताप
अखंडित छे.
आत्मानुं वर्णन कर्युं छे तेमां आ अनीश्वरनयथी आत्मानी स्वतंत्रतानुं वर्णन करीने आत्मानी
प्रभुता बतावी छे. स्वतंत्रताथी शोभितपणुं ते प्रभुतानुं लक्षण छे. पण अज्ञानीना अंतरमां
पोतानी प्रभुता बेसती नथी ने पराश्रयनी मांगणबुद्धि छूटती नथी. एक भिखारणने मोटा राजाए
पोतानी राणी बनावीने बंगलामां राखी, पण तेनी मांगवानी टेव न गई; एटले खावाना वखते
गोखलामां भोजन मूकीने, गोखला पासे भीख मागे के ‘देजो माबाप! कांई वध्युं होय तो! ’ ––
एम भीख मांगीने पछी खाय. तेम अज्ञानी जीव भगवानना समवसरणरूपी बंगले गयो ने
भगवाने तेने तेनी प्रभुता बतावीने कह्युं के हे आत्मा! तारी प्रभुता तारी पासे छे, माटे पराश्रयथी
लाभ थाय–एवी मांगणबुद्धि छोड! पण ते अज्ञानीने आत्मानी स्वाधीनप्रभुता रुचती नथी ने
परथी मने लाभ थाय–व्यवहारना आश्रयथी