आत्मानी प्रभुता समजावे छे के हे भाई! तुं स्वतंत्रता भोगवनार छो, तुं पोते ज पोतानो प्रभु
छो, तारा आत्मानो धणी बीजो कोई नथी, तारा आत्मामां कर्मनी ईश्वरता तो नथी अने तीर्थंकर
भगवाननी प्रभुता पण खरेखर तारा आत्मामां नथी. तेमनी प्रभुता तेमनामां, ने तारी प्रभुता
तारामां.
परतंत्रताने जाणती वखते पण स्वभावनी स्वतंत्र प्रभुतानुं भान धर्मीने भेगुं ज छे. पर्यायना
ज्ञान वखते पण स्वभावनी प्रभुतानी द्रष्टि धर्मीने छूटती नथी, ने पर्यायबुद्धि थती नथी.
स्वभावनी प्रभुताने अज्ञानी जाणतो नथी, एटले पर्यायने जाणतां तेने एकली पर्यायबुद्धि थई
जाय छे, –पर्याय जेटलो ज आखे आत्मा ते माने छे, तेथी तेने नय के प्रमाण होतां नथी.
अनीश्वरनयथी जुओ, के प्रमाणथी जुओ, पण अंतरंगद्रष्टिमां आत्मा शुद्धचैतन्यस्वरूप ज देखाय
छे. ईश्वरनयथी पराधीन पर्यायने जाणती वखते पण धर्मीनी द्रष्टिमां ते पराधीनतानी प्रधानता
थई जती नथी, तेनी द्रष्टिमां तो शुद्धचैतन्यस्वरूपे ज आत्मा प्रकाशे छे. आत्माना धर्मो अनंत छे
पण आत्मा तो एक ज छे, आवा आत्माने प्रमाण वडे जुओ के प्रमाणपूर्वकना कोई नय वडे जुओ
तो पण अंतरंगमां ते शुद्धचैतन्य मात्र देखाय छे.
एकाग्र थईने पोताना आनंदने भोगवे छे त्यां ते स्वतंत्रपणे आनंदनो भोगवनार छे, तेने कोई
रोकनार नथी. ‘कर्मने आधीन थईने आत्मा रखडे छे’ एम ईश्वरनयथी आत्माने पराधीन कह्यो
त्यां पण एकली पराधीनता बताववानुं तात्पर्य नथी. परंतु क्षणिक पराधीनतानुं ज्ञान करावीने शुद्ध
चैतन्यद्रव्य तरफ वाळवानुं ज तात्पर्य छे. भाई! परथी तारुं कल्याण थाय के परथी तारुं कल्याण
अटके–ए बुद्धि छोडी दे. तने कोई बीजो डुबाडे के तने कोई बीजो ऊगारे––एवुं तारा स्वरूपमां छे ज
नहि. तारा आत्मामां एवी स्वतंत्र प्रभुता छे के ते कोई बीजाने मोटप न आपे, कोई बीजो तेनो
स्वामी नथी. पोताना सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रपर्यायरूप जे शुद्धकार्य, तेना कारणरूप पोते ज कारण
परमात्मा छे, बीजुं कोई तेनुं कारण नथी. –आम तारा आत्मानी स्वतंत्र ईश्वरताने ‘अनीश्वरनय’
थी तुं जाण.
पराक्रमनो स्वामी आत्मा पोते पोतानी स्वतंत्रताथी आनंदनो भोगवनार छे, तेना उपर बीजो
कोई ईश्वर नथी एटले आत्मा कोईने आधीन नथी. आनंदना स्वाधीन भोगवटामां आत्माने विघ्न
करनार आ ब्रह्मांडमां कोई छे ज नहि. जेम सिंह एटले वननो राजा, ते जंगलमां डरपोक हरणियांने
मारीने स्वेच्छापूर्वक भोगवे छे तेम आत्मा एटले चैतन्यराजा ते