Atmadharma magazine - Ank 139
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४८१ आत्मधर्म : १८५ :
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी
केटलीक शक्तिओ
[१८]
* उत्पाद–व्यय–ध्रुवत्वशक्ति *

आत्मामां अनंत धर्मो होवा छतां तेने ‘ज्ञानस्वरूप’ कहीने ओळखाव्यो छे, केमके ज्ञान तेनुं लक्षण छे. –
कयुं ज्ञान? के जे ज्ञाने अंतर्मुख थईने लक्ष्यने लक्षमां लीधुं ते ज्ञान लक्षण थयुं, ने ते लक्षणे अनेकान्तस्वरूप
भगवान आत्माने प्रसिद्ध कर्यो. ज्ञाने अंतर्मुख थईने आत्माने पकडतां, तेनी साथे श्रद्धा–आनंद–सुख–जीवन–
प्रभुता–स्वच्छता–वीर्य–कर्तृत्व वगेरे अनंत शक्तिओ पण निर्मळतापणे परिणमी रही छे; पण तेमां ज्ञान ज
स्व–पर प्रकाशकपणे प्रसिद्ध होवाथी ते ज्ञानलक्षण वडे आत्माने ओळखाव्यो छे. अने तेथी अनंतधर्मस्वरूप
आत्माने ‘ज्ञानमात्र’ ज कह्यो छे. आ रीते आत्माने ज्ञानमात्र कहेवाथी एकांत थई जतुं नथी, पण ज्ञाननी
साथे बीजी अनंत शक्तिओ उल्लसती होवाथी अनेकान्त छे. ज्ञानना परिणमननी साथे निर्मळपणे उल्लसती
शक्तिओनुं आ वर्णन चाले छे. तेमां सत्तर शक्तिओनुं विवेचन थई गयुं छे. हवे अढारमी उत्पाद–व्यय–ध्रुवत्व
शक्ति छे, तेनी वात चाले छे. आ शक्ति खास समजवा जेवी छे.
क्रम प्रवृत्तिरूप अने अक्रम प्रवृत्तिरूप वर्तन जेनुं लक्षण छे एवी उत्पाद–व्यय–ध्रुवत्व नामनी शक्ति छे,
आ शक्ति पण आत्मामां त्रिकाळ छे.
–जुओ, हमणां क्रमबद्धपर्यायनी वात स्पष्टपणे बहार आवतां कोई एम कहे के ‘पर्याय क्रमबद्ध ज थाय
एवी कोई शक्ति आत्मामां नथी. ’ पण अहीं तो चोकखुं कहे छे के आखुं द्रव्य ज क्रमबद्धपर्यायपणे
परिणमवाना स्वभाववाळुं छे. द्रव्यनी उत्पाद–व्यय–ध्रुवत्व शक्ति ज एवी छे के क्रमबद्धपर्यायपणे ज परिणमे,
अने गुणो अक्रम एक साथे वर्ते. पर्यायने क्रमबद्ध न माने तो तेणे उत्पाद–व्यय–ध्रुवत्वशक्तिने ज मानी नथी.
वळी आ शक्ति अनंत गुणोमां व्यापक होवाथी अनंतागुणो पण पोतपोतानी क्रमबद्धपर्यायपणे ज परिणमे छे.
अज्ञानी तो कहे छे के ‘क्रमबद्धपर्याय थाय एवी एकेय शक्ति नथी, ’ त्यारे अहीं कहे छे के द्रव्यना बधाय गुणो
क्रमबद्धपर्यायपणे ज परिणमवाना स्वभाववाळा छे.
पर्यायो उत्पाद–व्यरूप छे, ने गुणो ध्रुवरूप छे; उत्पादव्ययरूप पर्यायो क्रमवर्ती छे ने ध्रुवरूप गुणो
अक्रमवर्ती छे. गुणो बधा एक साथे अक्रमे वर्ते छे तेथी तेने अक्रमवर्ती कह्या; पण बधाय गुणोनी पर्यायो तो
क्रमबद्ध ज छे. क्रमबद्धपर्यायनो जे सिद्धांत छे तेनी सामे अज्ञानी एम दलील करे छे के ‘पर्यायो क्रमबद्ध ज थाय
एवो कोई गुण आत्मामां नथी’ –पण अहीं तेनो खुलासो आवी जाय छे के द्रव्यना बधाय गुणोमां एवो
स्वभाव छे के गुणपणे ध्रुव रहीने क्रमबद्धपर्यायोपणे परिणमे छे. आ रीते उत्पाद–व्यय–ध्रुवत्व शक्तिथी आखुं
द्रव्य क्रम–अक्रम स्वभाववाळुं छे.
सर्वविशुद्धज्ञान अधिकारनी शरूआतमां गा. ३०८ थी ३११ मां आचार्यदेवे ए वात स्पष्ट करी छे के जीव ने