आत्मामां अनंत धर्मो होवा छतां तेने ‘ज्ञानस्वरूप’ कहीने ओळखाव्यो छे, केमके ज्ञान तेनुं लक्षण छे. –
भगवान आत्माने प्रसिद्ध कर्यो. ज्ञाने अंतर्मुख थईने आत्माने पकडतां, तेनी साथे श्रद्धा–आनंद–सुख–जीवन–
प्रभुता–स्वच्छता–वीर्य–कर्तृत्व वगेरे अनंत शक्तिओ पण निर्मळतापणे परिणमी रही छे; पण तेमां ज्ञान ज
स्व–पर प्रकाशकपणे प्रसिद्ध होवाथी ते ज्ञानलक्षण वडे आत्माने ओळखाव्यो छे. अने तेथी अनंतधर्मस्वरूप
आत्माने ‘ज्ञानमात्र’ ज कह्यो छे. आ रीते आत्माने ज्ञानमात्र कहेवाथी एकांत थई जतुं नथी, पण ज्ञाननी
साथे बीजी अनंत शक्तिओ उल्लसती होवाथी अनेकान्त छे. ज्ञानना परिणमननी साथे निर्मळपणे उल्लसती
शक्तिओनुं आ वर्णन चाले छे. तेमां सत्तर शक्तिओनुं विवेचन थई गयुं छे. हवे अढारमी उत्पाद–व्यय–ध्रुवत्व
शक्ति छे, तेनी वात चाले छे. आ शक्ति खास समजवा जेवी छे.
परिणमवाना स्वभाववाळुं छे. द्रव्यनी उत्पाद–व्यय–ध्रुवत्व शक्ति ज एवी छे के क्रमबद्धपर्यायपणे ज परिणमे,
अने गुणो अक्रम एक साथे वर्ते. पर्यायने क्रमबद्ध न माने तो तेणे उत्पाद–व्यय–ध्रुवत्वशक्तिने ज मानी नथी.
वळी आ शक्ति अनंत गुणोमां व्यापक होवाथी अनंतागुणो पण पोतपोतानी क्रमबद्धपर्यायपणे ज परिणमे छे.
अज्ञानी तो कहे छे के ‘क्रमबद्धपर्याय थाय एवी एकेय शक्ति नथी, ’ त्यारे अहीं कहे छे के द्रव्यना बधाय गुणो
क्रमबद्धपर्यायपणे ज परिणमवाना स्वभाववाळा छे.
क्रमबद्ध ज छे. क्रमबद्धपर्यायनो जे सिद्धांत छे तेनी सामे अज्ञानी एम दलील करे छे के ‘पर्यायो क्रमबद्ध ज थाय
एवो कोई गुण आत्मामां नथी’ –पण अहीं तेनो खुलासो आवी जाय छे के द्रव्यना बधाय गुणोमां एवो
स्वभाव छे के गुणपणे ध्रुव रहीने क्रमबद्धपर्यायोपणे परिणमे छे. आ रीते उत्पाद–व्यय–ध्रुवत्व शक्तिथी आखुं
द्रव्य क्रम–अक्रम स्वभाववाळुं छे.