: १८६ : आत्मधर्म २४८१ : वैशाख :
अजीव बधाय द्रव्यो पोताना क्रमबद्धपर्यायपरिणामे परिणमे छे. अज्ञानी कहे छे के क्रमबद्ध परिणमवानो कोई
गुण नथी; आचार्यदेव कहे छे के आखुं द्रव्य ज एवुं छे. द्रव्यना दरेक गुणमां पण ध्रुव रहेवानो ने क्रमे
परिणमवानो स्वभाव छे. आ एक उत्पाद–व्यय–ध्रुव–शक्तिने बराबर ओळखे तो, पर्याय आडीअवळी थाय के
निमित्तने लीधे थाय–एवी ऊंधी द्रष्टि रहे नहि.
वळी, ध्रुवउपादन अने क्षणिक उपादाननी वात पण आमां आवी जाय छे. त्रिकाळी स्वभाव ते
ध्रुवउपादान छे अने एकेक समयनी पर्यायनी लायकात ते क्षणिक उपादान छे. दरेक समयनी क्रमबद्धपर्याय पोते
पोतानुं क्षणिक उपादान छे, एटले निमित्तने लीधे पर्याय थाय ए वात रहेती नथी. आत्माना गुणनुं ध्रुवपणुं
होवाथी ते ध्रुव उपादान छे ने ते अक्रमवर्ती छे तथा पर्यायो–उत्पाद–व्ययरूप होवाथी क्षणिक उपादान छे ने ते
क्रमवर्ती छे. आ रीते आत्माना उत्पाद–व्यय–ध्रुवत्व–स्वभावमां ध्रुवउपादान अने क्षणिक उपादान बंने आवी
जाय छे.
ध्रुव उपादान अक्रमवर्ती छे एटले के गुणो बधा ध्रुवपणे एक साथे सहवर्ती छे, पहेलांं ज्ञान, पछी दर्शन,
पछी सुख, एवो क्रम तेनामां नथी. अने क्षणिक उपादान क्रमवर्ती छे एटले पर्यायो एक पछी एक थाय छे.
सिद्धपर्याय वखते संसारपर्याय न होय; संसारपर्याय वखते सिद्धपर्याय न होय; मतिज्ञान वखते केवळज्ञान न
होय, केवळज्ञान वखते मतिज्ञान न होय, –आ रीते पर्यायो क्रमवर्ती छे; पण गुणो तो बधाय एक साथे ज वर्ते छे,
संसारदशा वखते के सिद्धदशा वखते एटला ने एटला गुणो सदा एक साथे वर्ते छे. आ रीते क्रम ने अक्रमवर्तीरूप
वस्तुस्वभाव छे. गुणरूपे सदा अचल रहेवानी, अने पर्यायरूपे समये समये पलटवानी वस्तुनी शक्ति छे, तेनुं
नाम उत्पाद–व्यय–ध्रुवत्व शक्ति छे. ज्ञानस्वभावी आत्माना परिणमनमां आ उत्पाद–व्यय–ध्रुवत्व शक्ति पण
भेगी ज परिणमे छे.
–ज्ञानी पोताना आवी शक्तिवाळा आत्माने ओळखीने तेना आश्रये निर्मळपणे परिणमे छे, एटले तेने
शक्ति निर्मळपणे ऊछळे छे. अज्ञानीने पण जो के आवी शक्तिओनुं परिणमन छे परंतु तेने तेनी ओळखाण
नथी एटले शक्ति–स्वभावनो आश्रय करीने न परिणमतां ते एकला परने लक्षे परिणमे छे, तेथी तेने विपरीत
परिणमन थाय छे. अहीं तो, एवी वात छे के, अंतरमां अनंत शक्तिना पिंडरूप आत्म स्वभावनुं अवलंबन
लईने, तेनी सन्मुख एकाकार अभेद थईने निर्मळ पर्यायरूपे परिणमे ते ज आत्मानुं खरुं परिणमन छे, तेमां
ज भगवान आत्मा प्रसिद्ध थाय छे. स्वभावने चूकीने एकान्त पराश्रये विकारी परिणमे तेमां खरेखर
आत्मानी प्रसिद्धि नथी तेथी ते खरेखर आत्मा नथी, एटले अज्ञानीने आत्मानी अप्रसिद्धि छे.
पर्यायमां क्रमवर्तीपणुं तो ज्ञानी अज्ञानी बंनेने छे, पण ज्ञानीने स्वभाव सन्मुखताने लीधे क्रमवर्ती
पर्यायो निर्मळ थाय छे, ने अज्ञानीने पर सन्मुखताने लीधे क्रमवर्ती पर्यायो मलीन थाय छे. विभावरूप
परिणमन ते शक्तिनुं खरुं परिणमन नथी, शक्तिमां अभेद थईने निर्मळ स्वभावरूप परिणमन थाय ते ज तेनुं
खरुं परिणमन छे. अक्रमरूप गुणो ने क्रमरूप पर्यायो, एवा गुणपर्यायोना पिंडरूप आत्मस्वभावनो आश्रय
करीने जीव परिणम्यो त्यारे उत्पाद–व्यय–ध्रुवत्व वगेरे शक्तिओनुं यथार्थ भान थयुं, अने त्यारे ज शक्तिओनुं
खरुं परिणमन प्रगट्युं. आ रीते साधकदशानी आ वात छे. शक्ति तो त्रिकाळ छे, पण पहेलांं अभान दशामां
तेनुं विभावपरिणमन हतुं ने भान थतां तेनुं स्वभावपरिणमन शरू थयुं. आ रीते, स्वभावना आश्रये निर्मळ
परिणमन थाय छे ते आ शक्तिओनी ओळखाणनुं फळ छे.
आत्मामां शक्तिओ अने तेनुं परिणमन तो सदाय छे, पण अनादिथी ते परिणमन पराश्रित होवाथी
संसार छे, जो ते परिणमन स्वाश्रित होय तो संसार न रहे. आत्मानी अनंत शक्तिओमांथी एकेक शक्तिने जुदी
लक्षमां लेवा जतां शक्तिनुं निर्मळपरिणमन थतुं नथी पण विकार थाय छे; आत्मा एक साथे अनंतशक्तिसंपन्न
छे, अनंत शक्तिना पिंडरूप जे स्वभाव तेना अवलंबने परिणमतां मोक्षमार्गरूप परिणमन थाय छे, ते
परिणमनमां अनंत शक्तिओ निर्मळपणे ऊछळे छे, ने ते ज शक्तिनुं खरुं परिणमन छे. विभाव तो आत्मानुं
खरुं परिणमन नथी एम कहीने तेनी वात ऊडाडी दीधी, एटले के अज्ञानीओने तो आ शक्तिनुं निर्मळ–
मोक्षमार्गरूप परिणमन थतुं नथी. अहीं जे वात चाले छे ते तो शक्तिओना निर्मळ परिणमननी वात छे. ज्ञानने
अंतर्मुखी