Atmadharma magazine - Ank 140
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: १९८ : आत्मधर्म : १४०
कार्य (सम्यग्दर्शनादि) थया विना रहे नहि.
तारा मोक्षमार्गनुं कारण तारी पासे सततपणे निरंतर वही रह्युं छे. अंदरमां कारणरूप शक्ति त्रिकाळ
पडी छे तेना सेवनथी मोक्षमार्ग प्रगटे छे, ए सिवाय बहारना व्यवहारकारणना आश्रये तारो मोक्षमार्ग
नथी. जेम मोर थवानी शक्ति मोरना इंडामां पडी छे तेथी तेमांथी मोर थाय छे; तेम चैतन्यनी शक्तिमां
परमात्मदशानुं सामर्थ्य भर्युं छे तेमांथी परमात्मदशा प्रगट थाय छे. पोताना आत्मानी शक्तिनो विश्वास
अने महिमा आववो जोईए के परमात्मशक्ति मारामां ज भरी छे, क्यांय बहारथी ते कार्य प्रगटवानुं नथी.
अहीं तो, ‘शुद्धज्ञानचेतनापरिणाम’ कहीने, सामान्यध्रुवनी साथे विशेषध्रुव बताववुं छे, ते नजीकनुं कारण छे,
तेने “कारणनियम” कह्यो छे, अने ते कारणनियममां अनंती मोक्षपर्याय आपवानुं सामर्थ्य छे. परम
उत्कृष्टस्वभावथी भरेलो पारिणामिक भाव छे अने तेमां स्थित एवो स्वभाव–अनंतचतुष्टयस्वरूप सहज
शुद्धज्ञानचेतना परिणाम ते कारणनियम छे; आने ‘कारणनियम’ कहीने मुनिराजे बीजा कारणोनो अभाव
बताव्यो छे एटले के रागादि व्यवहार कारणो ते खरेखर कारण नथी–एम समजाव्युं छे. अंतरमां सहज
पारिणामिक त्रिकाळभाव अने तेना शुद्धचेतनापरिणाम ते निश्चयकारण छे, ते कारणना आश्रये ते नियमथी
मोक्षमार्ग प्रगटे छे. कार्यनियमनी साथे कारणनिमनी वात करीने अद्भुत रहस्य खोल्युं छे. कारणनियमरूप
स्वभाव दरेक आत्मामां वर्ती ज रह्यो छे, तेना तरफ वळीने तेनो आश्रय करतां कार्यनियमरूप मोक्षमार्ग
प्रगटे छे. आ रीते पोतानो अंतर्मुखस्वभाव ते ज कारण छे. जेम कार्य वर्तमान छे तेम ते कार्यना आधाररूप
ध्रुवकारण ते पण वर्तमान छे. जेम सामान्यद्रव्य त्रिकाळ ध्रुव छे तेम तेनुं विशेषरूप वर्तमान...वर्तमान ध्रुव
पण वर्ते छे; जो वर्तमान परिपूर्ण कारणरूपे ध्रुव न वर्ततुं होय तो मोक्षमार्गरूपी कार्य प्रगटवानुं सामर्थ्य
क्यांथी आवशे? जे निर्मळकार्य छे ते वर्तमान वर्तता ध्रुवकारणनी साथे अभेद थाय छे. अहीं ‘सामान्य ध्रुव’
ने ‘विशेष ध्रुव’ एम कहीने कांई ध्रुवना बे भाग नथी बताववा, पण ध्रुव स्वभावनी परिपूर्णता बताववी
छे. त्रिकाळी सामान्य जेम ध्रुव छे, तेम तेनुं वर्तमान विशेष पण ध्रुव छे; तेना ज आश्रयथी निर्मळ कार्य
प्रगटी जाय छे माटे तेने कारण (अर्थात् कारणशुद्धपर्याय) कहे छे. त्रिकाळी अभेदस्वभावनुं जोर वर्तमानमां
पण एवुं ने एवुं छे. ते द्रष्टिनो विषय छे, पण तेनुं वेदन न थाय, वेदन तो तेना आश्रये जे निर्मळ पर्याय
प्रगटे तेनुं थाय.
जमीनमां नीचेनुं दळ सारुं होय पण उपरनुं थर क्षारवाळुं होय तो तेमां झाड न ऊगे; जमीननुं अंदरनुं
दळ सारुं होय ने उपरनुं थर पण सारुं होय तो तेना आधारे झाड ऊगे. एम आत्मामां त्रिकाळी ध्रुवस्वभावनुं
दळ तो शुद्ध छे ने तेनुं वर्तमान थर पण एवुं ज शुद्ध छे, तेना आधारे मोक्षमार्ग झाड ऊगे छे. ‘वर्तमान’
कहेतां अहीं वर्तमान वर्तती उत्पाद व्ययवाळी पर्याय न लेवी, पण वर्तमान वर्ततुं ध्रुव समजवुं. ध्रुव–आश्रय
वर्तमानमां पड्यो छे–एम अहीं अंदरनो आश्रय बताववो छे.
अहो! चैतन्य भगवान, ध्रुव ज्ञायक स्वभावथी भरेलो, परम पारिणामिकभाव छे, तेना सहज
चेतनापरिणाम पण वर्तमान...वर्तमान ध्रुव छे. भाई! तुं अंतरमां ज्यारे जो त्यारे मोक्षनुं कारण तारी पासे
वर्तमानमां ज पड्युं छे, ते कारणने नवुं उत्पन्न करवुं पडतुं नथी, ते कारणना आश्रये कार्य प्रगटी जाय छे. कारण
क्यांय बहार शोधवा जवुं पडे एम नथी. एवुं ने एवुं ध्रुव ज्यारे जो त्यारे वर्तमानमां तारी पासे ज पड्युं छे,
तेनी प्रतीत–ज्ञान ने रमणता करवी ते मोक्षमार्ग छे. ध्रुव कारण तो त्रिकाळ पड्युं छे ने तेने ओळखतां
मोक्षमार्ग नवो प्रगटे छे. मोक्षमार्ग–शुद्धरत्नत्रय ते कार्यनियम छे ने ध्रुवस्वभाव ते कारणनियम छे.
कारणनियमने करवो नथी पडतो, ते तो त्रिकाळ छे, ज्यारे जुओ त्यारे अंतरमां कारणनियम तरीके आत्मा
शोभी रह्यो छे, तेना अंतर्मुख अवलोकनथी कार्यनियम प्रगटी जाय छे. आवो कार्यनियमरूप मोक्षमार्ग प्रगट
करवो ते ज जीवनुं नियमथी कर्तव्य छे.
भाई! तारा अंतरमां केवा भंडार भर्या छे तेनी आ वात छे. जेम लक्ष्मीनी रुचिवाळा रागी प्राणीने
कोई हीरा–माणेकनो भंडार बतावे तो केवी होंसथी ते जुए! तेम जेने आत्मानी रुचि छे तेने अहीं मुनिराज
अंतरना भंडार बतावे छे. भाई! अनंता मोक्षनां निधान