आ कारणशुद्धपर्याय दरेक गुणमां पण छे. पवनना निमित्ते समुद्रना पाणीमां तरंगो ऊठे छे ते तो उपरनां मोजां
छे, पाणीनुं दळ जुओ तो ते एकरूप छे. तेम आत्मामां रागादि विकारी भावो अथवा तेना अभावथी प्रगटती
निर्मळ पर्यायो छे ते बधा अपेक्षितभावो छे, क्षणिक उत्पाद–व्ययरूप छे, ते क्षणिक भावोना आश्रये सम्यग्दर्शन
थतुं नथी. दरियामां जेम पाणीनुं दळ, पाणीनो शीतळ स्वभाव अने पाणीनी सपाटी–ए त्रणे अभेदरूप ते
समुद्र छे, ते त्रणे हंमेशां एवा ने एवा ज रहे छे; तेम आत्मा चैतन्य दरियो छे, तेमां आत्मद्रव्य, तेना ज्ञानादि
गुणो अने तेनुं ध्रुवरूप वर्तमान अर्थात् कारणए त्रणे थईने वस्तुरूपनी पूर्णता छे, ते ज परम पारिणामिक
भाव छे अने तेना ज आश्रये सम्यग्दर्शन थाय छे. हजी आगळ जतां (गा. १० थी १पमां) आ वात
विस्तारथी आवशे.
अवलंबन ल्ये एटली ज वार छे कारण तो सदा शुद्ध ज छे, तेमां एकता करतां शुद्ध कार्य प्रगटी जाय छे.
अंतर्मुख स्वभावमां वळतां द्रव्य–गुण ने कारणशुद्धपर्याय ए त्रणेनी अभेदतानुं अवलंबन थाय छे, ने तेना
अवलंबने सम्यग्दर्शनादि निर्मळ पर्याय प्रगटी जाय छे, ते पर्याय उत्पाद–व्ययरूप छे– चैतन्यनुं आखेआखुं
ध्रुवदळ वर्तमानमां कारणरूपे वर्ती ज रह्युं छे, तेमां एकाग्र थईने तेनुं मनन करतां मोक्षमार्ग प्रगटी जाय छे,
व्यवहाररत्नत्रय पण होय छे पण ते कर्तव्य नथी. व्यवहाररत्नत्रयना रागने जे कर्तव्य माने छे ते जीव
मोक्षमार्गमां आव्यो ज नथी, नियमरूप कर्तव्य अर्थात् मोक्षमार्ग शुं छे तेनी तेने खबर पण नथी.
जेम छे तेम जाणे तो ज प्रमाण थाय छे. आ आशयथी ते ते काळे व्यवहारनय ‘जाणेलो’ प्रयोजनवान छे–एम
कह्युं छे, पण व्यवहारनय ‘आदरेलो’ प्रयोजनवान छे–एम कह्युं नथी. व्यवहारनयना आश्रयथी लाभ माने तो
मिथ्याद्रष्टि छे. आचार्यभगवाने तो व्यवहारनयनो आश्रय छोडावीने निश्चयनयना आश्रये ज मोक्ष थवानुं
स्पष्टपणे जणाव्युं छे; तेने भूलीने आ बारमी गाथा वगेरेना ऊंधा अर्थ करीने अज्ञानी जीवो पोतानी ऊंधी
द्रष्टिने पोषे छे. अहीं पण आचार्यदेव स्पष्टपणे कहे छे के: निश्चयरत्नत्रय ते ज मोक्षमार्ग छे एटले ते ज नियम
छे, अने व्यवहाररत्नत्रय तेनाथी विपरीत छे; ते विपरीतना परिहार अर्थे एटले के व्यवहाररत्नत्रयना
आश्रये मोक्षमार्ग नथी एम बताववा माटे ‘नियम’नी साथे ‘सार’ शब्द मूकेल छे. व्यवहाररत्नत्रय ते नियम
नथी–कर्तव्य नथी–मोक्षमार्ग नथी, पण बाधकपणे वच्चे आवी पडे छे. कारणपरमात्माना अवलंबने जे
वीतरागी निश्चयरत्नत्रय प्रगटे ए ते नियम छे–कर्तव्य छे–मोक्षमार्ग छे.