बोळीने आ भावो काढ्या छे. छठ्ठा–सातमा गुणस्थाने
आत्माना आनंदमां झूलता मुनिओना अनुभवना
ऊंडाणमांथी आ भावो नीकळ्या छे. अहो! संतो अपूर्व
वारसो मूकी गया छे. शुद्धरत्नत्रयरूपी जे तारुं कर्तव्य,
तेनुं कारण तारा स्वभावमां ज वर्ते छे; अंतरमां ज्यारे
जो त्यारे मोक्षमार्गनुं कारण तारामां वर्ती ज रह्युं छे. आ
कारणने ओळखीने तेनी साथे एकता करतां
मोक्षमार्गरूपी कार्य थई जाय छे. अंतरमां कारण–कार्यनी
एकता साधतां साधतां आ टीका रचाई गई छे. जुओ
तो खरा! टीकाकारे केवा भावो काढ्या छे!! जंगलमां
बेठां बेठां सिद्धनी साथे वातुं करी छे........
आ नियमसार वंचाय छे. भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेवे आ नियमसारमां अलौकिक भावो भर्या छे; ने
कहे छे––
विवरीयपरिहरत्थं भणिदं खलु सारमिदि वयणं।।
विपरीतना परिहार अर्थे ‘सार’ पद योजेल छे.