Atmadharma magazine - Ank 141
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २४८१ “आत्मधर्म” : २१७ :
तो चैतन्यनुं ज शरण करो.
– जो मरणथी बचवुं होय. ने आत्मानी शांति जोईती होय.
–जीव आ देहथी जुदो ज्ञानस्वरूप छे, ते कदी नवो थयो नथी पण अनादिथी छे. ते
अनादिकाळथी पोताना अज्ञानने लीधे संसारपरिभ्रमणमां जन्ममरण करी रह्यो छे; ते जन्ममरणथी
छूटीने मोक्ष थवानो उपाय बतावतां आचार्यभगवान कहे छे के हे जीवो! मरणथी बचवुं होय तो
तेनो उपाय वीतरागी संयम छे; अने ते संयम चैतन्यमूर्ति आत्माना भान विना प्रगटतो नथी.
माटे पहेलांं आत्माने ओळखो. ते ज एक शरण छे. संसारमां जीवो अशरण छे, सर्वज्ञभगवाने
जेवो चैतन्यस्वभाव कह्यो छे तेने ज शरणभूत जाणीने तेनी आराधना करवी ते मोक्षनो उपाय छे.
माटे कह्युं के–
‘सर्वज्ञनो धर्म सुशर्ण जाणी
आराध्य! आराध्य! प्रभाव आणी;
अनाथ एकांत सनाथ थाशे
एना विना कोई न बांह्य स्हाशे.’
[–श्रीमद् राजचंद्र]
हे जीव! सर्वज्ञभगवाने आत्मानो जेवो स्वभाव कह्यो छे तेने ज शरणभूत जाणीने तेनी
आराधना कर.... आराधना कर! एना सिवाय बीजुं कोई शरण जगतमां नथी. आत्माना भान
वगर एकांत अनाथपणुं छे, ते टळीने चैतन्यना शरणे ज तारुं सनाथपणुं थशे.... माटे हे भाई!
आत्मानी ओळखाण करीने तेनुं शरणुं ले.
ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानी सम्यक् श्रद्धा, ज्ञान अने तेमां लीनतारूप धर्म, ते ज जीवोने
शरणभूत छे, ए धर्म सिवाय बीजुं कांई शरण नथी. स्वर्गना ईन्द्रने पण चैतन्यना शरण सिवाय
बीजुं कांई शरण नथी. चारे बाजु हजारो देवोनी सेना अंगरक्षक तरीके ऊभी होय ते पण मरण
वखते शरण थती नथी. ते ईन्द्र तो सम्यग्द्रष्टि छे, एकावतारी होय छे, अंतरमां आत्माना शरणनुं
तेने भान छे, देह छूटवानो प्रसंग नजीक आवतां शाश्वत जिनप्रतिमाना शरणे जईने तेमना
चरणकमळ उपर हाथ मूकिने कहे छे के हे नाथ! हे सर्वज्ञ देव! तारा कहेला वीतरागी धर्मनुं ज मने
शरण छे. हे प्रभो! सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान तो छे, हवे मनुष्यपणामां चारित्रनी आराधना
करीने अमे आ भवभ्रमणनो नाश करशुं... आम आराधनानी भावना भावतां भावतां शांतिथी
देह छूटी जाय छे, ने मनुष्य–भवमां अवतरे छे. त्यां चैतन्य उपर द्रष्टि मांडीने... लीन थईने........
नग्नदिगंबर मुनिदशा धारण करे छे ने पछी अंतरमां एवुं त्राटक
[ध्याननी एकाग्रता] प्रगट करे
छे के अल्पकाळमां केवळज्ञान पामे छे. अनंता तीर्थंकरो, ईन्द्रो चक्रवर्तीओ आ चैतन्यना शरणने ज
अंगीकार करीने मुक्ति पाम्या छे. माटे तेनुं भान करीने तेनुं ज