छूटीने मोक्ष थवानो उपाय बतावतां आचार्यभगवान कहे छे के हे जीवो! मरणथी बचवुं होय तो
तेनो उपाय वीतरागी संयम छे; अने ते संयम चैतन्यमूर्ति आत्माना भान विना प्रगटतो नथी.
माटे पहेलांं आत्माने ओळखो. ते ज एक शरण छे. संसारमां जीवो अशरण छे, सर्वज्ञभगवाने
जेवो चैतन्यस्वभाव कह्यो छे तेने ज शरणभूत जाणीने तेनी आराधना करवी ते मोक्षनो उपाय छे.
माटे कह्युं के–
वगर एकांत अनाथपणुं छे, ते टळीने चैतन्यना शरणे ज तारुं सनाथपणुं थशे.... माटे हे भाई!
आत्मानी ओळखाण करीने तेनुं शरणुं ले.
बीजुं कांई शरण नथी. चारे बाजु हजारो देवोनी सेना अंगरक्षक तरीके ऊभी होय ते पण मरण
वखते शरण थती नथी. ते ईन्द्र तो सम्यग्द्रष्टि छे, एकावतारी होय छे, अंतरमां आत्माना शरणनुं
तेने भान छे, देह छूटवानो प्रसंग नजीक आवतां शाश्वत जिनप्रतिमाना शरणे जईने तेमना
चरणकमळ उपर हाथ मूकिने कहे छे के हे नाथ! हे सर्वज्ञ देव! तारा कहेला वीतरागी धर्मनुं ज मने
शरण छे. हे प्रभो! सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान तो छे, हवे मनुष्यपणामां चारित्रनी आराधना
करीने अमे आ भवभ्रमणनो नाश करशुं... आम आराधनानी भावना भावतां भावतां शांतिथी
देह छूटी जाय छे, ने मनुष्य–भवमां अवतरे छे. त्यां चैतन्य उपर द्रष्टि मांडीने... लीन थईने........
नग्नदिगंबर मुनिदशा धारण करे छे ने पछी अंतरमां एवुं त्राटक
अंगीकार करीने मुक्ति पाम्या छे. माटे तेनुं भान करीने तेनुं ज