: २१८ : “आत्मधर्म” : अषाढ : २४८१
शरण लेवा जेवुं छे. ते एक ज मृत्युथी बचवानो ने मुक्ति पामवानो उपाय छे.
अपूर्व सम्यग्दर्शन थया पछी पण आत्मामां लीन थईने चारित्रदशा प्रगट करवी ते मोक्षनुं
साक्षात् कारण छे. तेथी आचार्यभगवान कहे छे के–(प्रवचनसार श्लोक १२)
हे धर्मी जीवो! हे मोक्षार्थी जीवो! जो आत्मानी शांति जोईती होय ने भवना फेराथी छूटवुं
होय तो शुद्धद्रव्यनो आश्रय करीने मोक्षमार्गमां आरोहण करो. चारित्र द्रव्यानुसार होय छे एटले क
जेटलुं जोर करीने द्रव्यमां लीन थाय तेटलुं चारित्र होय छे; जेटलो द्रव्यनो आश्रय करे तेटली शांति
प्रगटे छे. माटे पहेलां शुद्धद्रव्यने ओळखीने तेना ज आश्रये लीनता करो. पहेलां शुद्धद्रव्यनी
ओळखाण तो होवी ज जोईए. शुद्धद्रव्य उपर जेनी द्रष्टि छे ते ज सम्यग्द्रष्टि छे. सम्यग्दर्शन ते
चारित्रनुं मूळ छे, चैतन्यचिंतामणीरूप शुद्ध आत्मामां द्रष्टि अने लीनता करीने तेनी जेटली भावना
करे तेटलुं फळ प्रगटे...भगवान चैतन्य चिंतामणी अनादि अनंत परिपूर्ण छे तेनी भावना करवाथी
सम्यग्दर्शन ज्ञान–चारित्र ने मोक्ष थई जाय छे.
आ देहादिनो संयोग तो अनंतवार आव्यो ने गयो, ते कांई आत्मानी चीज नथी; वळी
पुण्यपाप पण अनादिथी कर्या पण ते–रूप आत्मा थई गयो नथी. जो पुण्य वखते पुण्यरूप ज थई
गयो होय तो ते पाछुं पाप कयांथी आव्युं? अने पाप वखते जो पापरूप ज थई गयो होय तो ते
पाप पलटीने पाछुं कयांथी आव्युं? पाप–पुण्य बंनेनो नाश थवा छतां आत्मा एवो ने एवो अखंड
चैतन्यमूर्ति रहे छे. आवा शुद्ध–चैतन्यद्रव्यनो आश्रय करवाथी चारित्र प्रगटे छे; अने जेटली
वीतरागी चारित्रदशा प्रगटी तेमां द्रव्य अभेदपणुं पामे छे. जेटलो अंतरनो आश्रय करे तेटलुं
चारित्र प्रगटे, ने जेटलुं चारित्र तेटली द्रव्यनी शुद्धता प्रगटे. माटे हे मुमुक्षुओ! कांतो शुद्धद्रव्यनो
आश्रय करीने, अथवा तो वीतरागी चारित्रनो आश्रय करीने मोक्षमार्गमां आरोहण करो.
जेमणे पोताना चेतन्यतत्त्वने जाण्युं छे ने पोताना ज्ञानने चैतन्यतत्त्वनी भावनामां लीन
कर्युं छे एवा संतो–मुनिवरो अंर्तस्वभावना संयममां सावधान छे, अने तेमनो ते वीतरागी
संयम, दुःखमय एवा मरणना नाशनुं कारण छे. यातनाशील जे यम तेनो संयम नाश करे छे, एटले
के मुनिवरोनो संयम मरणने मारी नांखनार छे, ने जन्ममरण रहित एवी सिद्धदशानुं कारण छे.
जेने संयम प्रगटे तेना जन्ममरणनो नाश थई जाय छे. माटे हे जीव! जो तारे शांति जोईती होय,
जन्म–मरणनी यातनाथी छूटवुं होय तो आवी मुनिदशा प्रगट कर्ये छूटको छे. यति–मुनिवरो पोताना
संयममां यत्नशील वर्तता थका यातनामय यमनो नाश करे छे. जेओ सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चैतन्यना
शरणे वीतरागी संयम प्रगट करे छे तेमने फरीने बीजी माताना पेटे अवतार थतो नथी, तेमने
दुःखमय मरणनो नाश थईने मुक्ति थई जाय छे. माटे–
हे जीवो!
जो मरणथी बचवुं होय...ने आत्मानी शांति जोईती होय तो चैतन्यनुं शरण करो.
(–श्री नियमसार गा. १०३ना श्लोको उपरना प्रवचनमांथी. वीर सं. २४७८, मागसर वद ७.)