Atmadharma magazine - Ank 141
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २४८१ “आत्मधर्म” : २१९ :
“आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय?”
लेखांक [१९]
(अंक १३९थी चालु)
[श्री प्रवचनसारना परिशिष्टमां आचार्यदेवे ४७ नयोथी आत्मद्रव्यनुं वर्णन
कर्युं छे तेना उपर पू. गुरुदेवश्रीनां विशिष्ट अपूर्व प्रवचनोनो सार]
हे भगवान आ आत्मा केवो छे ने कई रीते तेनी प्राप्ति थाय छे? ते
समजावो, –एम जिज्ञासु शिष्ये पूछ्युं छे. –आत्मानुं स्वरूप जाणीने तेनी ज प्राप्ति
करवानी जेने भावना छे, ए सिवाय स्वर्गादि संयोगनी भावना नथी एवो
आत्मार्थी जीव श्री गुरुने पूछे छे के प्रभो! अनादिथी नहि जाणेला एवा आत्मानुं
स्वरूप जाणीने हुं तेनी प्राप्ति करुं अने हवे मारा संसारपरिभ्रमणनो अंत आवीने
मारी मुक्ति थाय, एवुं स्वरूप मने समजावो.
आचार्यभगवान आवी जिज्ञासावाळा शिष्यने आत्मानुं स्वरूप अने तेनी
प्राप्तिनो उपाय बतावे छे तेनुं आ वर्णन चाले छे. जो आत्माना धर्मो वडे तेना
वास्तविकस्वरूपने ओळखे तो तेमां एकाग्र थईने तेनी प्राप्ति करे अने मुक्ति थाय.
माटे जेणे आत्मानी मोक्षदशा प्राप्त करवी होय ने संसारपरिभ्रमणथी छुटवुं होय तेणे
आत्मस्वरूपने ओळखवुं जोईए.
(३६) अगुणीनये आत्मानुं वर्णन
“आत्मद्रव्य गुणनये गुणग्राही छे, –शिक्षक वडे जेने केळवणी आपवामां आवे छे एवा कुमारनी
माफक.”
जेम शिक्षक जेवुं शीखवे छे तेवुं कुमार शीखी ले छे, तेम निमित्त तरीके ज्ञानी गुरु पासेथी आत्मा बोध
ग्रहण करे छे. –एवो तेनो एक धर्म छे. जेवो उपदेश श्रीगुरु आपे तेवुं ग्रहण करी लेवानी आत्मामां ताकात छे.
सम्यग्दर्शनादि गुणनुं ग्रहण करवामां गुरु तो निमित्त छे, पण ते गुणने ग्रहण करवानो नैमित्तिक धर्म तो आ
आत्मानो छे. गुरु पासेथी गुण ग्रहण कर्या, अमुक गुरु पासेथी सम्यक्त्वनुं ग्रहण कर्युं, अमुक गुरु पासेथी
चारित्रनुं ग्रहण कर्युं–एम कहेवाय छे, पण ते गुणोने ग्रहण करवानी ताकात कोनी छे? ते धर्म तो जीवनो छे;
माटे गुणग्राहीनयमां पण निमित्ताधीनपणुं नथी, ते नय पण आत्माना धर्मने देखे छे.
वळी अहीं ‘गुणग्राही’ कह्युं छे, तेमां ‘गुण’ एटले सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र वगेरे; गुरु पासेथी
आवा गुणोनुं ग्रहण करवानी आत्मानी ताकात छे. तो जे गुरुना निमित्ते आवा गुणोनुं ग्रहण करे छे ते
गुरु पासे पण