गुणो सहित ज्ञानी ज होवा जोईए, अज्ञानी–मिथ्याद्रष्टि कुगुरु पासे तो सम्यग्दर्शनादि कोई पण गुण होय नहि
एटले तेनी पासेथी गुणनुं ग्रहण क्यांथी थाय? अज्ञानी पासेथी पण कंईक गुणग्रहण करवानुं जे माने छे तेणे
खरेखर गुणने ओळख्या नथी अने आत्माना गुणग्राहीस्वरूपने पण ओळख्युं नथी; एवा जीवने गुणग्राहीनय
होतो नथी. जेणे सम्यग्दर्शनादि कांईक गुणोनुं ग्रहण कर्युं होय ते निमित्तमां आरोप करीने एम कही शके के
‘अहो! मारा गुरु पासेथी में गुणनुं ग्रहण कर्युं, मारा गुरुए मने सम्यग्दर्शन आप्युं’ –अने तेने गुणग्राहीनय
होय. पण जेणे हजी साचा गुरुने ज जाण्या नथी, गुणनुं ग्रहण कर्युं नथी, तेने तो ‘गुरुए गुण आप्या’ एम
कहेवानुं उपचारथी पण नथी एटले तेने गुणग्राहीनय होतो नथी.
होय ते समजवानी आत्मानी ताकात छे, –सम्यग्दर्शनथी मांडीने ठेठ केवळज्ञान सुधीना गुणने ग्रहण करी शके
एवो आत्मानो धर्म छे.
गुणने ज ग्रहण करे छे. हवे ते गुणोनुं ग्रहण तो स्वभावना आश्रये ज थाय छे, तेथी आ गुणीनयमां पण
शुद्धचैतन्यस्वभावना आश्रयनो ज अभिप्राय छे.
शिष्य ग्रहण करे बीजुं–एम नथी, पण जेवुं गुरु कहे तेवुं ज शिष्य ग्रहण करे–एवो तेनो गुणग्राही धर्म छे.
श्रीगुरु आत्माना शुद्धस्वभाव उपर जोर देवा मांगे छे ने शिष्य पण एवुं ज समजीने गुणग्रहण करे छे. श्रीगुरु
कहे छे के हे जीव! तें तारी भूलथी अनंत भवो कर्या छे छतां एक अंतर्मुहूर्तमां केवळज्ञान लेवानी तारा
आत्मानी ताकात छे, –आवा तारा स्वभावनो तुं विश्वास कर तो तेमां तारुं भवभ्रमण मटे. गुरुनी आवी
शिक्षा झीलीने ते प्रमाणे करवानी शिष्यनी ताकात छे. जेम शाही पडी होय तेने चूसी लेवानो ब्लोटिंगपेपरनो
स्वभाव छे, अथवा कोरा घडा उपर पाणीनुं टीपुं पडतां जेम ते घडो पाणीने चूसी ल्ये छे, तेम श्रीगुरु जेवुं कहे
छे तेवुं झीलीने शिष्य चूसी ल्ये छे ने पोतामां गुण प्रगट करे छे. –आवो गुणग्राही आत्मा छे.
स्वभाव तो आत्मानो छे, कांई गुरु पराणे ग्रहण करावी देता नथी. गुणने ग्रहण करे एवो गुणग्राहीधर्म
आत्मानो पोतानो छे. आ रीते गुणीनयनुं वजन पर निमित्त उपर नथी, –जेवुं निमित्त होय तेवुं ज्ञान थाय
एम नथी, पण गुणग्राहीधर्मनुं धारक अंतरमां शुद्ध स्वाधीन चैतन्यद्रव्य छे तेने देखवुं ते आ गुणनयनुं
तात्पर्य छे.
एम कहेवाय के आत्मा गुरु पासेथी गुणनुं ग्रहण करे एवो गुणग्राही छे. परंतु त्यां धर्मी जाणे छे के आवो
गुणग्राहीधर्म पण मारा आत्मद्रव्यनो छे, मारो धर्म कांई गुरुना आधारे नथी; तेथी मारे मारा आत्मा सामे ज
जोवानुं छे. आ प्रमाणे धर्मी जीव नयना बधां पडखांने स्व तरफ वाळीने अंतरमां पोताना आत्माने
शुद्धचैतन्यस्वरूपे देखे छे. शुद्धचैतन्यमात्र आत्मा उपर द्रष्टि करे तेने ज आ नयोनुं ज्ञान साचुं थाय छे.