Atmadharma magazine - Ank 141
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: २२० : “आत्मधर्म” : अषाढ : २४८१
सम्यक्त्वादि गुणो होवा जोईए. गुरु पासे गुण होय तो शिष्य ग्रहण करे ने? माटे गुरु पण सम्यग्दर्शन वगेरे
गुणो सहित ज्ञानी ज होवा जोईए, अज्ञानी–मिथ्याद्रष्टि कुगुरु पासे तो सम्यग्दर्शनादि कोई पण गुण होय नहि
एटले तेनी पासेथी गुणनुं ग्रहण क्यांथी थाय? अज्ञानी पासेथी पण कंईक गुणग्रहण करवानुं जे माने छे तेणे
खरेखर गुणने ओळख्या नथी अने आत्माना गुणग्राहीस्वरूपने पण ओळख्युं नथी; एवा जीवने गुणग्राहीनय
होतो नथी. जेणे सम्यग्दर्शनादि कांईक गुणोनुं ग्रहण कर्युं होय ते निमित्तमां आरोप करीने एम कही शके के
‘अहो! मारा गुरु पासेथी में गुणनुं ग्रहण कर्युं, मारा गुरुए मने सम्यग्दर्शन आप्युं’ –अने तेने गुणग्राहीनय
होय. पण जेणे हजी साचा गुरुने ज जाण्या नथी, गुणनुं ग्रहण कर्युं नथी, तेने तो ‘गुरुए गुण आप्या’ एम
कहेवानुं उपचारथी पण नथी एटले तेने गुणग्राहीनय होतो नथी.
जुओ, अहीं एम पण कह्युं छे के श्रीगुरु जे कांई समजावे ते बधुं समजीने ग्रहण करवानी आत्मानी
ताकात छे. ‘घणी सूक्ष्म वात होय ते आत्मा ग्रहण न करी शके’ –एम नथी कह्युं. एटले गमे तेवी सूक्ष्म वात
होय ते समजवानी आत्मानी ताकात छे, –सम्यग्दर्शनथी मांडीने ठेठ केवळज्ञान सुधीना गुणने ग्रहण करी शके
एवो आत्मानो धर्म छे.
वळी, आत्मा ‘गुणग्राही’ छे एटले गुणने ग्रहण करवानो तेनो स्वभाव छे, पण दोषने के परने ग्रहण
करे एवो आत्मानो स्वभाव नथी. दोषने के निमित्तने जाणे छे खरो पण तेने ग्रहण करतो नथी, सम्यग्दर्शनादि
गुणने ज ग्रहण करे छे. हवे ते गुणोनुं ग्रहण तो स्वभावना आश्रये ज थाय छे, तेथी आ गुणीनयमां पण
शुद्धचैतन्यस्वभावना आश्रयनो ज अभिप्राय छे.
निमित्त तरीके गुरु पासेथी गुणनुं ग्रहण करे छे, –तेमां पण ए वात आवी के गुरु जेवुं समजावे छे तेवुं
ज पोते समजी जाय छे, ज्ञानी गुरुना अभिप्रायथी जराय विपरीत ग्रहण करतो नथी. गुरु कहे कांईक अने
शिष्य ग्रहण करे बीजुं–एम नथी, पण जेवुं गुरु कहे तेवुं ज शिष्य ग्रहण करे–एवो तेनो गुणग्राही धर्म छे.
श्रीगुरु आत्माना शुद्धस्वभाव उपर जोर देवा मांगे छे ने शिष्य पण एवुं ज समजीने गुणग्रहण करे छे. श्रीगुरु
कहे छे के हे जीव! तें तारी भूलथी अनंत भवो कर्या छे छतां एक अंतर्मुहूर्तमां केवळज्ञान लेवानी तारा
आत्मानी ताकात छे, –आवा तारा स्वभावनो तुं विश्वास कर तो तेमां तारुं भवभ्रमण मटे. गुरुनी आवी
शिक्षा झीलीने ते प्रमाणे करवानी शिष्यनी ताकात छे. जेम शाही पडी होय तेने चूसी लेवानो ब्लोटिंगपेपरनो
स्वभाव छे, अथवा कोरा घडा उपर पाणीनुं टीपुं पडतां जेम ते घडो पाणीने चूसी ल्ये छे, तेम श्रीगुरु जेवुं कहे
छे तेवुं झीलीने शिष्य चूसी ल्ये छे ने पोतामां गुण प्रगट करे छे. –आवो गुणग्राही आत्मा छे.
पोताना गुणमां जे निमित्त होय ते गुरुनुं ज्ञान करे, त्यां एम पण कहेवाय के आ गुरुए मने
चैतन्यविद्या आपी. गुरुए विद्या शीखवी, पण ते ग्रहण करी कोणे? गुरुए जे शीखव्युं ते ग्रहण करवानो
स्वभाव तो आत्मानो छे, कांई गुरु पराणे ग्रहण करावी देता नथी. गुणने ग्रहण करे एवो गुणग्राहीधर्म
आत्मानो पोतानो छे. आ रीते गुणीनयनुं वजन पर निमित्त उपर नथी, –जेवुं निमित्त होय तेवुं ज्ञान थाय
एम नथी, पण गुणग्राहीधर्मनुं धारक अंतरमां शुद्ध स्वाधीन चैतन्यद्रव्य छे तेने देखवुं ते आ गुणनयनुं
तात्पर्य छे.
नय छे ते धर्मने जुए छे; धर्म एकलो रहेतो नथी पण अनंत धर्मना पिंड एवा धर्मीना आधारे धर्म
रहे छे, एटले धर्मीनी (चैतन्यद्रव्यनी) द्रष्टि राखीने तेना एकेक धर्मने जाणे छे ते ज साचो नय छे. गुणीनयथी
एम कहेवाय के आत्मा गुरु पासेथी गुणनुं ग्रहण करे एवो गुणग्राही छे. परंतु त्यां धर्मी जाणे छे के आवो
गुणग्राहीधर्म पण मारा आत्मद्रव्यनो छे, मारो धर्म कांई गुरुना आधारे नथी; तेथी मारे मारा आत्मा सामे ज
जोवानुं छे. आ प्रमाणे धर्मी जीव नयना बधां पडखांने स्व तरफ वाळीने अंतरमां पोताना आत्माने
शुद्धचैतन्यस्वरूपे देखे छे. शुद्धचैतन्यमात्र आत्मा उपर द्रष्टि करे तेने ज आ नयोनुं ज्ञान साचुं थाय छे.
जेम उष्णता अग्निने बतावे छे केम के ते तेनो स्वभाव छे; तेम आ गुणग्राहीधर्म कई वस्तुने बतावे छे?