पण तेनुं भान करीने भेदज्ञान करनार जीवने पोताने माटे कर्म अने विकार अनादि–सांत थई जाय छे, तथा
केवळज्ञान प्रगटे छे ते पोताने माटे सादि–अनंत छे. कारणशुद्धपर्याय तो बधा जीवोने अनादिअनंत छे. आ
बाजु ‘कारण’ तरफ वळ्यो त्यां निर्मळकार्य प्रगटी जाय छे, ने आगमपद्धति (कर्म तथा विकार) छूटी जाय छे.
ज्ञानीने पण जेटलो विकार थाय छे ते आगमपद्धतिमां जाय छे, ने जे शुद्धता प्रगटी छे ते मोक्षमार्गरूप छे.
आत्माना सहज शुद्धचेतनापरिणामरूप अध्यात्मपद्धति अनादिअनंत छे, तेना आश्रये मोक्षमार्ग तथा मोक्षरूपी
कार्य प्रगटी जाय छे. आ रीते कारणना मननथी कार्य प्रगटी जाय छे.
(१) नवी नवी विकारी पर्याय समये समये थती आवे छे,
(२) जडकर्मनी अवस्था नवी नवी थती आवे छे;
–आ बंने प्रकारो आगमपद्धतिमां छे.
(३) द्रव्यना सद्रश वर्तमानरूप शुद्धआत्मपरिणाम अथवा जीवत्वपरिणाम, अने
(४) अनंतगुणोनी सद्रशरूप शुद्धपरिणति;
–आ बंने प्रकारो अध्यात्मपद्धतिमां छे.
आमांथी शुद्ध परिणामरूप अध्यात्मपद्धतिमां आत्मानो अधिकार छे, एटले के ते आत्मानो असली
द्रव्योने तो एमने एम राखीने अहीं परिणामनी परंपरा बतावी छे. तेमां अध्यात्मपद्धतिमां जे
शुद्धचेतनापरिणाम (द्रव्यरूप अने भावरूप) कह्या ते परिणाम उत्पादव्ययरूप नथी–विसद्रश नथी, पण सदा
एकरूप सद्रशपणे वर्ते छे; जीवद्रव्यमां सदाय डुबेली तन्मयरूप शुद्धपरिणति धु्रवपणे जीव साथे ज सदा वर्ते छे,
तेनी आ वात छे. मोक्षमार्ग के मोक्षपरिणतिनी पण आ वात नथी. हा, एटलुं खरुं के आ धु्रवपरिणति
शुद्धकारणपणे वर्ते छे तेना आश्रये मोक्षमार्ग तेमज मोक्षपर्याय प्रगटी जाय छे. त्रिकाळी स्वभावनुं वर्तमान
परिणमन सदा एकसरखुं शुद्धपणे वर्ती रह्युं छे, ते ज सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनो ने मोक्षनो आधार छे.
जाय छे. सर्वज्ञना मार्ग सिवाय वस्तुस्वभावनी आवी अलौकिक वात बीजे क्यांय त्रणकाळमां न होय, ने
सर्वज्ञना भक्त सिवाय (–साधक सिवाय) कोई आ वातने यथार्थ मानवा समर्थ नथी. आ वात यथार्थपणे
कबूलनारने वर्तमान वर्तती आखी वस्तु श्रद्धामां आवी जाय छे एटले ते सम्यग्द्रष्टि थई जाय छे.
बनारसीदासजीए आ परमार्थवचनिकामां आगम–अध्यात्मनुं स्वरूप लखीने अलौकिक वात करी छे. जे जीव
अंतरनी प्रीतिपूर्वक आ वात सांभळशे, समजशे, श्रद्धशे, तेनुं अपूर्व कल्याण थशे.