Atmadharma magazine - Ank 141
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २४८१ “आत्मधर्म” : २१५ :
चेतनापद्धति’ कहीने तेमां अनंतगुणोना परिणाम लीधा. ‘शुद्धचेतनापरिणाम’ कह्या तेमां एकला ज्ञानदर्शनना
परिणामनी वात नथी परंतु अभेदपणे तेमां अनंत गुणोना परिणाम आवी जाय छे, तेने अहीं
‘जीवत्वपरिणाम कह्या छे. आ रीते जीवद्रव्यमां अने तेना दरेक गुणोमां सद्रशरूप शुद्धपरिणाम अनादिअनंत
पारिणामिकभावे शुद्धकारणपणे वर्ती रह्या छे तेने अहीं अध्यात्मरूप शुद्धचेतनापद्धति कहेल छे, नियमसारमां
तेने कारणशुद्धपर्याय तरीके वर्णव्या छे. आ कारणशुद्धपरिणाम बधा जीवोमां त्रिकाळ वर्तमान–वर्तमान वर्ती
रह्या छे, संसारदशा वखते पण छे ने अज्ञानीने पण छे. ‘परिणाम’ कह्या छतां आ द्रव्यार्थीकनयना विषयमां
समाय छे. जुओ, आ भावो आत्मामांथी आवे छे, आत्माना स्वभावमां जे चीज वर्ती रही छे तेने विषय
करवानी आ वात छे. आ अंतरनी अलौकिक समजवा जेवी वात छे.
आगमपद्धतिमां जीवना विकारी परिणामने पुद्गलाकार कह्या हता, अहीं अध्यात्मपद्धतिमां
शुद्धचेतनापरिणाम अर्थात् कारणशुद्धपर्याय छे ते जीवना स्वभाव–आकारे छे. स्वभाव आकार परिणति जीवमां
सदाय शुद्धपणे वर्ती रही छे.
पद्धति एटले शुं? –परंपराए चाल्यो आवतो प्रवाह, अथवा पद्धति एटले रीतरिवाज; परंपराथी जे
रिवाज चाल्यो आवतो होय तेने पद्धति कहे छे. आत्माना रीतरिवाज शुं अर्थात् आत्मानी पद्धति शुं? ते अहीं
बतावे छे. भाई! शुद्धचेतनापरिणामनी परंपरा ते ज तारा आत्मानी पद्धति छे, तेमां ज तारा आत्मानो अधिकार
छे. विकारनी परंपरामां आत्मानो अधिकार नथी एटले के आत्माना स्वभावमां विकारनुं स्वामीत्व नथी.
कर्मपद्धतिरूप पर्याय ते आगम, ने
शुद्धचेतनापद्धतिरूप पर्याय ते अध्यात्म;
ते बंने अनादिथी साथे ने साथे चाल्या आवे छे; छतां आगममां अध्यात्म नथी ने अध्यात्ममां आगम
नथी, एटले के विकारनी परंपरामां आत्मानो स्वभाव नथी, ने आत्माना स्वभावपरिणामनी परंपरामां
विकारनो अधिकार नथी. कर्मपद्धतिमां आत्मानो अधिकार नथी, एटले विकारमां शोधवाथी आत्मा नहि जडे;
शुद्धचेतनापद्धतिमां ज आत्मानो अधिकार छे. जेमां आत्मानुं स्वामीपणुं छे, जे परिणाममां आत्मा सदाय रह्यो
छे, एवा शुद्धचेतनाना रीतरिवाजरूप शुद्धात्मपरिणाम छे, ते अध्यात्मरूप छे, तेमां आत्मानो अधिकार छे,
एटले तेनी सन्मुखताथी आत्मा मलशे.
(१) एक तो विकार तथा कर्मनी धारा अनादिथी परंपरा चाली आवे छे, ते आगमपद्धति;
(२) बीजी शुद्धतानी धारा एटले के शुद्धचेतनापरिणतिरूप धारा पण अनादिथी परंपरा चाली आवे छे,
ते अध्यात्मपद्धति.
–आम विकार अने शुद्धता बंनेनी धारा अनादि परंपराथी चाली आवे छे. आमांथी ज्यां शुद्धतानी
धाराने [–कारणशुद्धपर्यायने] कारणपणे स्वीकारी त्यां मोक्षमार्गरूप निर्मळपर्यायनी धारा शरू थाय छे. अहीं
तो मुख्य बे ज भाग पाड्या छे, एक तरफ जडकर्म अने तेना तरफना भावरूप पुद्गलाकार अशुद्धपरिणति ते
कर्मपद्धति; ने बीजी तरफ शुद्धचेतनास्वभाव ने ते स्वभावना आकारे शुद्धचेतना परिणति ते शुद्धचेतनापद्धति;
एमांथी कर्मपद्धति तरफनुं वलण ते संसार छे ने शुद्धचेतनापद्धति तरफनुं वलण ते मोक्षमार्ग छे.
आगम तथा अध्यात्म बंने पद्धतिमां अनंतता कही, तेनो अर्थ एम समजवो के: आगमरूप
कर्मपद्धतिमां तो जीवनो विकार अनंत प्रकारनो छे अने तेना निमित्तरूप कर्ममां पण पुद्गलो अनंतानंत छे,
तेथी ते आगमपद्धतिमां अनंतता छे; अने अध्यात्मपद्धति शुद्धजीवद्रव्यने आश्रित छे तेमां पण ज्ञान दर्शन–
सुख–वीर्य वगेरे अनंतगुणो होवाथी, ते अनंतगुणना अनंत परिणामो एक समयमां छे, तेथी
अध्यात्मपद्धतिमां पण अनंतता थई; आ रीते बंने पद्धतिमां अनंतता समजवी.
विभावनी परंपरा अनादिथी चाले छे तेने आगमपद्धति कही ने शुद्धतानी परंपरा अनादिथी चाले छे
तेने अध्यात्मपद्धति कही.