परिणामनी वात नथी परंतु अभेदपणे तेमां अनंत गुणोना परिणाम आवी जाय छे, तेने अहीं
‘जीवत्वपरिणाम कह्या छे. आ रीते जीवद्रव्यमां अने तेना दरेक गुणोमां सद्रशरूप शुद्धपरिणाम अनादिअनंत
पारिणामिकभावे शुद्धकारणपणे वर्ती रह्या छे तेने अहीं अध्यात्मरूप शुद्धचेतनापद्धति कहेल छे, नियमसारमां
तेने कारणशुद्धपर्याय तरीके वर्णव्या छे. आ कारणशुद्धपरिणाम बधा जीवोमां त्रिकाळ वर्तमान–वर्तमान वर्ती
रह्या छे, संसारदशा वखते पण छे ने अज्ञानीने पण छे. ‘परिणाम’ कह्या छतां आ द्रव्यार्थीकनयना विषयमां
समाय छे. जुओ, आ भावो आत्मामांथी आवे छे, आत्माना स्वभावमां जे चीज वर्ती रही छे तेने विषय
करवानी आ वात छे. आ अंतरनी अलौकिक समजवा जेवी वात छे.
सदाय शुद्धपणे वर्ती रही छे.
बतावे छे. भाई! शुद्धचेतनापरिणामनी परंपरा ते ज तारा आत्मानी पद्धति छे, तेमां ज तारा आत्मानो अधिकार
छे. विकारनी परंपरामां आत्मानो अधिकार नथी एटले के आत्माना स्वभावमां विकारनुं स्वामीत्व नथी.
विकारनो अधिकार नथी. कर्मपद्धतिमां आत्मानो अधिकार नथी, एटले विकारमां शोधवाथी आत्मा नहि जडे;
शुद्धचेतनापद्धतिमां ज आत्मानो अधिकार छे. जेमां आत्मानुं स्वामीपणुं छे, जे परिणाममां आत्मा सदाय रह्यो
छे, एवा शुद्धचेतनाना रीतरिवाजरूप शुद्धात्मपरिणाम छे, ते अध्यात्मरूप छे, तेमां आत्मानो अधिकार छे,
एटले तेनी सन्मुखताथी आत्मा मलशे.
(२) बीजी शुद्धतानी धारा एटले के शुद्धचेतनापरिणतिरूप धारा पण अनादिथी परंपरा चाली आवे छे,
कर्मपद्धति; ने बीजी तरफ शुद्धचेतनास्वभाव ने ते स्वभावना आकारे शुद्धचेतना परिणति ते शुद्धचेतनापद्धति;
एमांथी कर्मपद्धति तरफनुं वलण ते संसार छे ने शुद्धचेतनापद्धति तरफनुं वलण ते मोक्षमार्ग छे.
तेथी ते आगमपद्धतिमां अनंतता छे; अने अध्यात्मपद्धति शुद्धजीवद्रव्यने आश्रित छे तेमां पण ज्ञान दर्शन–
सुख–वीर्य वगेरे अनंतगुणो होवाथी, ते अनंतगुणना अनंत परिणामो एक समयमां छे, तेथी
अध्यात्मपद्धतिमां पण अनंतता थई; आ रीते बंने पद्धतिमां अनंतता समजवी.