वर्ते छे–ए निःसंदेह छे. एवी ज रीते आ जीववस्तुना परिणाम पण रंजक–मलिन, संकोच–विस्तार, अज्ञान,
मिथ्यादर्शन, अविरत वगेरे चेतनविकाररूपे थईने परिणमे छे; एवो चेतनविकारभाव तो ते चेतनद्रव्यना
परिणाम विषे ज जोवामां आवे छे, अचेतनद्रव्यना परिणाम विषे ते कदी जोवामां आवतो नथी.
छे ते द्रव्यरूप कर्मपद्धति छे, अने जीवमां अशुद्धतारूप विकारी अवस्थानी जे परंपरा अनादिथी चाली आवे छे
ते भावरूप कर्मपद्धति छे. कर्मपद्धतिना आ द्रव्यरूप तेमज भावरूप ए बंने परिणामोने आगमरूप स्थाप्या. आ
कर्मपद्धतिना परिणाम मोक्षगामी भव्यजीवने अनादिशांत छे, ने मोक्षने माटे नालायक जीवने अनादि–अनंत
छे. आ रीते जीवने ज्यां सुधी संसार छे त्यां सुधी आ परिणामनी परंपरा त्रिकाळवर्ती मानवी. अने
अध्यात्मरूप शुद्धचेतनापद्धतिमां शुद्धपरिणामनी परंपरा छे, ते तो बधाय जीवोने अनादि–अनंत दरेक समये
कर्मपद्धतिनो स्वभाव छे. विकार ते वस्तुनो मूळस्वभाव नथी पण आगंतुकभाव छे. –अनादि परंपराथी ते
चाल्यो आवे छे तेथी तेने ‘आगम’ कहेल छे. जीवना द्रव्य–गुणमां विकार नथी छतां पर्यायमां थयो, ए ज
प्रमाणे पुद्गलना द्रव्य–गुणमां कर्म थवानो स्वभाव न होवा छतां कर्मरूप पर्याय थई, –आवो ज कोई अहेतुक
स्वभाव छे, एम जाणवुं. आ जाणे तो भेदज्ञान थया वगर रहे नहि.
बंने परिणाम अध्यात्मरूप जाणवा.”
शुद्धपरिणामनी परंपरा वर्ती रही छे–तो आ कया शुद्धपरिणाम लेशो? संसारअवस्था वखते जे प्रगट उत्पादरूप
परिणाम छे ते कांई शुद्ध नथी, तेमां तो अशुद्धता छे. जो प्रगट उत्पाद परिणाममां सदाय शुद्धता ज होय तो कोई
वात नथी, केमके आगम तेमज अध्यात्म बंने पद्धतिमां परिणामनी ज वात छे. अध्यात्मपद्धतिमां जे त्रिकाळवर्ती
शुद्धपरिणाम कह्या छे ते धु्रवरूप छे–सदा सद्रशपरिणमनरूप छे. आखा जीवद्रव्यनी धु्रवपरिणतिरूप शुद्धपरिणामनी
जे परंपरा छे ते द्रव्यरूप शुद्धचेतना पद्धति छे. अने ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य वगेरे प्रत्येक गुणोमां धु्रव
परिणतिरूप शुद्ध परिणामनी जे परंपरा छे ते भावरूप शुद्धचेतनापद्धति छे. द्रव्यरूप शुद्धचेतना पद्धतिमां तो
आखा जीवद्रव्यना परिणाम लीधा छे, ने भावरूप शुद्धचेतनापद्धतिमां दरेक गुणना परिणाम लीधा छे.