Atmadharma magazine - Ank 141
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २४८१ “आत्मधर्म” : २२३ :
नथी; एटले तुं साक्षीपणे प्रेक्षक ज रही जा. आवुं साक्षीपणुं कहीने अहीं आत्मानो शुद्धचेतनास्वभाव
बताव्यो छे.
अगुणीनयथी आत्मानो एवो स्वभाव छे के बीजा पासेथी गुणनुं ग्रहण न करे पण साक्षीपणे ज रहे.
गुणीनयथी गुणग्रहणनो विकल्प होय, पण ते विकल्प वखतेय आवा साक्षी–स्वभावनुं धर्मीने भान वर्ते छे,
एटले तेने विकल्पनी मुख्यता नथी पण साक्षीस्वभावनी ज मुख्यता छे, तेनी पर्यायमां क्षणेक्षणे साक्षीपणानुं
परिणमन वधतुं जाय छे ने विकल्प तूटतो जाय छे. साधकने ‘अगुणीनय’ सदाय न होय, पण साक्षीपणानुं
परिणमन तो सदाय वर्ती ज रह्युं छे. ‘नय’ तो ते तरफनो उपयोग मूके त्यारे ज होय.
–आ रीते ३७मा अगुणीनयथी आत्मानुं वर्णन पूरुं थयुं.
(हवे, साधकने पर्यायमां कंईक रागादि थाय छे तेटलुं रागनुं कर्तापणुं छे, अने स्वभावनी मुख्यतामां ते
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी
केटलीक शक्तिओ
एक नोंध: ‘आत्मधर्म’ मां आ ४७ शक्तिओ उपरनां पू. गुरुदेवना जे प्रवचनो
प्रसिद्ध थाय छे ते मुख्यपणे आठमी वखतनां प्रवचनो छे; ते आठमी वखतनां प्रवचनोने
मुख्य राखीने तेनी साथे अत्यार सुधी छठ्ठी–सातमी तेमज नवमी वखतनां प्रवचनोनो
मुख्य सार पण उमेरी देवामां आवतो हतो; ते उपरांत हवे दसमी वखत पण प्रवचनो
थई गया होवाथी आ १८मी शक्तिथी दसमी वखतना प्रवचनोनो मुख्य सार पण उमेरी
देवामां आवे छे. आ रीते आ ४७ शक्तिओ उपरनां पू. गुरुदेवना छठ्ठी–सातमी–आठमी–
नवमी ने दशमी एम पांच वखतनां प्रवचनोनो सार आ लेखमाळामां प्रसिद्ध थाय छे.
आ उपरथी जिज्ञासु वांचकोने ख्याल आवशे के आ विषय केटलो महत्त्वनो छे!
उत्पाद – व्य – धु्रवत्व शक्ति
[२]
(अंक १३९थी चालु)
आत्मानी उत्पाद–व्यय–धु्रवत्वशक्तिनुं वर्ण चाले छे. आत्मामां ज्ञाननी साथे उत्पाद–व्यय–धु्रवपणुं पण
समये समये बनी ज रह्युं छे. आत्मामां अनंत गुणो छे ते बधाय गुणपणे धु्रव टकीने, दरेक समये एक
अवस्थाथी