आनंद भले एवो ने एवो ज रहे छे, पण पहेलां समयनो जे आनंद हतो ते ज बीजा समये नथी रहेतो, बीजा
समये आनंदनी नवी अवस्थानो उत्पाद थाय छे, ने पहेली अवस्थानो व्यय थाय छे, तथा आनंद गुणनी तो
सळंगपणे धु्रवता रहे छे. आ रीते पर्याय उत्पादव्ययथी क्रमवर्ती छे, ने गुणो धु्रवपणे अक्रमवर्ती छे. आवो
वस्तुनो स्वभाव छे.
तेमां उत्पाद–व्ययरूप पर्यायो क्रमवर्ती छे, एक साथे बधी पर्यायो नथी वर्तती, पण एक पछी एक वर्ते छे; ने
धु्रवरूप गुणो अक्रमवर्ती छे, बधा गुणो त्रणे काळ एक साथे ज वर्ते छे.
एवी पराश्रयबुद्धि छूटी जाय, ने पोतामां धु्रवस्वभाव तरफ वलण थई जाय; धु्रव साथे पर्यायनी एकता थतां
निर्मळ पर्यायरूप मोक्षमार्ग प्रगटे छे.
व्यय–धु्रवपणुं छे. आवुं उत्पाद–व्यय–धु्रवपणुं वस्तुमां त्रिकाळ छे, पण ज्यारे तेनुं भान करीने स्वाश्रये परिणमे
त्यारे निर्मळतानो उत्पाद ने मलिनतानो व्यय थाय छे.
उत्पाद–व्यय–धु्रव माराथी ज छे’ एम जेणे नक्की कर्युं–तेणे कोनी सामे जोईने ते नक्की कर्युं? मारा स्वभावथी ज
मारा उत्पाद–व्यय–धु्रव छे–एम नक्की करनारनी द्रष्टि तो पोताना स्वभाव उपर आवी, एटले एकला विकारनी
उत्पत्ति तेने रहे ज नहि, तेने तो स्वभावद्रष्टिमां निर्मळ पर्याय प्रगटीने साधकदशा शरू थई जाय. जेने आवी
साधकदशा थाय तेने ज पर्यायना विकारनुं यथार्थ ज्ञान थाय. आ मूळभूत न्याय छे.
परिणमन शरू थया विना रहे नहि. त्रिकाळी गुणी साथे अभेद थईने पर्यायनुं परिणमन थाय ते धर्म छे.
सर्वज्ञदेवने मान्या ज नथी. तुं सर्वज्ञने नथी देखतो पण एकला विकारने ज देखे छे, क्रमबद्धपर्यायनी पण तने
खबर नथी. सर्वज्ञदेवने प्रतीतमां ल्ये तेने तो पोतामां साधकदशानो क्रम शरू थई जाय, एकलो विकारनो क्रम
तेने रहे ज नहि. जेने स्वभावना आश्रये अमुक निर्मळ परिणमन थयुं छे ने बाकी अल्प विकार रह्यो छे–एवा
साधक जीवनी आ वात छे. तेने ज पोताना क्रम–अक्रमस्वभावनी (–उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप स्वभावनी) तेम ज
सर्वज्ञदेवनी खरी प्रतीत थई छे. एकला विकारना वेगे तणातो आत्मा स्वभावशक्तिनी प्रतीत क्यांथी करे?
विकारना प्रवाहमां तणाई रह्यो छे ते जीव कोना आधारे स्वभावनी प्रतीत करशे? ने कोना आधारे सर्वज्ञने
मानशे? स्वभाव तरफ वळेलो जीव विकारने पण जेम छे तेम जाणशे, ने ते ज सर्वज्ञताने यथार्थपणे मानशे.
(२) बीजा कोई एम कहे के सर्वज्ञभगवाने आपणी पर्यायमां विकार थवानुं ज जोयुं छे माटे विकार