उत्पत्ति थती नथी, माटे पर्यायनुं लक्ष पण हितनुं कारण नथी. पूर्ण शक्तिथी भरेलो धु्रवस्वभाव छे तेना लक्षे ज
सम्यग्दर्शनादि निर्मळपर्याय प्रगटे छे ने ते ज हितरूप छे. अहीं आचार्य भगवान आत्मानी शक्तिओ बतावीने
तेनो ज आश्रय कराववा मांगे छे.
छूटीने, अनंत गुणना पिंडरूप अखंड स्वभाव उपर द्रष्टि थंभे छे, ने ते द्रष्टिमां क्रमे क्रमे निर्मळ पर्यायोनी
उत्पत्ति थाय छे. –आनुं नाम साधकदशा ने आ मोक्षनो मार्ग!
थई जाय तो अल्पकाळमां ते जीवनी मुक्ति थया वगर रहे नहि. ‘मारो स्वभाव शुं छे’ एम लक्ष करीने जीवे
–पोताना घरनुं करीने बेसाडयुं नथी.
जाय. –पण एम कदी बनतुं नथी. ‘पर्याय’ नवी उत्पन्न थाय छे ने तेनो नाश थाय छे. पण गुण कदी नवा
उत्पन्न थता नथी तेमज तेनो कदी नाश थतो नथी. गुणो तो वस्तुनिष्ठ छे, वस्तुमां अनादिअनंत वसेला छे.
थाय पण तेना पर्यायोनो नाश थाय. जेमके जीवमां सिद्ध पर्यायनी उत्पत्ति नवी थाय, ने संसारपर्यायनो नाश
थाय, पण कांई जीवद्रव्य के तेना ज्ञानादिगुणो नवा उत्पन्न न थाय, तेमज तेनो नाश न थाय; ते तो सिद्धदशा
वखते के संसारदशा वखते एकरूप धु्रव रहे छे. आवो उत्पाद–व्यय–धु्रवत्व स्वभाव छे.
साथे वर्तती नथी, एवो ज तेनो पर्यायस्वभाव छे. हार भांगीने मुगट थयो, त्यां ते अवस्था सोनीए नथी
बनावी, पण सोनाना ज उत्पाद–व्यय–धु्रव स्वभावने लीधे तेनामां मुगट अवस्थानी उत्पत्ति ने हार
अवस्थानो व्यय तथा सोनानी धु्रवता छे. वस्तुना उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वभावने जे नथी जाणतो ते ज बीजाने
लीधे अवस्था थवानुं माने छे, तेनी मान्यता वस्तुस्वभावथी विपरीत छे एटले के खोटी छे.
अवस्थाने ईच्छे छे तेने ते अवस्थानो व्यय थतां द्वेष थाय छे, जे पुरुष मुगट–अवस्थाने ईच्छे छे तेने ते
अवस्थानी उत्पत्ति थतां राग थाय छे, पण जे पुरुष सोनानी धु्रवताने देखे छे तेने ते संबंधी रागद्वेष थतो नथी
केमके सोनुं तो हार वखते के मुगट वखते तेटलुं ने तेटलुं धु्रव छे. तेम आत्माना धु्रव ज्ञानानंद स्वभावना
आश्रये वीतरागता थाय छे, ने क्षणिक पर्यायना उत्पाद–व्ययना लक्षे तो राग–द्वेष थाय छे.