: अषाढ : २४८१ “आत्मधर्म” : २११ :
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अध्यात्मरूप शुद्धचेतनापद्धति त्रिकाळ छे
[परमार्थवचनिकामांथी आगम – अध्यात्मना स्वरूप उपरनां प्रवचनो]
अहो! आ वातनी जेणे हा पाडी ते जीव मोक्षमार्गमां आव्यो.
द्रव्यस्वभावनुं वर्तमान परिणमन मारा पूरा कारणपणे वर्ती रह्युं छे
एवो ज्यां स्वीकार थयो त्यां अपूर्व सम्यग्दर्शन अने मोक्षमार्गनी
शरूआत थई जाय छे. सर्वज्ञना मार्ग सिवाय वस्तुस्वभावनी आवी
अलौकिक वात बीजे क्यांय त्रणकाळमां न होय, ने सर्वज्ञना भक्त (–
साधक) सिवाय कोई आ वातने यथार्थ मानवा समर्थ नथी. आ वात
यथार्थपणे कबूलनारने वर्तमान वर्तती आखी वस्तु श्रद्धामां आवी जाय
छे एटले ते सम्यग्द्रष्टि थई जाय छे.
आ, ल्यो आ जैन परमेश्वर सर्वज्ञदेवना मार्गनुं रहस्य! आ
वातनी यथार्थ समजण ते सर्वज्ञ थवानो मार्ग छे. जे जीव अंतरनी
प्रीतिपूर्वक आ वात सांभळशे, समजशे, श्रद्धशे, तेनुं अपूर्व कल्याण
थशे. –पू. गुरुदेव
* नियमसारनी त्रीजी गाथामां शुद्धरत्नत्रयरूप मोक्ष–मार्गने कार्यनियम कह्यो अने तेनी साथे
शुद्धज्ञानचेतना–परिणामने कारणनियम कहीने वर्णन कर्युं. ए रीते त्यांथी ज कारणशुद्धपर्यायनो ईशारो करी
दीधो छे.
* पछी दसमी गाथामां उपयोगना भेदोनुं वर्णन करतां कारणस्वभावज्ञानउपयोग अने
कार्यस्वभावज्ञान उपयोगनी वात करी छे, तेमां पण आ ध्वनि छे. कारण–ज्ञानने अगीयार–बारमी गाथामां
‘स्वरूपप्रत्यक्ष’ कह्युं छे; अने आ कथनने ‘ब्रह्मोपदेश’ कहेल छे.
* त्यार पछी तेरमी गाथामां कारणस्वभावदर्शन उपयोग अने कार्यस्वभावदर्शनउपयोगनुं अथवा
कारणद्रष्टि अने कार्यद्रष्टिनुं खास वर्णन करीने तेमां आ वात मूकी दीधी छे.
* अने पंदरमी गाथामां स्वभावपर्यायना कारणशुद्ध पर्याय अने कार्यशुद्धपर्याय एवा बे प्रकारोनुं वर्णन
कर्युं छे,