: २१२ : “आत्मधर्म” : अषाढ : २४८१
तेमां आ कारणशुद्धपर्यायनुं स्पष्ट वर्णन कर्युं छे. आ उपरांत बीजे पण अनेक ठेकाणे आ वातना भणकार
पद्मप्रभमलधारिदेवे मूकया छे. ठेकाणे ठेकाणे कार्य अने कारणने साथे ने साथे वर्णव्या छे, एटले एकला क्षणिक कार्यनी
पर्यायबुद्धि न थाय पण कारणरूप धु्रवस्वभावनी सन्मुख थईने पर्याय निर्मळ उत्पाद ते ज खरुं कार्य थाय छे.
* वळी समयसार गाथा ९०मां कह्युं छे के ‘परमार्थथी तो उपयोग शुद्ध निरंजन अनादिनिधन वस्तुना
सर्वस्वभूत चैतन्यमात्रभावपणे एक प्रकारनो छे.’ –तेमांथी पण कारणशुद्धपर्यायनो ध्वनि नीकळे छे.
* अने पं. बनारसीदासजीए परमार्थवचनिकामां आगमअध्यात्मनुं स्वरूप वर्णव्युं छे तेमां पण
‘अध्यात्मरूप शुद्धचेतनापद्धति’ वर्णवीने आ वात बतावी छे. त्यां तो छेवटे कह्युं छे के आ वस्तु वचनातीत छे,
ईन्द्रियातीत छे, ज्ञानातीत एटले के तर्कातीत छे; विशेष शुं लखवुं? जे ज्ञाता हशे ते तो थोडुं ज लखेलुं पण बहु
समजशे. अंतरनी आ वात समजे तेनुं कल्याण थया वगर रहे नहि. नियमसारनी त्रीजी गाथामां
‘शुद्धचेतनापरिणाम’ कहीने वर्णन कर्युं छे अने अहीं ‘शुद्धचेतनापद्धति’ कहीने तेनुं ज वर्णन कर्युं छे. आमां
घणी सरस वात छे, तेथी ते वंचाय छे. अत्यारे बीजी वात लक्षमांथी काढी नांखीने आ कई शैली कहेवाय छे ते
समजवुं.
“वस्तुनो जे स्वभाव तेने आगम कहीए छीए; आत्मानो जे अधिकार तेने अध्यात्म कहीए छीए;
आगम तथा अध्यात्मस्वरूपभाव आत्मद्रव्यना जाणवा.
ते बंने भाव संसारअवस्था विषे त्रिकाळवर्ती मानवा.”
जुओ, आ सक्करपारा जेवो सरस अधिकार पीरसाय छे. वात झीणी छे, समजाय तेने समजवुं, न
समजाय तेणे ‘आ कोई अचिंत्य मोक्षमार्ग कहेवाय छे’ एम महिमा लावीने सांभळवुं.
शास्त्रोने आगम कहेवाय छे ते वात अहीं नथी; तेमज जेमां छए द्रव्योनुं वर्णन होय ते आगम, अने
जेमां आत्मानुं ज प्रधानपणे वर्णन होय ते अध्यात्म, –एवो पण अहीं आगम–अध्यात्मनो अर्थ नथी. अहीं
तो शैलि ज जुदी छे. ‘वस्तुनो जे स्वभाव तेने आगम कहे छे.’ ‘वस्तुनो स्वभाव’ कहेतां अहीं ‘पर्यायनो
स्वभाव’ समजवो; आगमपद्धति तेमज अध्यात्मपद्धति ए बंनेमां अहीं परिणामनी ज वात छे. विकारीभाव
मूळ द्रव्य–गुणमां नथी पण पर्यायमां अनादिथी परंपरा चाल्यो आवे छे तेथी ते आगमपद्धतिरूप छे. एक
समय पूरती पर्याय ते विकारने टकावी राखे छे माटे ते पर्यायनो स्वभाव छे. विकारना निमित्तरूप कर्म छे तेने
पण आगमपद्धतिमां लेशे.
अध्यात्मपद्धति ते तो आत्माना स्वाभाविक परिणाम छे, ने आगमपद्धति ते आत्मा साथे संबंध
राखनारा परिणाम छे. आत्मानी पर्यायमां विकार अनादिथी परंपरा थया करे छे, अने तेना निमित्तरूप कर्मनो
संबंध पण अनादिथी छे; ते विकार अने कर्म, नथी तो आत्माना स्वभावमां के नथी पुद्गलना स्वभावमां; कर्म
थवानो कोई त्रिकाळीगुण पुद्गलमां नथी, तेमज विकार थवानो कोई त्रिकाळीगुण आत्मामां नथी, ते क्षणिक
आगन्तुक भावो छे, तेने अहीं आगमपद्धति कही छे. आगमपद्धति ते आत्मानो मूळ शुद्धस्वभाव नथी पण
आत्मा साथे क्षणिक संबंध राखनारा परिणाम छे.
आत्मानो जे अधिकार तेने अध्यात्म कहीए छीए. अध्यात्मपद्धतिमां त्रिकाळशुद्धचेतनापरिणाम लेशे, ते
आत्मानो मूळ स्वभाव छे तेथी तेमां आत्मानो अधिकार कह्यो छे.
आ आगम तथा अध्यात्मस्वरूप भावो आत्मद्रव्यना जाणवा. अध्यात्मस्वरूप भावो तो आत्माना
शुद्धस्वभावपरिणाम छे, ने आगमरूप भावो ते क्षणिक विभावरूप छे, ते विभावमां कर्म निमित्त छे तेथी ते
कर्मने पण अहीं आत्मानो भाव कहेल छे.
‘आ आगमरूप तथा अध्यात्मरूप बंने भावो संसार अवस्था विषे त्रिकाळवर्ती मानवा.’ जुओ, आमां
मूळ मुदे छे. विभाव अने कर्मपरिणामरूप आगमपद्धति संसार अवस्थामां सदाय वर्ते छे, ए तो समजाय तेवी
वात छे; परंतु ते संसारअवस्था वखतेय अध्यात्मपद्धतिरूप शुद्धचेतनापरिणाम पण सदाय वर्ती रह्या छे, खास
अलौकिक वात छे; एमांथी कारणशुद्धपर्यायनो ध्वनि नीकळे छे.