
सम्यग्ज्ञाननी उत्पत्ति थाय छे.
उत्तर:– सांभळवाना कारणे ज्ञान नथी थतुं–ए वात साची, –पण ते नक्की कोणे कर्युं? जेणे
जिज्ञासु भूमिकामां मिथ्यात्वना निमित्तो तरफनुं वलण छूटीने सत्ना निमित्तो तरफ ज वलण जाय.
अने ज्ञानी पासेथी सत्ना श्रवणनो भाव, सत् श्रवणनो प्रेम ने उत्साह आवे. ‘वाणीथी ज्ञान थतुं
नथी माटे सांभळवानुं शुं काम छे!’ एवो स्वच्छंदनो भाव तेने आवे ज नहीं. सत्ना श्रवण वखते
पण भाव तो पोतानो घंटाय छेने! हा श्रवण वखतेय निमित्त उपर, राग उपर के पर्याय उपर तेनुं
वजन न होय, पण ज्ञानी जे स्वभाव समजवा मांगे छे ते स्वभाव तरफ ज तेनुं वजन होय...
ज्यांथी ज्ञाननो प्रवाह आवे छे एवा द्रव्यस्वभावनुं अवलंबन करवानुं ज्ञानी बतावे छे. ने खरा
श्रोतानुं वजन पण तेना उपर ज छे. आ सिवाय रागथी के वाणीथी ज लाभ मानीने तेना उपर जे
वजन आपे ते खरो श्रोता नथी, केमके ज्ञानी एम कहेता ज नथी.
थई गयो छे, ने ते रागनुं लक्ष सत् निमित्त तरफ ज वळे. ते राग अने श्रवण वखतेय ज्ञानीनी
रुचिनुं जोर तो पोताना सत्स्वभावमां ज वळेलुं छे, निमित्त उपर के राग उपर तेनी रुचिनुं जोर
नथी. रुचिनुं जोर कई तरफ काम करी रह्युं छे तेना उपर धर्म–अधर्मनो आधार छे. आत्मानो
उत्पाद–व्यय–ध्रुवस्वभाव छे तेने ओळखे तो रुचिनुं जोर पर उपर के विकार उपर रहे ज नहि,
ध्रुवस्वभावमां ज रुचिनुं जोर वळी जाय. आत्ममां उत्पाद–व्यय–ध्रुवता वगेरे अनंतशक्तिओ एक
साथे परिणमी रही छे.
ज्ञानस्वभावनी प्रतीत करी तेमां आ बधुं आवी जाय छे. पोताना ज्ञानस्वभावनी प्रतीतने साथे
भेळव्या वगर एकला भगवानना नामे माने ते यथार्थ मार्ग नथी. आ तो पोताना आत्माने साथे
भेळवीने वात छे. पोताना आत्मा तरफ वळीने तेनी प्रतीत कर्या वगर भगवाननी के भगवानना
मार्गनी खरी ओळखाण थाय नहि. अहीं आत्मानी शक्तिओना वर्णनमां पण, अभेद
आत्मस्वभावना आश्रयपूर्वक ज तेनी शक्तिओनो निर्णय थई शके छे–एम समजवुं.
उत्पाद–व्यय–ध्रुवत्वशक्तिनुं वर्णन अहीं पूरुं थयुं.