Atmadharma magazine - Ank 142
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: २३८: आत्मधर्म: १४२
बहार आत्मा कदी वर्ततो नथी, तेथी बहारमां आत्मानुं वर्तन छे ज नहि. अमुक प्रकारे खावुं ने
अमुक वेशमां रहेवुं.–एम खोराकमां के वेशमां खरेखर आत्मानुं वर्तन नथी, तेमां तो जडनुं वर्तन
छे. दरेक द्रव्य पोताना गुण–पर्यायमां वर्ते छे ए ज तेनुं वर्तन छे. आत्मानुं वर्तन केम सुधरे?
अनादिथी संयोगमां ने विकारमां पोतापणुं मानीने विकारी पर्यायमां वर्ते छे ते अशुद्ध वर्तन छे;
संयोगथी ने रागथी पार, ज्ञानानंदस्वभावने ज पोतानुं स्वरूप मानतां निर्मळपर्यायो प्रगटे छे, ते
निर्मळपर्यायोना क्रममां वर्तवुं ते आत्मानुं शुद्ध वर्तन छे, ने ते ज वर्तन मोक्षनुं कारण छे. स्वभाव
तरफ वळीने ज्यां आवुं शुद्ध वर्तन थयुं, तेमां त्याग अने प्रतिज्ञा वगेरे बधुं समाई जाय छे; जे शुद्ध
वर्तन प्रगट्युं तेमां विपरीततानो (असत्य वगेरेनो) त्याग ज वर्ते छे, अने असत्नो तेमां
अभाव ज वर्ते छे तेथी असत्न करवानी प्रतिज्ञा पण तेमां आवी ज गई. पहेलांं स्वभावनी साची
समजण करवी ते ज अनादिना असत्यनो त्याग छे. मिथ्याद्रष्टिने अनादिथी ‘धर्मनो त्याग’ छे, ते
अधर्म छे; आत्मानी साची समजण थतां ते अधर्मनो त्याग थई जाय छे. पहेलांं साची समजण वडे
अनादिना मिथ्यात्वनो त्याग कर्या विना अव्रत वगेरेनो त्याग कदी थई शके ज नहि.
अहीं कहे छे के उत्पाद–व्यय–ध्रुवत्व शक्तिथी द्रव्य पोताना गुण–पर्यायमां वर्ते छे. आमां
‘वर्तवुं’ उपर वजन छे गुणमां अक्रमपणे वर्ते छे ने पर्यायमां क्रमपणे वर्ते छे,–कोण वर्ते छे? के
आत्मद्रव्य. एटले, आम नक्की करनारने कोई पण पर्यायमां आत्मद्रव्यनी द्रष्टि–प्रतीत छूटे नहि.
दरेक पर्यायमां अखंड द्रव्य वर्ते छे, आम वर्तनार उपर (द्रव्य उपर) द्रष्टि गई त्यां पर्याय बुद्धि
छूटीने पर्यायमां निर्मळता थया विना रहे नहि.
दरेक आत्मानो आवो स्वभाव छे, पण अहीं बीजा आत्मानुं काम नथी; पोते पोताना
स्वभावने नक्की करीने स्व तरफ वळवानी वात छे स्वभाव तरफ वळीने जे ज्ञाता थयो ते पोताना
स्व–परप्रकाशक सामर्थ्यथी परने पण जेम छे तेम जाणे छे. स्वसन्मुख थईने स्वभावमां वर्तन थाय
त्यां विकार के संयोगनुं वर्तन रहे नहि एटले निर्विकार असंयोगी दशा प्रगटे, तेनुं नाम मोक्ष.
आत्मस्वभाव तरफ वळीने, ‘आत्मा पवित्र छे’ एम जे ज्ञानपर्याये जाण्युं ते पर्याय पोते
पण पवित्र थयेली छे, पवित्र स्वभावना आश्रये तेमां पण पवित्रतानी वृद्धि थती जाय छे, आ
रीते स्वभाव शक्तिनी प्रतीतिनुं फळ मुक्ति छे.
बहारमां लूखो खोराक खाय तेने लोको धर्म मानी ल्ये छे; पण ज्ञानी तो तेने कहे छे के अरे
भाई! जडथी ने रागथी तारा आत्मानी भिन्नतानुं तने भान नथी ने एने तुं धर्म माने छे, तो तुं
लूखुं नथी खातो पण चीकणुं ज खाय छे, तुं रागनी चीकासने ज भोगवी रह्यो छे, पण रागथी
लूखो एवो जे वीतरागीज्ञानभाव तेनी तने खबर नथी. तारामां मिथ्यात्वनी चीकास पडी छे, ते
मोटो अधर्म छे. रागने के जडना संयोगने ज्ञानी पोतानुं आत्मस्वरूप मानता नथी, पण पोताना
आत्माने रागादिथी जुदो ज अनुभवे छे, ज्ञानानंदस्वरूपना श्रद्धाज्ञानमां तेने ज लुखो–राग
वगरनो–भाव छे; आत्माना शांत रसथी भरेलो ने रागना रसथी खाली एवो ज्ञानीनो पण भाव
छे ते ज धर्म छे.
उत्पाद व्यय–ध्रुवता स्वभावथी आत्मा पोते क्षणे क्षणे परिणमे छे ने ध्रुवपणे पण टकी रहे
छे. शब्दोनां कारणे ज्ञाननी उत्पत्ति नथी थती, पण