Atmadharma magazine - Ank 142
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: २४०: आत्मधर्म: २४८१
“आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय?”
[लेखांक २०]
श्री प्रवचनसारना परिशिष्टमां आचार्यदेवे ४७ नयोथी आत्मद्रव्यनुं
वर्णन कर्युं छे तेना उपर पू. गुरुदेवना विशिष्ट – अपर्व प्रवचनोनो सार
(अंक १४१ थी चालु)
जिज्ञासु शिष्य पूछे छे के हे प्रभो! अनादिथी नहि
जाणेला एवा आत्मानुं स्वरूप जाणीने हुं तेनी प्राप्ति करुं, अने
हवे मारा संसार–परिभ्रमणनो अंत आवीने मारी मुक्ति थाय
एवुं स्वरूप मने समजावो.
आ रीते जे आत्मानो ज अर्थी थईने समजवा मांगे छे
एवा शिष्यने आचार्य भगवान आत्मानुं स्वरूप अने तेनी
प्राप्तिनो उपाय बतावे छे; तेनुं आ वर्णन चाले छे.
[३८] कर्तृनये आत्मानुं वर्णन
‘आत्मद्रव्य कर्तृनये, रंगरेजनी माफक रागादि परिणामनुं करनार छे. जेम रंगारो रंगकामनो करनार छे
तेम कर्तानये आत्मा रागादिपरिणामनो कर्ता छे
‘हुं अनंतगुणनो पिंड शुद्ध चिदानंद स्वभाव छुं, मारा शुद्ध चैतन्यद्रव्यमां रागनो अंश पण नथी एटले
रागनुं कर्तापणुं मारा स्वरूपमां नथी’–आवी अंर्तस्वभावनी द्रष्टिपूर्वक, पर्यायमां जे अल्पराग थाय छे तेने
साधकजीव पोतानुं परिणमन जाणे छे, तेने कर्तृनय होय छे, रागरहित चिदानंदस्वभावनी द्रष्टि छोडीने एकला
रागना ज कर्तापणामां रोकाय तेने आ कर्तृनय होतो नथी. परनो कर्ता थाय एवो तो कोई धर्म आत्मामां
त्रणकाळमां नथी, तेम ज परवस्तु जीवने रागादिपणे परिणमावे–एवो धर्म पण आत्मामां के परचीजमां नथी.
अहीं तो ए वात छे के जीवनी पर्यायमां जे राग थाय छे तेनो कर्ता कोण? ते जीवद्रव्यनुं परिणमन छे
माटे जीव तेनो कर्ता छे एम कर्तृनये जाणवुं जोईए. कर्मना उदयथी जीवने विकार थाय–एम शास्त्रमां निमित्तथी
कथन भले होय,–पण त्यां विकार थवानो धर्म कोनामां छे?–विकारपणे कोण परिणमे छे? आत्मा पोते पर्यायमां
विकारपणे परिणमे छे तेथी आत्मानो ज ते धर्म छे, तेनो कर्ता आत्मा छे, पण कर्म तेनो कर्ता नथी. आ
साधकना नयनी वात छे. सिद्धभगवानने राग पण नथी ने नय पण नथी. जेने हजी पर्यायमां राग थाय छे
एवो साधकजीव कर्तृनयथी एम जाणे छे के आ राग थाय छे तेनो हुं कर्ता छुं, बीजुं कोई तेनुं कर्ता के करावनार
नथी; तेम ज मारा त्रिकाळी चैतन्यस्वभावमां आ रागनुं कर्तापणुं नथी.–आम जाणवुं ते अनेकान्त छे.
समयसारना परिशिष्टमां जे ४७ शक्तिओनुं वर्णन कर्युं छे ते तो त्रिकाळी स्वभावरूप धर्मो छे; त्यां पण
४२ मी शक्तिमां ‘कर्तृत्वशक्ति’नुं वर्णन कर्युं छे, ते कर्तृत्वशक्ति तो बधा जीवोमां छे, सिद्धमांय ते कर्तृत्व छे.
अने अहीं कर्तृनयथी जे कर्तापणानुं वर्णन कर्युं छे तेमां तो रागना कर्तापणानी वात छे, ते त्रिकाळीस्वभावरूप
धर्म नथी पण एक क्षण पूरती पर्यायनो धर्म