
उत्तर:– ते आत्माना त्रिकाळी स्वभावरूप धर्म नथी, तेम ज ते मोक्षमार्गरूप धर्म पण नथी, परंतु राग
धर्म छे ने तेनो कर्ता आत्मानो छे. पोतानी पर्यायमां थाय छे माटे तेने पोतानो धर्म कह्यो छे, ते त्रिकाळ नथी
पण क्षणिक पर्याय पूरतो छे. कर्तृनयथी आ रागना कर्तापणाने जाणनार खरेखर तो तेनो साक्षी रहे छे, केम के
रागना क्षणिक कर्तापणा वखते ज बीजा अनंतधर्मोनो शुद्ध चैतन्यपिंड आत्मा छे तेनी द्रष्टिमां रागनी मुख्यता
फेरववानी बुद्धि करे तो मिथ्यात्व थाय छे. पण शुद्ध चैतन्यस्वभाव उपर द्रष्टि राखीने तेनो साक्षी रह्यो त्यां ते
राग तूटतो ज जाय छे. राग थाय छे तेटली पोतानी पर्यायनी लायकात छे तेथी ते पण पोतानो धर्म छे, ने
तेना ज्ञातापणे रहेवुं ते पण पोतानो धर्म छे. अहीं प्रमाणना विषयरूप सामान्य–विशेषात्मक द्रव्य बताववुं छे;
टळे छे.
प्रश्न:– पहेलो व्यवहार के पहेलो निश्चय?
उत्तर:– साधकने बंने एक साथे छे; पण तेमां मुख्यता निश्चयनी छे, ने व्यवहारनी गौणता छे.
कर्तृत्वधर्मने जाण्यो नथी एटले कर्तृत्वधर्मवाळा आत्माने ज जाण्यो नथी.
आत्माना धर्म वडे जेणे आत्माने जाण्यो तेनी द्रष्टि एक गुण उपर न रहेतां, अनंतगुणना पिंड शुद्ध चैतन्यद्रव्य
उपर जाय छे ने ते रागनो पण साक्षी थई जाय छे. रागना कर्तापणारूप क्षणिक धर्मने जे जाणे ते त्रिकाळी
धर्मीने पण जाणे, ने त्रिकाळी द्रव्यमां तो रागनुं अकर्तापणुं छे, तेनी मुख्यतामां रागनुं कर्तापणुं अल्पकाळमां
पर्यायमांथी पण टळी जाय छे. पर्यायमां राग होय त्यां सुधीनो ज आ धर्म छे–एम समजवुं; त्यार पछी कर्तृनय
चैतन्यद्रव्य उपर तेनी द्रष्टि होय छे.
प्रमाणे ज विकार थाय तो तीव्रमांथी मंद मिथ्यात्व करवानुं पण जीवना हाथमां रहेतुं नथी, अशुभ पलटीने शुभ
करवानुं पण जीवना हाथमां रहेतुं नथी, अरे! अनादि निगोदमांथी नीकळीने त्रसपर्याय पामवानुं पण रहेतुं
नथी; केम के निगोदना जीवने तो सदाय स्थावरनामकर्मनो उदय वर्ते छे एटले ते निगोदमांथी नीकळीने त्रस
कदी थई ज न शके! माटे उदय प्रमाणे