Atmadharma magazine - Ank 142
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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श्रावण: २४८१ : २४१:
छे; ते पर्याय आत्मानी छे तेथी तेने आत्मानो धर्म कहेवाय छे.
प्रश्न:– रागने करवो ते तो दोष छे, छतां अहीं तेने आत्मानो धर्म केम कह्यो?
उत्तर:– ते आत्माना त्रिकाळी स्वभावरूप धर्म नथी, तेम ज ते मोक्षमार्गरूप धर्म पण नथी, परंतु राग
आत्मानी पर्यायमां थाय छे, रागने ज्यां सुधी पोतानी पर्यायमां धारी राखे छे त्यां सुधी ते आत्मानो पोतानो
धर्म छे ने तेनो कर्ता आत्मानो छे. पोतानी पर्यायमां थाय छे माटे तेने पोतानो धर्म कह्यो छे, ते त्रिकाळ नथी
पण क्षणिक पर्याय पूरतो छे. कर्तृनयथी आ रागना कर्तापणाने जाणनार खरेखर तो तेनो साक्षी रहे छे, केम के
रागना क्षणिक कर्तापणा वखते ज बीजा अनंतधर्मोनो शुद्ध चैतन्यपिंड आत्मा छे तेनी द्रष्टिमां रागनी मुख्यता
रहेती नथी.
शुभ के अशुभभाव तेना काळे थाय छे, तेनो काळ फरे नहि–एम जाणीने तेनो ज्ञाता रही गयो एटले के
ते रागमां ज न अटकतां शुद्धचैतन्यस्वभाव तरफ वळी गयो त्यां ते रागादि घटता जाय छे. जो शुभ–अशुभने
फेरववानी बुद्धि करे तो मिथ्यात्व थाय छे. पण शुद्ध चैतन्यस्वभाव उपर द्रष्टि राखीने तेनो साक्षी रह्यो त्यां ते
राग तूटतो ज जाय छे. राग थाय छे तेटली पोतानी पर्यायनी लायकात छे तेथी ते पण पोतानो धर्म छे, ने
तेना ज्ञातापणे रहेवुं ते पण पोतानो धर्म छे. अहीं प्रमाणना विषयरूप सामान्य–विशेषात्मक द्रव्य बताववुं छे;
पण ते बंने पडखांने जाणतां ज्ञाननुं वलण त्रिकाळी शुद्धद्रव्य तरफ ज वळे छे, ने पर्यायमांथी रागनुं कर्तापणुं
टळे छे.
रागनो कर्ता ते व्यवहार छे ने रागनो अकर्ता एटले के साक्षी ते निश्चय छे.
प्रश्न:– पहेलो व्यवहार के पहेलो निश्चय?
उत्तर:– साधकने बंने एक साथे छे; पण तेमां मुख्यता निश्चयनी छे, ने व्यवहारनी गौणता छे.
स्वभावद्रष्टिने लीधे साधकने पर्यायमां रागनुं कर्तापणुं टळतुं जाय छे, ने साक्षीपणुं वधतुं जाय छे– एम जाणवुं.
आत्मामां अनंत धर्मो छे तेमां एक कर्ता नामनो धर्म छे, तेथी आत्मा रागादिना कर्तापणे परिणमे छे,
पण कोई पर तेने राग करावे छे––एम नथी. कर्म आत्माने विकार करावे छे एवी जेनी मान्यता छे तेणे
कर्तृत्वधर्मने जाण्यो नथी एटले कर्तृत्वधर्मवाळा आत्माने ज जाण्यो नथी.
प्रश्न:– रागादिनो कर्ता थवानो आत्मानो धर्म होय तो ते केम टळे? आत्मा सदाय रागादिने कर्या ज
करशे?
उत्तर:– ना; एम नथी. आ धर्म अनादिअनंत नथी पण साधकदशा पूरतो ज आ धर्म छे. वळी आवो
धर्म छे एम जाणे तो आत्मद्रव्यने पण जाणे ने रागादिनो साक्षी थई जाय. रागादिपणे आत्मा थाय छे––एम
आत्माना धर्म वडे जेणे आत्माने जाण्यो तेनी द्रष्टि एक गुण उपर न रहेतां, अनंतगुणना पिंड शुद्ध चैतन्यद्रव्य
उपर जाय छे ने ते रागनो पण साक्षी थई जाय छे. रागना कर्तापणारूप क्षणिक धर्मने जे जाणे ते त्रिकाळी
धर्मीने पण जाणे, ने त्रिकाळी द्रव्यमां तो रागनुं अकर्तापणुं छे, तेनी मुख्यतामां रागनुं कर्तापणुं अल्पकाळमां
पर्यायमांथी पण टळी जाय छे. पर्यायमां राग होय त्यां सुधीनो ज आ धर्म छे–एम समजवुं; त्यार पछी कर्तृनय
पण नथी रहेतो ने रागनुं कर्तृत्व पण नथी रहेतुं.
जेम रंगारो रंगकामनो करनार छे तेम आत्मा पोते पर्यायमां ज्यां सुधी रागथी रंगाय छे त्यां सुधी ते
रागनो कर्ता छे एवो तेनो कर्तृधर्म छे. –पण आ धर्म माननारनी द्रष्टि क्यां होय? अनंतधर्मवाळा शुद्ध
चैतन्यद्रव्य उपर तेनी द्रष्टि होय छे.
“सिद्ध भगवानने कर्म नथी माटे तेमने विकार थतो नथी, अने संसारीने कर्मनो उदय छे माटे तेने
विकार थाय छे, एटले कर्मना उदय प्रमाणे विकार थाय छे”–एम कोई माने तो ते वात तद्न खोटी छे. जो उदय
प्रमाणे ज विकार थाय तो तीव्रमांथी मंद मिथ्यात्व करवानुं पण जीवना हाथमां रहेतुं नथी, अशुभ पलटीने शुभ
करवानुं पण जीवना हाथमां रहेतुं नथी, अरे! अनादि निगोदमांथी नीकळीने त्रसपर्याय पामवानुं पण रहेतुं
नथी; केम के निगोदना जीवने तो सदाय स्थावरनामकर्मनो उदय वर्ते छे एटले ते निगोदमांथी नीकळीने त्रस
कदी थई ज न शके! माटे उदय प्रमाणे