Atmadharma magazine - Ank 142
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 15 of 21

background image
: २४४: आत्मधर्म: १४२
द्रष्टि जीव रागनो कर्ता थाय छे, ने भेदज्ञान थतां सम्यग्द्रष्टि जीव रागादिनो अकर्ता छे.–अहीं ए शैलि नथी.
अहीं तो एम कहे छे के सम्यग्द्रष्टि जीव पण पर्यायमां जे राग थाय छे तेनो कर्ता छे अने ते ज वखते तेनो
अकर्ता पण छे–एवा बन्ने धर्मो तेनामां एक साथे छे.
जे वखते कर्तृनयथी ज्ञानी पर्यायना रागनुं कर्तापणुं जाणे छे ते वखते पण तेनी द्रष्टिमां आत्मानो
शुद्धचैतन्य स्वभाव आव्यो छे एटले रागनुं अकर्तापणुं पण तेने वर्ते छे. विकार ते मारो अंश छे, अने ते अंश
छे पण आखो अंशी नथी, आखो अंशी तो अनंत धर्मोनो चैतन्यपिंड छे–आम जाण्युं–ते शुद्धचैतन्यस्वभावनी
प्रधानतामां रागनो साक्षी ज रहे छे, तेने अकर्तृनय होय छे. बधा धर्मोना आधाररूप एवा निज आत्मद्रव्य
उपर द्रष्टि राखीने धर्मी जीव तेना धर्मोने जाणे छे, अकर्तृनयथी आत्माने रागनो अकर्ता साक्षीस्वरूप पण जाणे
छे ने कर्तृनयथी रागपरिणामनो कर्ता पण जाणे छे.–परंतु द्रष्टिमां तो शुद्धचैतन्यद्रव्यनी ज प्रधानता होवाथी
पर्यायमांथी रागनुं कर्तापणुं छूटतुं जाय छे, ने साक्षीपणुं वधतुं जाय छे.
रंगकाम करनारने सारूं काम थाय तो राग ने खराब काम थाय तो द्वेष थाय छे, पण मध्यस्थपणे जे
जोनार छे तेने कांई थतु नथी, ते तो मात्र साक्षीपणे जुए ज छे; तेम आत्मामां एक एवो अकर्तास्वभाव छे के
रागनो ते कर्ता थतो नथी पण केवळ साक्षी ज रहे छे. जे वखते जेवो राग होय ते वखते तेनुं तेवुं ज्ञान करे छे,
पण आ वखते आवो ज राग लावुं–एवो अभिप्राय करतो नथी एटले साक्षी ज रहे छे. कर्तृनयथी रागनो
कर्ता, अने ते ज वखते अकर्तृनयथी तेनो साक्षी,–आम बंने धर्मोने एक साथे धारण करनार आत्मा
अनेकान्तस्वभावी छे. आवा धर्मोथी आत्माने जाणतां वीतरागीद्रष्टि थवानो प्रसंग आवे छे, पण एकला
रागना कर्तापणामां अटकवानो प्रसंग रहेतो नथी.
एक आत्मामां एक साथे अनंतधर्मो रहेला छे. जे क्षणे पर्यायमां रागपणे परिणमे छे ते ज क्षणे
द्रव्यस्वभावे रागपणे परिणतो नथी. रागपणे आत्मा परिणमतो ज नथी––एम सर्वथा एकांतशुद्ध माने तो
अज्ञानी छे. अने सर्वथा रागपणे परिणमनारो ज माने पण रागना अकर्तापणे रहेवानो साक्षीस्वभाव छे तेने
न जाणे तो ते पण अज्ञानी छे. धर्मी साधक जाणे छे के पर्यायमां रागनुं परिणमन छे अने ते ज क्षणे
स्वभावद्रष्टिथी हुं रागपणे नथी परिणमतो, एटले ते क्षणे पण वीतरागीसाधकदशानुं परिणमन वधतुं जाय छे.
जे क्षणे रागपरिणामनुं कर्तापणुं जाणे छे ते ज क्षणे स्वभावना आधारे रागना अकर्तारूप वीतरागी साक्षीपणुं
पण वधतुं ज जाय छे; जो रागना कर्तापणा वखते ज रागना अकर्तारूप वीतरागतानुं परिणमन न वर्ततुं होय
तो साधकपणुं ज रहे नहि.
प्रश्न:– साडत्रीसमा नयथी पण साक्षीधर्म कह्यो अने आ ओगणचालीसमा नयथी पण साक्षीधर्म कह्यो,
तो तेमां शुं फेर छे?
उत्तर:– साडत्रीसमा नयमां गुणग्राहीपणानो जे विकल्प छे तेनी सामे साक्षीपणुं कह्युं छे, अहीं
ओगणचालीसमा नयमां रागना कर्तापणानी सामे साक्षीपणुं कह्युं छे, अने हजी एकतालीसमा नयमां पण
साक्षीपणुं कहेशे, त्यां हर्ष–शोकना भोक्तापणानी सामे साक्षीपणुं कह्युं छे. ए रीते नय ३७–३९ ने ४१मां कहेला
त्रणे साक्षीधर्मोमां विवक्षा भेद छे, पण तात्पर्य तो त्रणेनुं एक ज छे.
(१) गुणग्राहीपणाना विकल्प वखते य शुद्धस्वभावनी द्रष्टिथी साधक जीवने साक्षीपणुं वधतुं जाय छे,
एटले विकल्पनी मुख्यता थती नथी.
(२) ए ज प्रमाणे रागनुं कर्तापणुं जाणती वखते य शुद्धस्वभावनी द्रष्टिने लीधे साधकजीवने
साक्षीपणानुं परिणमन वधतुं जाय छे, एटले रागनी मुख्यता थती नथी.
(३) चालीसमा नयमां हर्ष–शोकनुं भोक्तापणुं कहेशे, तेने जाणती वखते य साधकने स्वभावद्रष्टिने
लीधे साक्षीपणानुं परिणमन वधतुं जाय छे, एटले तेने हर्षशोकना भोक्तापणानी मुख्यता थती नथी.
नयमां मुख्य–गौण थाय छे, पण परिणमनमां मुख्यता गौणता नथी; एटले के कर्तानय अने
अकर्तानय–एवा बे