
कर्तापणाने जुए छे त्यारे पण अकर्ता–साक्षीभावरूप वीतरागी अंशनुं परिणमन तो वर्ती ज रह्युं छे; अकर्तानय
भले ते वखते न होय पण साक्षीधर्म तो छे ज. सम्यग्द्रष्टिने शुभाशुभराग वखते य तेना अकर्तापणानुं
परिणमन थई ज रह्युं छे. आवुं परिणमन क्यारे थाय? त्रिकाळी ज्ञायकस्वभावीद्रव्य रागनुं अकर्ता ने पर्यायमां
क्षणिक रागनुं कर्तापणुं–ए बन्नेनुं यथार्थ ज्ञान करीने, पर्याय ज्ञायकस्वभावसन्मुख थई त्यां तेना आश्रये
अकर्तापणे परिणमन शरू थयुं, ने रागनुं कर्तापणुं छूटवा मांड्युं. द्रष्टिमांथी तो रागनुं कर्तापणुं सर्वथा छूटी गयुं
छे, पण परिणमनमां रागनुं कर्तापणुं क्रमेक्रमे छूटे छे, त्यां साधकने नयो होय छे. पण सर्वथा रागना
कर्तापणामां ज रहे ने अकर्तापणुं–साक्षीपणुं जराय न राखे–तो ते जीव एकांतद्रष्टिवाळो मिथ्याद्रष्टि छे, तेने
एकेय नय साचो होतो नथी. ‘कर्तृनये रागनो कर्ता छे’ एवो नय पण तेने साचो नथी, केमके एक नय वखते
बीजा नयनी विवक्षानुं ज्ञान पण साथे होय–तो ज ते नय सम्यक् छे.
व्यवहाररत्नत्रयना रागवडे निश्चयरत्नत्रय पमाय ए वात रहेती नथी; केम के व्यवहाररत्नत्रयनो राग ते तो
कर्ताधर्ममां जाय छे ने निश्चयरत्नत्रय तो रागना अकर्ताधर्मरूप छे, माटे ते बन्ने जुदा छे. आत्माना अनंतधर्मो
छे ते परने लीधे तो नथी अने पोतामांय एक धर्मने लीधे बीजो धर्म नथी.
चैतन्यस्वभावनी द्रष्टिथी रागना साक्षीपणारूप साधकपणुं छे, ने त्यां ज आवा नयो होय छे. एकला
बाधकपणामां नय न होय, ने साध्य पूरुं सिद्ध थई जाय त्यां पण नय न होय. साधकपणामां नय होय छे, ते
नय द्वारा साधकजीव वस्तुने साधे छे.
अनंतधर्मो साबित थई शके नहि एटले वस्तु ज साबित न थाय. रागना कर्तापणारूप जे धर्म छे तेने लीधे कांई
अकर्तापणारूपधर्म नथी, पण स्वतंत्र छे. रागपणे आत्मा परिणमे छे ते तो कर्ताधर्म छे ने ते ज वखते जेटलो
रागरहित ज्ञायक साक्षीपणे परिणमे छे ते अकर्ताधर्म छे. एक साथे ज बन्नेनुं स्वतंत्र परिणमन थई रह्युं छे.
अकर्ताधर्म (सम्यग्दर्शन वगेरे) थतो नथी. केवळी–श्रुतकेवळीनी समीपमां क्षायिकसम्यग्दर्शन थाय छे ते कांई
निमित्तना धर्मने लीधे के रागने लीधे थतुं नथी, पण पोताना रागना अकर्तारूपस्वभावथी थाय छे.
क्षायिकसम्यग्दर्शन थया पहेलांं जेटली मलिनता हती तेटलो कर्ताधर्म हतो, ने क्षायिकसम्यक्त्वनी निर्मळता थतां
ते मलिनता टळीने अकर्तारूप साक्षीपणानुं परिणमन थयुं. क्षायोपशमिकसम्यक्त्व थतां शुद्धता थई ने कंईक अंशे
मलिनता पण रही–ते बंने जीवना धर्मो छे, परंतु तेमां शुद्धताने लीधे मलिनता नथी अने मलिनताने लीधे
शुद्धता नथी. रागना परिणमन वखते ज साधकने ज्ञायकस्वभावनी द्रष्टिथी रागना अकर्तारूप परिणमन पण
भेगुं छे. राग वखते जो तेना अकर्तारूप साक्षीधर्मनुं परिणमन न होय तो ते जीवने शुद्धद्रव्यस्वभावनुं ज्ञान
नथी. ने ते साधक नथी पण मिथ्याद्रष्टि छे––एम जाणवुं.
रही शके. मिथ्याज्ञानी तो एकांत पर सामे ने राग सामे ज