आनंदनुं स्वसंवेदन थाय छे त्यां ज आनंदस्वभाव भर्यो छे; ज्यां आनंदस्वभाव भर्यो छे तेटलो ज आत्मा छे,
अने जेटलो आत्मा छे तेटलुं ज ज्ञान छे. लोकालोकने जाणवा छतां ज्ञान आत्माना क्षेत्रथी बहार नीकळतुं नथी.
जेम आत्माना अतीन्द्रियआनंदने माटे बहारना पदार्थोनो आश्रय नथी तेम आत्माना ज्ञानने माटे पण बहारना
पदार्थोनो आश्रय नथी. अतीन्द्रियज्ञान ने आनंदस्वरूप आत्मा छे तेमां अंतर्मुख थईने एकाग्र थतां अंदर सुखनुं
संवेदन थाय छे, ज्यां ते सुखनुं संवेदन थाय छे त्यां ज आत्मा छे; आत्मा पोते ते आनंदस्वभावथी भरेलो छे ने
तेना आधारे ज आनंदनुं वेदन थाय छे. जेम आनंदनुं अने आत्मानुं क्षेत्र एक छे तेम आत्मानुं अने ज्ञाननुं क्षेत्र
पण एक छे, एटले आत्माथी भिन्न एवा अन्य पदार्थोमां ज्ञान व्याप्तुं नथी.
नथी, ने आनंद परमां व्यापतो नथी तेम आत्मानुं ज्ञान पण खरेखर परमां फेलातुं नथी.
बहार जतुं नथी ने परमां व्यापतुं नथी. परने जाणे छे तो खरेखर, परंतु परमां व्यापतुं नथी ए वात स्पष्ट करवा
आचार्य भगवाने ज्ञान साथे अविनाभावी एवा आनंदनो दाखलो आप्यो. जुओ, आचार्यदेवे दाखलो पण केवो
सुंदर आप्यो!
पण जेटलामां सुख छे तेटलामां ज व्यापक छे, एटले आत्मामां ज रहेलुं छे, आत्माथी बहार नथी. मात्र तेनुं स्व–
परप्रकाशक सामर्थ्य बताववा माटे ज ज्ञानने लोकालोक व्यापक कहेवाय छे.
दाखलो केम लीधो? तेनुं समाधान–केम के अहीं जेने सर्वज्ञनी ने ज्ञानस्वभावनी प्रतीत थई छे एवा साधकनी वात
लेवी छे, ने साधकने पोताना स्वसंवेदनमां आनंद छे,–सुख छे, तेथी पोताना स्वसंवेदन ज्ञानथी ते नक्की करे छे के
अहो! मारा ज्ञान अने सुखनुं क्षेत्र मारा आत्मामां ज छे, मारो आत्मा ज ज्ञान अने सुखनुं धाम छे; मारा ज्ञान
अने सुख माटे बीजा कोई पदार्थनी अपेक्षा मने नथी, मारुं स्वक्षेत्र ज स्वयं ज्ञान अने सुखस्वभावथी भरेलुं छे.
के आनंद नथी...नथी...ने नथी. बहारमां पर लक्षे तने जे आकुळता वेदाय छे ते आकुळतानुं (अशांतिनुं–दुःखनुं)
क्षेत्र पण तारामां ज छे, कांई बहारथी ते आकुळता नथी आवती. तेम अंर्तमुख थईने एकाग्र थतां अनाकुळ
शांतिनुं–अतीन्द्रिय आनंदनुं वेदन थाय छे ते पण आत्माना स्वक्षेत्रप्रमाणमां ज थाय छे, बहारथी ते आनंद नथी
आवतो, तेम ज ते आनंदनो विस्तार थईने आत्माथी बहार पण नीकळी जतो नथी. आ रीते आनंदना प्रमाणमां
आत्मा छे, ने आत्माना प्रमाणमां ज्ञान छे. केवळी भगवानने परिपूर्ण आनंद ने परिपूर्ण ज्ञान छे ते पण पोतामां
छे, तेनुं क्षेत्र बहार नथी. पहेलां थोडुं ज्ञान ने थोडुं सुख हतुं पछी केवळज्ञान थतां घणुं ज्ञान अने घणुं सुख थयुं
माटे ते आत्माथी जराय बहार नीकळी गयुं–एम नथी. स्वक्षेत्रमां ज परिपूर्ण ज्ञान अने सुखनी ताकात भरी छे.
अहो! पूर्णज्ञान ने पूर्ण आनंदनुं क्षेत्र अहीं मारा आत्माना असंख्य प्रदेशमां ज छे, प्रदेशे प्रदेशे ज्ञान आनंद भर्यो
छे, कोई प्रदेश ज्ञान आनंद वगरनो खाली नथी; अत्यारे (साधकदशामां) मने मारा ज्ञान के आनं–
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