केवळी भगवानने पण ने शरीरसंबंधी सुख–दुःख माने छे.
रह्यो त्यां आहार पाणीनो संबंध तो केम होय?–न ज होय.
ईंद्रियोना विषयोनुं अवलंबन तेमने सर्वथा छूटी गयुं छे. अहो! केवळज्ञान थतां भगवाननो आत्मा तो पलटी
गयो–दोष रहित थई गयो. ने भगवाननुं शरीर पण पलटीने क्षुधादि दोषोथी रहित परमऔदारिक थई गयुं.
जुओ, आ भगवाननी दशा!! भगवानना आवा स्वरूपने जे नथी ओळखतो तेने आत्माना ज्ञान–आनंद–
स्वभावनी ओळखाण नथी. आमां कांई एकला केवळी–भगवाननी वात नथी. पण भगवाननी जेम आ आत्मानो
पण अतीन्द्रिय ज्ञान ने आनंदमय स्वभाव छे, बहारना विषयोथी तेने ज्ञान के आनंद थता नथी,–आम आत्माना
स्वभावने ओळखीने तेनी प्रतीत करवा माटे आ वात समजावे छे.
वीर्यबळ प्रगटयुं नथी तेथी त्यां रत्नत्रयनी आराधनाना हेतुए आहारनी वृत्ति होय छे; परंतु केवळी भगवानने
तो स्वभावथी ज अनंत ज्ञानादि वर्ते छे, तेमने हवे कांई साधवानुं रह्युं नथी ने अनंतबळ प्रगटी गयुं छे, त्यां
तेमने कोई पण हेतुए आहार होई शकतो ज नथी. ज्यां वीर्यबळ ओछुं छे ने इन्द्रियो साथे उपयोगनो संबंध छे
त्यां ज आहारादि दोषो होय छे; ज्यां ईन्द्रियो साथेनो संबंध तूटी गयो, ने आत्मा पोते अतीन्द्रिय ज्ञान–आनंदरूप
थई गयो त्यां आहारादि होता नथी. आ कोई संप्रदायना आग्रहनी वात नथी पण वस्तुनुं स्वरूप ज आ रीते छे.
जेणे यथार्थ वस्तुस्वरूप समजवुं होय ने आत्मानुं कल्याण करवुं होय तेणे हठाग्रह छोडीने आ वात समजवी पडशे.
चक्षुमां ज रात्रे देखवानुं सामर्थ्य छे तेने दीवानी शुं जरूर छे? तेम जेमने केवळज्ञानरूपी अतीन्द्रियज्ञानचक्षु खुली
गयां छे ने स्वभावथी ज अतीन्द्रियआनंद प्रगटी गयो छे एवा भगवंतोने आहारादि होता नथी. आम होवा छतां
भगवान केवळीपरमात्माने पण क्षुधा–आहारपाणी के रोगादि होवानुं जे माने छे ते केवळीभगवानना स्वरूपने
विपरीत माने छे, एटले देवनी श्रद्धामां तेने विपरीतता छे. ज्यां क्षुधा–तृषा–आहार–पाणी के रोगादि होय त्यां
केवळज्ञान अने पूर्ण अतीन्द्रियआनंद होय नहि; तेथी भगवानने आहारादि माननार भगवानना पूर्णज्ञानआनंदने
मानतो नथी एटले के आत्माना ज्ञान आनंदस्वभावने ज ते मानतो नथी, इन्द्रियज्ञान अने इन्द्रियसुखने ज ते
माने छे, तेथी ते जीव खरेखर आत्माना स्वभावनो अर्थी नथी पण विषयोनो अर्थी छे. ईंद्रियो वगर ज सर्वज्ञ
भगवानने पूर्णज्ञान ने सुख होय छे–एम जो बराबर ओळखे तो तेने आत्माना अतीन्द्रियज्ञान ने सुख
स्वभावनी जरूर प्रतीत थाय, ए प्रतीत थतां समस्त इन्द्रियविषयोमांथी सुखबुद्धि छूटी जाय ने पोताना स्वभावना
अतीन्द्रियआनंदना अंशनुं वेदन थाय.