Atmadharma magazine - Ank 143
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 5 of 21

background image
हवे नियमसारनी आ दसमी गाथा शरू थाय छे. आजथी बराबर बार वर्ष पहेलां पोष सुद नोमे आ
कारणशुद्धपर्यायनी वात बहार आवी हती, ने आजे पण बराबर ए ज दिवसे आ दसमी गाथा शरू थाय छे; आ
गाथामां ज्ञाननी कारणशुद्धपर्यायनुं स्पष्ट वर्णन छे. आखा आत्मानी कारणशुद्धपर्यायनुं वर्णन तो हजी पंदरमी
गाथामां आवशे; आ गाथामां जीवनुं लक्षण जे उपयोग, तेना भेदोनुं वर्णन करतां स्वभावज्ञानउपयोगने कारण
अने कार्यरूपे बतावीने घणी सरस वात करी छे. जुओ, मूळ गाथा–
जीवो उवओगमओ उवओगो णाणदंसणो होइ ।
णाणुवओगो दुविहो सहावणाणं विभावणाणं त्ति ।।
उपयोगमय छे जीव ने उपयोग दर्शन–ज्ञान छे;
ज्ञानोपयोग स्वभाव तेम विभावरूप द्विविध छे.
जीव उपयोगमय छे. उपयोग ज्ञान अने दर्शन छे. ज्ञानोपयोग बे प्रकारनो छे–स्वभावज्ञान अने
विभावज्ञान.
‘जीव उपयोगमय छे.’ ‘उपयोग’ कहेतां अहीं ‘परिणाम’ नी वात छे. आ गाथामां उपयोगनुं लक्षण कह्युं
छे. जीवनुं लक्षण जे उपयोग, ते उपयोगना प्रकारोनुं अहीं वर्णन कर्युं छे. उपयोगना जेटला प्रकारो अहीं कहेशे ते
बधा प्रकारो पर्यायरूप छे–ए वात लक्षमां राखवी.
पहेलां उपयोग एटले शुं ते कहे छे; पछी तेना प्रकारो समजावशे.
“आत्मानो चैतन्य–अनुवर्ती परिणाम ते उपयोग छे.” जुओ, आ उपयोगनी व्याख्या. आत्मानो जे
त्रिकाळ चैतन्यस्वभाव तेने अनुसरीने वर्तनारो परिणाम ते उपयोग छे. आमां द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणे आवी गया.
‘आत्मानो’ ते द्रव्य;
‘चैतन्य’ ते गुण;
‘अनुवर्ती परिणाम’ ते पर्याय.
आत्मा ते द्रव्य, अने चैतन्य तेनो त्रिकाळी गुण, ते चैतन्यने अनुसरीने वर्तनारा परिणामने उपयोग कहे
छे. उपयोग कोई परने–इन्द्रियोने के रागने अनुसरीने थाय छे–एम न कह्युं पण चैतन्यने ज अनुसरीने थाय छे–
एम कहीने त्रिकाळी स्वभाव तरफनुं वलण कराव्युं छे.
उपयोग धर्म छे, जीव धर्मी छे; दीपक अने प्रकाशना जेवो एमनो संबंध छे. जुओ, आत्मा चैतन्यदीपक छे
ने उपयोग तेनो प्रकाश छे. रागादि भावो ते तो अंधकार जेवा छे. जेम प्रकाशमां अंधारुं नथी तेम उपयोगमां राग–
द्वेष नथी. राग–द्वेष ते आत्मानो स्वभाव नथी, स्वाभाविक ज्ञानउपयोग ते ज आत्मानो स्वभाव छे, आवुं
भेदज्ञान करवुं ते मुक्तिनुं कारण छे. ‘उपयोग’ ते जीवनी पर्याय छे माटे ते धर्म छे ने जीव ते पर्यायनो धरनार छे
तेथी ते धर्मी छे. उपयोगना जेटला प्रकारो पडे ते कोई बीजाथी नथी पण जीवनो ज धर्म छे. मतिज्ञान उपयोग हो के
त्रिकाळशुद्धउपयोग हो, ते बधाय उपयोग जीवनो धर्म छे, ने जीव धर्मी छे. जेम दीवो स्वभावथी ज प्रकाशवाळो छे,
दीवानो प्रकाश परने लीधे नथी, तेम आत्मा चैतन्यदीपक छे ने उपयोग तेनो प्रकाश छे. आत्मा स्वभावथी ज
उपयोगस्वरूप छे, कोई परने लीधे तेनो उपयोग नथी. मति–श्रुतज्ञाननो उपयोग पण इन्द्रियो के मनने लीधे थतो
नथी, ते उपयोग पण जीवोनो धर्म छे.
चैतन्यनो उपयोग कहेतां तेमां ज्ञान अने दर्शन बंनेनो वेपार आवी जाय छे. उपयोग ज्ञान ने दर्शन एवा
बे प्रकारनो छे. ज्ञानने अनुसरीने वर्तनारा परिणाम ते ज्ञानोपयोग छे, ने दर्शनने अनुसरीने वर्तनारा परिणाम ते
दर्शनोपयोग छे. तेमांथी ज्ञानोपयोगना एकंदर नव प्रकार (एक कारणरूप, ने आठ कार्यरूप) वर्णवशे, तथा
दर्शनोपयोगना पांच प्रकार (एक कारणरूप, ने चार कार्यरूप) वर्णवशे. आ रीते उपयोगना बधा मळीने चौद भेद
लीधा छे. आ बधा प्रकारना उपयोग–धर्मोनो आधार जीव छे. पहेलां जेम श्वेतादिगुणोनो (–पर्यायोनो) आधार
पुद्गल कह्यो हतो, तेम अहीं उपयोग परिणामनो आधार जीव छे.
आत्मानो उपयोग ज्ञान अने दर्शन एवा भेदथी बे प्रकारनो छे. तेमांथी ज्ञानउपयोग पण स्वभाव अने
विभाव एवा बे प्रकारनो छे. आ गुणनी वात नथी पण तेना परिणामोनी वात छे. स्वभावज्ञानउपयोग–परिणाम
अने विभावज्ञानउपयोग–परिणाम एम बे प्रकारनो ज्ञाननो उपयोग छे.
ः २प४ः
आत्मधर्मः १४३