गाथामां ज्ञाननी कारणशुद्धपर्यायनुं स्पष्ट वर्णन छे. आखा आत्मानी कारणशुद्धपर्यायनुं वर्णन तो हजी पंदरमी
गाथामां आवशे; आ गाथामां जीवनुं लक्षण जे उपयोग, तेना भेदोनुं वर्णन करतां स्वभावज्ञानउपयोगने कारण
अने कार्यरूपे बतावीने घणी सरस वात करी छे. जुओ, मूळ गाथा–
णाणुवओगो दुविहो सहावणाणं विभावणाणं त्ति ।।
ज्ञानोपयोग स्वभाव तेम विभावरूप द्विविध छे.
बधा प्रकारो पर्यायरूप छे–ए वात लक्षमां राखवी.
“आत्मानो चैतन्य–अनुवर्ती परिणाम ते उपयोग छे.” जुओ, आ उपयोगनी व्याख्या. आत्मानो जे
‘चैतन्य’ ते गुण;
‘अनुवर्ती परिणाम’ ते पर्याय.
आत्मा ते द्रव्य, अने चैतन्य तेनो त्रिकाळी गुण, ते चैतन्यने अनुसरीने वर्तनारा परिणामने उपयोग कहे
एम कहीने त्रिकाळी स्वभाव तरफनुं वलण कराव्युं छे.
द्वेष नथी. राग–द्वेष ते आत्मानो स्वभाव नथी, स्वाभाविक ज्ञानउपयोग ते ज आत्मानो स्वभाव छे, आवुं
भेदज्ञान करवुं ते मुक्तिनुं कारण छे. ‘उपयोग’ ते जीवनी पर्याय छे माटे ते धर्म छे ने जीव ते पर्यायनो धरनार छे
तेथी ते धर्मी छे. उपयोगना जेटला प्रकारो पडे ते कोई बीजाथी नथी पण जीवनो ज धर्म छे. मतिज्ञान उपयोग हो के
त्रिकाळशुद्धउपयोग हो, ते बधाय उपयोग जीवनो धर्म छे, ने जीव धर्मी छे. जेम दीवो स्वभावथी ज प्रकाशवाळो छे,
दीवानो प्रकाश परने लीधे नथी, तेम आत्मा चैतन्यदीपक छे ने उपयोग तेनो प्रकाश छे. आत्मा स्वभावथी ज
उपयोगस्वरूप छे, कोई परने लीधे तेनो उपयोग नथी. मति–श्रुतज्ञाननो उपयोग पण इन्द्रियो के मनने लीधे थतो
नथी, ते उपयोग पण जीवोनो धर्म छे.
दर्शनोपयोग छे. तेमांथी ज्ञानोपयोगना एकंदर नव प्रकार (एक कारणरूप, ने आठ कार्यरूप) वर्णवशे, तथा
दर्शनोपयोगना पांच प्रकार (एक कारणरूप, ने चार कार्यरूप) वर्णवशे. आ रीते उपयोगना बधा मळीने चौद भेद
लीधा छे. आ बधा प्रकारना उपयोग–धर्मोनो आधार जीव छे. पहेलां जेम श्वेतादिगुणोनो (–पर्यायोनो) आधार
पुद्गल कह्यो हतो, तेम अहीं उपयोग परिणामनो आधार जीव छे.
अने विभावज्ञानउपयोग–परिणाम एम बे प्रकारनो ज्ञाननो उपयोग छे.
ः २प४ः