Atmadharma magazine - Ank 143
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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जीवनुं लक्षण उपयोग;
उपयोग एटले चैतन्यने अनुसरीने थनारा परिणाम. तेना कुल चौद प्रकार–
१ कारणस्वभावज्ञानउपयोग (त्रिकाळ)
२ कार्यस्वभावज्ञानउपयोग (केवळज्ञान)
४ ज्ञानउपयोग (सम्यक्मतिज्ञान वगेरे)
३ अज्ञानउपयोग (कुमतिज्ञान वगेरे)
–आ प्रमाणे ज्ञान उपयोगना नव प्रकारो छे,
तेमांथी पहेला बे स्वभावज्ञान छे, ने बाकीना सात विभावज्ञान छे. तथा
१ कारणस्वभावदर्शनउपयोग
१ कार्यस्वभावदर्शनउपयोग
३ विभावदर्शनउपयोग
–आ प्रमाणे दर्शन–उपयोगना पांच प्रकार छे. आ रीते उपयोगना कुल चौद प्रकार छे. आ बधाय
‘चैतन्यने अनुसरीने वर्तता परिणाम’ छे. कारणस्वभावज्ञान अने कारणस्वभावदर्शन ए बंने पण
धु्रवचैतन्यस्वभावने अनुसरीने वर्तता उपयोग परिणाम छे, ते बंने त्रिकाळ एकरूप निरुपाधि छे, तेमनुं परिणमन
सदा सद्रशरूप छे. आ सिवायना बार प्रकारना उपयोग छे ते बधाय उत्पाद–व्ययरूप छे. कर्मना क्षयोपशम–क्षय
वगेरेनी अपेक्षावाळा छे. उपयोगना चौद प्रकार कह्या ते बधाय, आत्माना चैतन्यने अनुसरीने वर्तनारा छे.
केवळज्ञानउपयोग पण आत्माना चैतन्य स्वभावने ज अनुसरीने थाय छे, पूर्वना चारज्ञानने अनुसरीने केवळज्ञान
नथी थतुं. ए ज रीते मतिज्ञाननो उपयोग पण कोई परने–ईन्द्रियोने के रागने अवलंबीने नथी थतो पण
आत्माना चैतन्यने अनुसरीने ज थाय छे.
जुओ आ जीवना उपयोगनुं वर्णन!
जीव धर्मी छे ने आ उपयोग तेनो धर्म छे. अहीं ‘धर्म’ एटले स्वभाव; अत्यारे ‘धर्म’ एटले सम्यग्दर्शन–
ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्ग न समजवो, पण जीवे पोताना उपयोगने पोतामां धारी राख्यो छे तेथी उपयोग ते
जीवनो धर्म छे ने जीव धर्मी छे–एम समजवुं. जेम दीपक पोताना प्रकाश–धर्मने धारी राखे छे तेम आत्मा पोताना
उपयोग–धर्मने धारी राखे छे. आत्मा उपयोग विनानो होय नहि. उपयोगना जे चौद प्रकारो कह्या ते बधा प्रकारो
एक साथे एक जीवने न होय. तेमांथी जे कारणस्वभावज्ञान उपयोग अने कारणस्वभावदर्शनउपयोग छे ते तो
बधा जीवोने सदाय छे. बाकीना बार प्रकारमांथी कार्यस्वभावज्ञानउपयोग अने कार्यस्वभावदर्शनउपयोग तो
केवळज्ञानी भगवंतोने ज होय छे; अने बाकीना दस प्रकार छद्मस्थोने ज होय छे.
जीव उपयोगस्वभावी छे तेनुं आ वर्णन छे. आवा जीवतत्त्वने ओळख्या वगर सम्यक्श्रद्धा थाय नहि.
जेटला उपयोग कह्या ते बधाय जीवनुं तत्त्व छे, जीवना भाव छे; जीवने बराबर ओळखवा माटे तेना भावोने पण
ओळखवा जोईए.
* जीव उपयोगमय छे.
* चैतन्यने अनुसरीने थता परिणाम ते उपयोग छे.
* ते उपयोगना बे प्रकार छे–ज्ञान अने दर्शन.
* तेमांथी ज्ञानउपयोगना बे प्रकार छे–स्वभाव अने विभाव.
* स्वभावज्ञान बे प्रकारनुं छे– कारण अने कार्य.
आ कारणस्वभावज्ञानउपयोग ते ज्ञानना सहजपरिणाम छे. अहीं ज्ञानना उपयोगनुं वर्णन छे, अने
आगळ आखा जीवद्रव्यनी सहज परिणतिने ‘कारणशुद्धपर्याय’ तरीके वर्णवशे.
केवळज्ञान ते कार्यस्वभावज्ञान छे, अने कारणस्वभावज्ञानने आश्रये ते प्रगटे छे. कारणरूप धु्रवउपयोग छे,
ते धु्रवना अवलंबने कार्य प्रगटी जाय छे. ‘वर्तमान–धु्रव’ ते वर्तमान कार्यनुं कारण छे. अरिहंत भगवान
कार्यपरमात्मा छे, तेमने केवळज्ञानरूपी कार्य कयांथी प्रगटयुं? के कारणरूप धु्रवज्ञानस्वभावमांथी. आ रीते अरिहंत
परमात्माना शुद्ध कारण–कार्यने ओळखे तो, पोतामां पण शुद्ध कारणना अवलंबने शुद्धकार्य (सम्यग्दर्शनादि) थया
विना रहे नहीं; केमके भगवान जेवुं ज ‘कारण’ पोतामां छे. अहो! कारण–कार्यने साथे ने साथे ज राखीने
मुनिवरोए अद्भुत अमृत रेडयां छे. आवा वीतरागी मुनिराज उपर कोई प्रकारनुं दोषारोपण करवुं ए तो महान
अपात्रता छे.
प्रथम भादरवोः २४८१
ः २प७ः