Atmadharma magazine - Ank 144
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: आसो: २४८१ : २९९ :
न्यवस्तुने ओळखे तो सम्यक् श्रद्धा ज्ञान थाय. पुण्यना शुभरागथी धर्म थाय एम जेणे मान्युं तेणे
अनंतधर्मस्वरूप आत्माने मान्यो नथी, पण एक क्षणिक विकारने ज आत्मा मान्यो छे. शुभराग ते तो
आत्माना अनंतगुणोमांथी एक सचित्र गुणनी एक समयनी विकारी अवस्था छे, ते ज वखते आत्मामां ते
चारित्र गुणनी अनंती शुद्धपर्यायो थवानी ताकात छे तेम ज चारित्र सिवायना ज्ञान–श्रद्धा वगेरे अनंता गुणो
छे. जो आवा अनंत गुणना धरनार आत्माने लक्षमां ल्ये तो ते जीवने क्षणिक रागमां एकताबुद्धि थाय नहि ने
ते रागथी लाभ माने नहि. क्षणिक रागथी लाभ माननारे अनंतधर्मना पिंड शुद्धचैतन्यस्वरूप आत्माने मान्यो
नथी, तेथी तेने धर्म थतो नथी.
हे भगवान! आत्मा केवो छे?–के जेने ओळखीने अंतरमां एकाग्र थवाथी धर्म थाय,–एम जिज्ञासु
शिष्ये पूछ्युं छे, तेनो आ उत्तर चाले छे. तेमां आचार्यदेवे अनेक नयोथी वर्णन करीने आत्मानुं स्वरूप
समजाव्युं छे. नयोथी आत्माना जे जे धर्मोनुं वर्णन कर्युं छे ते बधा धर्मो आत्मामां पोताथी ज छे, परने लीधे
आत्माना धर्मो नथी; एटले पर सामे जोवानुं रहेतुं नथी पण धर्मना आधाररूप एवा शुद्ध चैतन्यद्रव्यनी सामे
जोवानुं रहे छे.
निश्चयथी आत्मा पोते एकलो ज बंध–मोक्षरूपे परिणमे छे; बंध थवामां कर्मनुं निमित्त, ने मोक्ष थवामां
देव–गुरु–शास्त्रनुं निमित्त–एम परनी अपेक्षाथी बंध–मोक्षने लक्षमां लेवा ते व्यवहार छे. आत्मा पोते पोतानी
पर्यायमां ज बंधाय छे ने पोते पोतानी पर्यायमां ज मोक्ष पामे छे, ए रीते बंध–मोक्षमां पोते एकलो ज होवाथी
निश्चयथी आत्मा अद्वैतने अनुसरे छे. निश्चयथी बंधमां के मोक्षमां आत्मा पोताना भावने ज अनुसरे छे,
परने अनुसरतो नथी. पोते विकार भावरूपे परिणमीने ते विकारथी बंधाय छे ने शुद्धचैतन्यस्वभावना आश्रये
पोते ज शुद्धभावरूपे परिणमीने मुक्त थाय छे, आ रीते निश्चयथी आत्मा बंधमां के मोक्षमां पोताना सिवाय
कोई परने नथी अनुसरतो, तेथी बंध–मोक्षमां अद्वैतने अनुसरे छे एवो तेनो धर्म छे. आ वात समजे तो बंध–
मोक्षरूपे परिणमनार एवा आत्मा उपर द्रष्टि जाय ने शुद्धचैतन्यस्वरूप आत्मा तेनी द्रष्टिमां आवी जाय; पर
चीज बंध–मोक्ष करावे–ए मान्यता तो तेने रहे ज नहि. अने जेने आवी द्रष्टि थई के “बंध–मोक्षरूपे मारो
आत्मा एकलो ज परिणमे छे”–तेने पोतामां एकलुं बंधरूप परिणमन न होय परंतु मोक्षमार्गरूप परिणमन
तेने शरू थई ज जाय. ४४ मा नयमां व्यवहारनयथी बंध–मोक्षमां द्वैतने अनुसरवानो धर्म कह्यो तेमां पण, ते
धर्म आत्मानो पोतानो होवाथी आत्मद्रव्यनी सामे ज जोवानुं आवे छे, कांई पर सामे द्रष्टि करवानुं नथी
आवतुं. द्वैतने अनुसरवारूप धर्म (अर्थात् अद्वैतने अनुसरवारूप धर्म) पण आत्मामां छे, ए रीते अनंत धर्मो
एक साथे वर्ते छे, ते बधा धर्मोने कबुलतां आखुं आत्मद्रव्य ज शुद्धचैतन्यमात्रपणे द्रष्टिमां आवी जाय छे.
अनंत धर्मना पिंडरूप आखा आत्मद्रव्यने भूलीने, एक धर्म उपर ज लक्ष राख्या करे तो त्यां आत्मद्रव्य
यथार्थपणे प्रतीतमां आवतुं नथी. अनंतधर्मवाळा आत्मद्रव्यने लक्षमां लेतां ते शुद्धचैतन्यमात्रपणे द्रष्टिमां (–
प्रतीतमां) आवे छे, त्यां अपूर्व सम्यग्दर्शन थाय छे ने अनादिना मिथ्यात्वनो नाश थई जाय छे.–अहींथी
साधकदशानी अपूर्व शरूआत थाय छे. पण ते शुद्धचैतन्यमात्र आत्मामां ज एकाग्र थतां चारित्रदशारूप
मुनिपणुं प्रगटे छे ने अस्थिरतानो नाश थई जाय छे.–आ ज धर्म अने मोक्षमार्ग छे.
अज्ञानीने अनंतधर्मस्वरूप पोताना आत्मानो महिमा न आवतां परनो महिमा आवे छे ने बहु तो
एकेक धर्म भेद पाडीने तेना विकल्पमां ज लाभ मानीने ते रोकाई जाय छे तेथी शुद्धचैतन्यद्रव्य तेनी प्रतीतमां
आवतुं नथी, ने तेना मिथ्यात्वनो नाश थतो नथी.
अहीं आचार्यदेव कहे छे के बंधमार्गमां पण आत्मा पोते एकलो ज बंधभावने करे छे, मोक्षमार्गमां पण
आत्मा एकलो ज पोताना ज छ कारकथी पोते मोक्षमार्गरूपे परिणमे छे ने मोक्षमां पण पोते एकलो ज छे.
मोक्षमार्ग वखते व्यवहारे बीजा निमित्तनी अपेक्षा भले हो, परंतु खरेखर मोक्षमार्गमां आत्मा पोताना
स्वभावने ज अनुसरे छे. परने अनुसरीने मोक्षमार्ग नथी. ‘बंधमार्गमां तेम ज मोक्षमार्गमां हुं एकलो ज छुं,
कोई अन्य द्रव्य साथे मारे संबंध नथी’–एम नक्की करनार जीव परद्रव्य साथेनी एकत्वबुद्धि तोडीने, स्वद्रव्य
तरफ वळतां