पोतानो छे, कांई बीजा बे अंश अधिक परमाणुना कारणे ते धर्म नथी आव्यो. ए ज प्रमाणे ते परमाणुनी
लायकात थतां स्कंधथी छूटो पडे, त्यां पण अन्य परमाणुथी छूटो पडवारूप द्वैतने अनुसरे छे. तेम आत्मा बंध–
मोक्षमां द्वैतने अनुसरे छे. बंधन कहेतां कर्मना संयोगनी अपेक्षा आवे छे ने मोक्ष कहेतां कर्मना वियोगनी
अपेक्षा आवे छे. आत्मा अने कर्म एवा द्वैत विना बंध–मोक्ष साबित थता नथी, माटे व्यवहारनये बंधमां तेम
ज मोक्षमां आत्मा द्वैतने अनुसरनार छे. व्यवहारनयथी पण एम नथी कह्युं के परने लीधे आत्माने बंध–मोक्ष
थाय छे. बंध–मोक्ष तो पोताथी ज थाय छे, पण व्यवहारे तेमां कर्मना संयोग–वियोगनी अपेक्षा आवे छे तेथी
बंध–मोक्षमां द्वैत गण्युं छे. आम समजे तो कर्मने कारणे जीवने बंध–मोक्ष थवानी मान्यता न रहे एटले
पराधीनद्रष्टि न रहे, पण आ धर्म आत्मानो छे तेथी आत्मद्रव्य तरफ जोवानुं रहे छे. निमित्त उपर के विकार
उपर जेनी द्रष्टिनुं वजन छे तेने आत्माना एक पण धर्मनी यथार्थ ओळखाण थती नथी. धर्मद्वारा धर्मी एवा
शुद्धचैतन्यरूप आत्मद्रव्यने ओळखीने तेना उपर द्रष्टिनुं जोर जतां सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान थाय छे अने
त्यारे ज आत्माना धर्मोनी यथार्थ ओळखाण थाय छे. आ रीते आ कोईपण धर्मना ज्ञानद्वारा अनंत धर्मना
पिंडरूप शुद्धचैतन्यद्रव्यने द्रष्टिमां लईने तेनो अनुभव करवो ते ज करवानुं छे.
ज अनंत संसारना कारणरूप मोहभाव छूटी जाय ने मोक्षनी निःशंकताथी आत्मा एकदम हळवो थई जाय. पछी
ते शुद्ध आत्मानुं अवलंबन लईने जेम जेम तेमां एकाग्र थतो जाय तेम तेम अविरति वगेरे पापो पण छूटीने
आत्मा हळवो थतो जाय ने अतीन्द्रियआनंदनुं वेदन वधतुं जाय; छेवटे पूर्णपणे शुद्धात्मस्वरूपमां एकाग्र थतां
विकारनो भार सर्वथा टळीने आत्मा तद्न हळवो थई जाय एटले के संपूर्णशुद्ध थई जाय ने पूर्ण अतीन्द्रिय
आनंद प्रगटी जाय. पहेलांं बंधदशामां कर्मना निमित्तनो सद्भाव हतो, ने हवे मोक्षदशामां कर्मनो अभाव थई
गयो एटले कर्मथी छूटकारो थयो, ए रीते बंधमां तेम ज मोक्षमां आत्मा द्वैतने अनुसरे छे–एवो तेनो एक धर्म
छे, ने ते धर्मथी आत्माने जाणनारुं ज्ञान ते व्यवहारनय छे.
आत्मद्रव्य निश्चयनये बंध अने मोक्षने विषे अद्वैतने अनुसरनारुं छे. जेम बंध–मोक्षने योग्य एवी
ज बंध के मोक्षदशारूपे थाय छे; बंधमां के मोक्षमां पोतानी योग्यताथी ज परिणमे छे, तेमां निश्चयथी बीजानी
अपेक्षा राखतो नथी. अहीं बंध मोक्षनी पर्यायने निश्चयनयनो विषय कह्यो छे, ते बंध मोक्षमां परनी अपेक्षा
न लेतां एकला आत्माथी ज ते पर्यायो थती जाणवी ते निश्चयनय छे. ते निश्चयनयथी बंध मोक्षमां आत्मा
एकलो ज छे एटले आत्मा अद्वैतने अनुसरे छे.
परिणमे छे–एम एकला आत्मानी अपेक्षाथी बंध मोक्षपर्यायने लक्षमां लेवानी वात छे. बंध पर्यायमां पण
एकलो आत्मा ज परिणमे छे ने मोक्षपर्यायमां पण एकलो आत्मा ज परिणमे छे, ए रीते बंध–मोक्ष पर्याय
निरपेक्ष छे, एटले निश्चयथी आत्मा बंधमां तेमज मोक्षमां अद्वैतने अनुसरनार छे, एवो तेनो एक धर्म छे.