माणसो ज न वसता होय तो खाली मकानमां वास्तु शेनुं? तेम आ आत्मामां वास्तु थाय छे. आत्मवस्तुमां
कोण वसे छे?–आत्मवस्तुमां पोताना अनंत धर्मो वसे छे, ते अनंतधर्मोनुं वास्तु आत्मामां छे. भगवान!
तारी आवी वस्तुना महिमाने लक्षमां लईने तेमां तुं वास कर.–तो तारो भव–वास मटे ने मोक्षदशा प्रगटे.
त्यां पण आत्मा द्वैतने अनुसरे छे–एम कह्युं छे. व्यवहारनयथी मोक्षमां पण परनी (कर्मना अभावनी)
अपेक्षा लागु पडती होवाथी त्यां पण आत्मा द्वैतने अनुसरे छे एम कह्युं छे. आ रीते द्वैतने अनुसरवामां पण
आत्मानी स्वतंत्रता छे. परंतु एम नथी के कर्मना उदयनुं जोर छे माटे आत्माए तेने अनुसरीने बंधभाव
करवो पडे छे अने कर्म छोडे त्यारे आत्मानी मुक्ति थाय. आत्मा बंधन वखते पोते कर्मना उदयने अनुसरे छे ने
मोक्ष वखते पोते कर्मना अभावने अनुसरे छे,–एवो द्वैतने अनुसरवानो धर्म पोतानो छे. परसन्मुखद्रष्टिथी
आ धर्मनी कबुलात यथार्थपणे थई शकती नथी, पण आत्मद्रव्यनी सन्मुख द्रष्टि राखीने ज तेना धर्मनो
यथार्थपणे स्वीकार थाय छे.
एवा अनंतनयोस्वरूप श्रुतज्ञान प्रमाण, अवस्थामां विकार अने तेनुं निमित्त,–आ बधुं रहस्य आमां समाई
जाय छे. आवी वात सर्वज्ञना कहेला जैनदर्शन सिवाय बीजे क्यांय आवती नथी.
चैतन्यमात्र आत्मद्रव्यनो निर्णय करीने तेना उपर द्रष्टिनुं जोर आपवानुं छे. अंतरंगमां पोताना आत्माने शुद्ध
चैतन्यमात्र देखवो ते ज आ बधा नयोनुं तात्पर्य छे. ए सिवाय निमित्त उपर, विकार उपर के भेद उपर वजन
आपवुं एवुं कोईपण नयनुं तात्पर्य नथी. अनंतधर्मोना पिंडरूप शुद्धचैतन्यमूर्ति आत्मद्रव्य छे तेना आ बधा
धर्मो छे–एम जाणीने, ते शुद्धचैतन्यमूर्ति आत्मानुं ज अवलंबन करतां शुद्धआत्मानी प्राप्ति थाय छे एटले के
आत्मानी पूर्णशुद्ध मुक्तदशा प्रगटी जाय छे.
करावे. बंध–मोक्ष वखते कर्मना सद्भाव के अभावने अनुसरे एवो आत्मानो धर्म छे. व्यवहारनय पण
आत्माना धर्मने बतावे छे, ते कांई निमित्तना धर्मने नथी बतावतो. ‘व्यवहारनयथी आत्मा बंध–मोक्षमां
द्वैतने अनुसरे छे’ एम कह्युं, तेमां द्वैतने अनुसरवारूप जे धर्म छे ते तो आत्मामां निश्चयथी ज छे. व्यवहार
नयना विषयरूप धर्म पण आत्मामां निश्चयथी छे; व्यवहारनयना विषयरूप धर्म आत्मामां नथी–एम नथी;
आत्माना जे अनंता धर्मो छे ते बधाय निश्चयथी आत्मामां छे. तेमांथी आ बंध–मोक्षमां द्वैतने अनुसरवारूप
धर्मवडे आत्माने लक्षमां लेनारुं ज्ञान ते व्यवहारनय छे, केम के ते निमित्तनी अपेक्षा लईने बंध–मोक्षने जाणे छे
माटे ते व्यवहारनय छे.
परिणमीने