Atmadharma magazine - Ank 144
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: आसो: २४८१ : २९७ :
आ द्वैतने अनुसरवारूप धर्म पण कांई परना आश्रये नथी, ते धर्म पण आत्माना ज आश्रये छे.
जुओ, आ चैतन्यवस्तुनो महिमा! तेनामां अनंत धर्मोनो वास छे. चैतन्यवस्तु अनंतधर्मोनी वसतीथी
वसेली छे, अनंतधर्मोनुं तेनामां वास्तु छे. जेम मोटा मकानोमां वास्तु करीने माणसो तेमां वास करे छे, पण जो
माणसो ज न वसता होय तो खाली मकानमां वास्तु शेनुं? तेम आ आत्मामां वास्तु थाय छे. आत्मवस्तुमां
कोण वसे छे?–आत्मवस्तुमां पोताना अनंत धर्मो वसे छे, ते अनंतधर्मोनुं वास्तु आत्मामां छे. भगवान!
तारी आवी वस्तुना महिमाने लक्षमां लईने तेमां तुं वास कर.–तो तारो भव–वास मटे ने मोक्षदशा प्रगटे.
आत्माना अनंतधर्मोमां एक एवो धर्म छे के बंध अने मोक्षमां ते द्वैतने अनुसरे छे. बंध वखते कर्मनो
उदय छे माटे ते कर्मने लीधे आत्मा द्वैतने अनुसरे छे–एम नथी, केमके मोक्षवखते तो कर्मनो अभाव होवा छतां
त्यां पण आत्मा द्वैतने अनुसरे छे–एम कह्युं छे. व्यवहारनयथी मोक्षमां पण परनी (कर्मना अभावनी)
अपेक्षा लागु पडती होवाथी त्यां पण आत्मा द्वैतने अनुसरे छे एम कह्युं छे. आ रीते द्वैतने अनुसरवामां पण
आत्मानी स्वतंत्रता छे. परंतु एम नथी के कर्मना उदयनुं जोर छे माटे आत्माए तेने अनुसरीने बंधभाव
करवो पडे छे अने कर्म छोडे त्यारे आत्मानी मुक्ति थाय. आत्मा बंधन वखते पोते कर्मना उदयने अनुसरे छे ने
मोक्ष वखते पोते कर्मना अभावने अनुसरे छे,–एवो द्वैतने अनुसरवानो धर्म पोतानो छे. परसन्मुखद्रष्टिथी
आ धर्मनी कबुलात यथार्थपणे थई शकती नथी, पण आत्मद्रव्यनी सन्मुख द्रष्टि राखीने ज तेना धर्मनो
यथार्थपणे स्वीकार थाय छे.
आत्माना एक धर्मनो यथार्थ स्वीकार करवा जाय तो तेमां पण बधुं रहस्य आवी जाय छे. आत्मा एक
वस्तु, तेनामां अनंत धर्मो, ते अनंतधर्मोरूप वस्तुने जाणनारुं प्रमाणज्ञान, एकेक धर्मने जाणनार एकेक नय,
एवा अनंतनयोस्वरूप श्रुतज्ञान प्रमाण, अवस्थामां विकार अने तेनुं निमित्त,–आ बधुं रहस्य आमां समाई
जाय छे. आवी वात सर्वज्ञना कहेला जैनदर्शन सिवाय बीजे क्यांय आवती नथी.
अहीं आत्मद्रव्य समजाववा माटे तेना जुदा जुदा धर्मो वडे तेनुं वर्णन कर्युं छे; तेमां जोर क्यां आपवानुं
छे? एकेक धर्मनो भेद पाडीने तेना उपर जोर आपवानुं नथी, पण आत्माना आ धर्मोद्वारा धर्मी एवा शुद्ध
चैतन्यमात्र आत्मद्रव्यनो निर्णय करीने तेना उपर द्रष्टिनुं जोर आपवानुं छे. अंतरंगमां पोताना आत्माने शुद्ध
चैतन्यमात्र देखवो ते ज आ बधा नयोनुं तात्पर्य छे. ए सिवाय निमित्त उपर, विकार उपर के भेद उपर वजन
आपवुं एवुं कोईपण नयनुं तात्पर्य नथी. अनंतधर्मोना पिंडरूप शुद्धचैतन्यमूर्ति आत्मद्रव्य छे तेना आ बधा
धर्मो छे–एम जाणीने, ते शुद्धचैतन्यमूर्ति आत्मानुं ज अवलंबन करतां शुद्धआत्मानी प्राप्ति थाय छे एटले के
आत्मानी पूर्णशुद्ध मुक्तदशा प्रगटी जाय छे.
जुओ, अहीं व्यवहारनयमां पण एम नथी के कर्मनो उदय आत्माने बंधन करावे. व्यवहारनयथी कर्मनी
एटली अपेक्षा छे के आत्मा पोते बंध वखते तेने अनुसरे छे. कर्मनो एवो धर्म नथी के आत्माने बंध–मोक्ष
करावे. बंध–मोक्ष वखते कर्मना सद्भाव के अभावने अनुसरे एवो आत्मानो धर्म छे. व्यवहारनय पण
आत्माना धर्मने बतावे छे, ते कांई निमित्तना धर्मने नथी बतावतो. ‘व्यवहारनयथी आत्मा बंध–मोक्षमां
द्वैतने अनुसरे छे’ एम कह्युं, तेमां द्वैतने अनुसरवारूप जे धर्म छे ते तो आत्मामां निश्चयथी ज छे. व्यवहार
नयना विषयरूप धर्म पण आत्मामां निश्चयथी छे; व्यवहारनयना विषयरूप धर्म आत्मामां नथी–एम नथी;
आत्माना जे अनंता धर्मो छे ते बधाय निश्चयथी आत्मामां छे. तेमांथी आ बंध–मोक्षमां द्वैतने अनुसरवारूप
धर्मवडे आत्माने लक्षमां लेनारुं ज्ञान ते व्यवहारनय छे, केम के ते निमित्तनी अपेक्षा लईने बंध–मोक्षने जाणे छे
माटे ते व्यवहारनय छे.
जेम बे अंश के तेथी वधारे लूखाश के चीकासवाळा परमाणुमां बंध थवानी लायकात थतां ते परमाणु
पोताथी बे अंश ज अधिक एवा अन्य परमाणु के स्कंधने अनुसरीने पोते पण तेटली लूखाश के चीकासरूपे
परिणमीने