Atmadharma magazine - Ank 144
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: २९६ : : आसो: २४८ :
स्वभावनुं यथार्थ ज्ञान थाय. एकला पुद्गलनुं ज सामर्थ्य छे ने पुद्गल ज जीवनी शक्तिने रोके छे–एम जे
माने तेनी तो द्रष्टि ज ऊंधी छे, तेणे तो जीव–पुद्गलनी भिन्नता पण नथी मानी, तो जीवनी शक्ति शुं ने
पुद्गलनी शक्ति शुं तेनी तेने खबर पडे नहि. पुद्गलनी शक्ति पुद्गलमां छे ने जीवनो धर्म जीवमां स्वतंत्र छे;
पुद्गलने अनुसरवुं के पोताना चिदानंदस्वभावने अनुसरवुं तेमां जीव पोते स्वतंत्र छे. व्यवहारनयथी जीवना
धर्मनुं वर्णन होय के निश्चयनयथी वर्णन होय, तेमां सर्वत्र जीवना द्रव्य–गुण–पर्यायनी स्वतंत्रता राखीने ते
वर्णन छे एम समजवुं जोईए, अने एम समजवुं ते ज सर्वज्ञभगवानना अनेकान्तशासननुं रहस्य छे. जीव
पोते केवळज्ञानरूपे न परिणमतां अल्पज्ञरूपे परिणमे छे त्यारे ते केवळज्ञानावरणीयकर्मने अनुसरे छे. त्यां
केवळज्ञानावरणीयकर्मे जीवनी केवळज्ञान शक्तिने रोकी एम कहेवुं ते तो फक्त निमित्तना उपचारनुं कथन छे.
भगवान! ‘केवळज्ञानावरणीय कर्म छे माटे आत्माए तेने अनुसरवुं पडे छे’ एम ऊंधुंं न ले, पण बंधभाव
वखते कर्मने अनुसरे एवो तारो पोतानो धर्म छे–एम आत्मा तरफथी सवळुं ले; तो तने आत्माना धर्म द्वारा
आत्मद्रव्यनी ओळखाण थाय अने तारो व्यवहारनय साचो थाय.
त्रिकाळी स्वभावने लक्षमां लईने जुओ तो आत्मा शुद्ध एकरूप छे, तेनी पर्याय विकारीभावमां अटके
ते भावबंध छे अने ते भावबंधमां कर्मसंयोगरूप निमित्त ते बीजुं छे, ए रीते बंधमां द्वैत छे. तेम ज
स्वभावमां लीन थईने मोक्षपर्याय प्रगट करे तेमां पण कर्मना नाशनी अपेक्षा होवाथी द्वैत छे. आ रीते परनी
अपेक्षा सहित बंध–मोक्ष पर्यायनुं कथन करवुं ते व्यवहारनयनो विषय छे. व्यवहारनयथी आत्मा बंध अने
मोक्ष बन्नेमां द्वैतनी अपेक्षा राखनार छे. अहीं, एकरूप आत्मामां बंध अने मोक्ष एवा बे प्रकार पड्या माटे
व्यवहार–एम नथी, परंतु बंध अने मोक्ष ए बन्ने पर्यायमां परनी अपेक्षारूप द्वैत होवाथी तेने व्यवहार कह्यो
छे. अने कर्मनी अपेक्षा न लेतां, आत्मा एकलो ज बंध–मोक्षदशारूप थाय छे–एम लक्षमां लेवुं तेने निश्चय
कहेशे. आ रीते अहीं बंध–मोक्ष पर्यायनुं कथन निमित्तनी अपेक्षा सहित करवुं ते व्यवहार छे ने एकला पोताथी
बंध–मोक्षपर्यायनुं वर्णन करवुं ते निश्चय छे. ज्यां जे अपेक्षाथी निश्चय–व्यवहार कहेवामां आव्या होय त्यां ते
प्रकारथी समजवुं जोईए.
पुद्गलकर्म जीवने भावबंध करावे छे एम नथी परंतु जीवनो एक एवो धर्म छे के पोताना भावबंधमां
ते पुद्गलकर्मने अनुसरे छे; आत्मा पोते निमित्तने अनुसरे छे, परंतु निमित्तमां एवो धर्म नथी के ते आत्माने
पराणे अनुसरण करावे! आ धर्मने समजे तो तेमां पण आत्मानी स्वतंत्रता समजाय छे. आ धर्मो कहेवाय छे
ते बधा धर्मोवाळुं तो आत्मद्रव्य छे, माटे अनंत धर्मस्वरूप आत्मद्रव्यना लक्षपूर्वक ज्ञानी पोताना धर्मने जाणे
छे. पर्यायमां हजी बंधभाव छे तेटलो आत्मा कर्मने अनुसरे छे, क्षणिक पर्यायमां तेवो धर्म छे; कर्मने
अनुसरवानो त्रिकाळी स्वभाव नथी परंतु कर्मना अभावने अनुसरवानो आत्मानो त्रिकाळी स्वभाव छे.–
आवा स्वभावनी प्रतीतिमां धर्मीने अवस्थामांथी कर्मनुं अनुसरण छूटतुं जाय छे ने कर्मना अभावनुं अनुसरण
थतुं जाय छे. आ रीते व्यवहारनये बंधमां तेम ज मोक्षमां आत्मा द्वैतने अनुसरनार छे.
पुद्गलकर्ममां कांई एवो धर्म नथी के ते आत्माना बंध–मोक्षने करे; आत्मा पोते ज पोताना बंध–मोक्षने
करे छे, ने पोते द्वैतने अनुसरे छे. बंध अने मोक्ष तो क्रमे छे, बंधदशा वखते मोक्षदशा न होय ने मोक्षदशा
वखते बंधदशा न होय; पण ते बंध अने मोक्ष बंने दशामां द्वैतने अनुसरवा रूप धर्म आत्मामां छे. बंध वखते
द्वैतने अनुसरवारूप जुदो धर्म, ने मोक्ष वखत द्वैतने अनुसरवारूप जुदो धर्म–एम जुदा जुदा बे धर्म नथी
लीधा, पण द्वैतने अनुसरवारूप एक धर्म छे, ते धर्मथी आत्मा बंध वखते तेम ज मोक्ष वखते द्वैतने अनुसरे छे,
एटले के तेनी बंध–मोक्षपर्यायमां बीजा निमित्तनी अपेक्षा पण आवे छे.
मोक्षपर्यायमां पण आत्मा द्वैतने अनुसरे छे एम व्यवहारे कह्युं, तेथी कांई तेमां परनुं अवलंबन नथी.
पोतानी मोक्षपर्यायनी लायकात वखते आत्मा पोते कर्मना अभावने अनुसरे छे, एटले एक पोते ने बीजुं
कर्मना अभावरूप निमित्त,–ए रीते आत्मा द्वैतने अनुसरे छे.