
त्यारे (अज्ञानदशामां) पण खरेखर मारुं कोई पण नहोतुं; त्यारे पण हुं एकलो ज कर्ता हतो, कारण के हुं
एकलो ज उपरोक्त चैतन्यरूप स्वभाव वडे स्वतंत्र हतो... अने हमणां मुमुक्षुदशामां अर्थात् ज्ञानदशामां पण
खरेखर मारुं कोई पण नथी; हमणां पण हुं एकलो ज कर्ता छुं, कारण के हुं एकलो ज सुविशुद्ध चैतन्यरूप
स्वभाव वडे स्वतंत्र छुं...–आ रीते बंधमार्गमां तेम ज मोक्षमार्गमां आत्मा एकलो ज छे एम भवनार आ
पुरुष परमाणुनी माफक एकत्व भावनामां उन्मुख–तत्पर होवाथी, तेने परद्रव्यरूप परिणति बिलकुल थती नथी;
अने, परमाणुनी माफक, एकत्वने भावनार पुरुष पर साथे संपृक्त थतो नथी; तेथी परद्रव्य साथे
असंपृक्तपणाने लीधे ते सुविशुद्ध होय छे.
अद्वैतने अनुसरवानुं कहीने ए बताव्युं के बंधमां, मोक्षमार्गमां के मोक्षमां परद्रव्यथी निरपेक्षपणे आत्मा पोते
एकलो ज परिणमे छे; बंध–मोक्ष स्वत: पोताथी ज थाय छे. निश्चयथी आत्मा अद्वैतने अनुसरे छे–एम अहीं
कह्युं तेनो अर्थ एम नथी के ‘आत्माने बंधन छे ज नहि.’ बंधनमां पण निश्चयथी आत्मा एकलो ज परिणमे
छे–तेथी तेने अद्वैतने अनुसरनार कह्यो छे–एम समजवुं.
अन्यपरमाणुओथी छूटो पडे त्यारे ते छूटा पडवारूप अवस्थारूपे पण ते पोते पोतामां ज परिणमे छे. आ रीते
निश्चयथी ते परमाणुना बंध मोक्षमां बीजा परमाणुनी अपेक्षा नथी, तेम निश्चयनयथी जोतां आत्माना बंध
मोक्षमां परनी अपेक्षा नथी, आत्मा पोते एकलो ज बंध मोक्षने योग्य पोतानी पर्यायथी बंधाय के मुकाय छे.
व्यवहारनयथी पण कांई बंध मोक्षरूपे आत्माने बीजो नथी परिणमावतो, परंतु व्यवहारनये आत्माना बंध
मोक्षमां पर निमित्तोनी अपेक्षा आवे छे, छतां त्यां पण बंध–मोक्षरूपे आत्मा पोते पोताथी एकलो ज परिणमे
छे. ‘हुं परनी क्रियाने करुं अने परचीज मारी बंध–मोक्ष अवस्थाने करे’ एम माननार तो मोटा मिथ्यात्वनो
धणी छे, पोताना स्वाधीन धर्मोनुं तेने भान नथी, ने परचीजने पण ते स्वतंत्र मानतो नथी.–एवा
मिथ्याद्रष्टिने किंचित्धर्म थतो नथी.
अनंतधर्मस्वरूप आखी वस्तुना ज्ञानपूर्वक तेना कोई धर्मने मुख्य करीने जाणे तो ते नय साचो छे. आखी
वस्तुना ज्ञान वगरनो नय साचो होतो नथी. आ रीते साधकने ज नय होय छे.
जुदा जुदा बे आत्माना धर्मोनी आ वात नथी, परंतु एक ज आत्माना धर्मोनी आ वात छे. एक ज आत्मामां
एवा बे धर्मो एक साथे छे के व्यवहारनयथी ते बंधमोक्षमां द्वैतने अनुसरे छे ने निश्चयनयथी ते बंध–मोक्षमां
अद्वैतने अनुसरे छे. अहीं प्रमाणना विषयरूप वस्तुनुं वर्णन छे, तेथी आत्मानी अवस्थामां बंधन थाय छे ते
पण आत्मानो धर्म छे, कांई परवस्तुने कारणे ते बंधन नथी. ते बंधन थवा रूप धर्म आत्माना
त्रिकाळीस्वभावरूप नथी पण बंध थवाने योग्य क्षणिक पर्यायना आश्रये ते धर्म छे; तेथी बंधनी लायकात
टळीने शुद्धद्रव्यना आश्रये मोक्षनी लायकात थतां सिद्धदशामां ते बंधन थवारूप धर्मनो अभाव थई जाय छे.
अशुद्धतामां