Atmadharma magazine - Ank 144
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: आसो: २४८१ : ३०१ :
ज न अटकतां, त्रिकाळी शुद्धस्वभावनो ज महिमा करीने तेमां एकाग्र थाय छे. आ रीते अनंतधर्मात्मक वस्तुने
जाणनारनी द्रष्टि शुद्धचैतन्यद्रव्य उपर ज होय छे, जो एवी द्रष्टि न होय तो तेने वस्तुनुं ज्ञान ज साचुं नथी.
बंध–मोक्षमां आत्मा एकलो ज छे–एम जाणे तो आत्माने परद्रव्योथी भिन्न समजे, ने पोताना
अनंतधर्मो पोतामां ज छे एम ओळखीने शुद्धआत्मानी द्रष्टि करे. कोई पण परद्रव्यना कारणे आत्माने बंध–
मोक्ष थवानुं ते माने नहि. निश्चयथी आत्मा पोताना बंध–मोक्षमां परनी अपेक्षारूप द्वैतने अनुसरतो नथी,
अद्वैतने अनुसरीने एटले के पोते एकलो ज बंध–मोक्षरूपे परिणमे छे.
कर्मनुं निमित्त छे माटे जीवने बंधन थयुं? –ना;
कर्म छूट्या माटे जीवनी मुक्ति थई? –ना;
कर्मनी पर्याय कर्ममां, ने जीवनी पर्याय जीवमां.
जीव पोते पोतानी पर्यायमां विकाररूपे परिणम्यो तेथी बंधन थयुं, अने जीव पोते पोतानी पर्यायमां
मोक्षरूपे परिणम्यो तेथी मुक्ति थई. –आ प्रमाणे निश्चयनयथी बंध–मोक्षमां आत्मा अद्वैतने अनुसरे छे एटले
के तेमां परनी अपेक्षा नथी. आम छतां व्यवहारनये, आत्मानी बंध–मोक्षपर्यायमां कर्मना संयोग–वियोगनी जे
अपेक्षा छे तेनुं पण साधकने ज्ञान छे–ए वात ४४मा नयमां सिद्ध करी छे.
–४५मा निश्चयनयथी आत्मानुं वर्णन अहीं पूरुं थयुं.
सर्वज्ञदेवना सर्व उपदेशनुं तात्पर्य
[प्रवचनसार गा. १०२ उपरना पू. गुरुदेवना प्रवचनमांथी]
दिव्यज्ञानमां सर्वज्ञभगवाने दरेक द्रव्यने, पोतपोताना उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप त्रिस्वभावने स्पर्शतुं जोयुं
छे, अने उपदेशमां पण ते ज स्वरूप बताव्युं छे.
अहो! पदार्थोनो आ एक उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वभाव बराबर ओळखे तो भेदज्ञान थईने, स्वद्रव्यना ज
आश्रये निर्मळ–निर्मळ पर्यायनो उत्पाद थाय ने मलिनतानो व्यय थाय;–आनुं नाम धर्म छे ने आ ज
सर्वज्ञदेवना सर्व उपदेशनुं तात्पर्य छे.
दरेक द्रव्य एक समयमां पोताना उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप त्रिस्वभावने स्पर्शे छे, ते ज वखते निमित्तो होवा
छतां द्रव्य तेमने स्पर्शतुं नथी. सम्यग्दर्शन थयुं त्यां, ते सम्यग्दर्शनना उत्पादने, मिथ्यात्वना व्ययने अने
श्रद्धापणे पोतानी धु्रवताने आत्मा स्पर्शे छे, पण सम्यक्त्वनां निमित्तभूत एवां देव–गुरु के शास्त्रने आत्मा
स्पर्शतो नथी, ते तो जुदा स्वभाववाळां पदार्थो छे. सम्यग्दर्शननी उत्पत्ति, मिथ्यात्वनो व्यय तथा श्रद्धापणानी
सळंगतारूप धु्रवता–ए त्रणेय, आत्मामां ज समाय छे; पण ते सिवायनां जे बाह्य निमित्तो छे तेओ आत्मामां
समाता नथी पण बहार ज रहे छे एटले आत्मा तेमने स्पर्शतो नथी. समये समये उत्पाद–व्यय–धु्रवतारूप
पोतानो स्वभाव छे, ते स्वभावने ज दरेक द्रव्य स्पर्शे छे एटले पोताना स्वभावपणे ज वर्ते छे, पण परद्रव्यने
कारणे कोईना उत्पाद–