Atmadharma magazine - Ank 144
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: ३०२ : : आसो: २४८ :
व्यय–धु्रवता नथी. परद्रव्य पण तेना पोताना ज उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वभावमां अनादि अनंत वर्ते छे, ने आ
आत्मा पण पोताना उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वभावमां ज अनादिअनंत वर्ते छे. एटले आवुं समजनार ज्ञानीने
पोताना आत्माना उत्पाद–व्यय–धु्रवता सिवाय बहारमां किंचित पण कार्य पोतानुं भासतुं नथी, एटले उत्पाद–
व्यय–धु्रवस्वरूप जे पोतानो आत्मा, तेना आश्रये निर्मळतानो ज उत्पाद थतो जाय छे, मलिनतानो व्यय थतो
जाय छे, ने धु्रवतानुं अवलंबन रह्या ज करे छे,–आनुं नाम धर्म छे.
अजीवद्रव्य पण पोताना उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप त्रिस्वभावने ज स्पर्शे छे, परने ते स्पर्शतुं नथी. जेम के :
माटीना पिंडमांथी घडो थयो; त्यां, पिंड अवस्थाना व्ययने, घट अवस्थाना उत्पादने तथा माटीपणानी धु्रवताने
ते माटी स्पर्शे छे, पण कुंभारने–चाकने–दोरीने के बीजा कोई परद्रव्यने ते माटी स्पर्शती नथी. अने कुंभार पण
हाथना हलनचलनरूप पोतानी अवस्थानो जे उत्पाद थयो ते उत्पादने स्पर्शे छे, पण पोताथी बहार एवा
घडाने ते कुंभार स्पर्शतो नथी.
जगतमां छए द्रव्यो एक ज क्षेत्रे रहेला होवा छतां, कोई द्रव्य बीजा द्रव्यना स्वभावने स्पर्शतुं नथी,
पोतपोताना उत्पाद–व्यय–धु्रवतारूप स्वभावमां ज दरेक द्रव्य वर्ते छे एटले पोताना स्वभावने ज ते स्पर्शे छे.
जुओ, आ सर्वज्ञदेवे कहेलुं वीतरागी भेदज्ञान! निमित्त–उपादाननो खुलासो पण आमां आवी जाय छे.
उपादान अने निमित्त ए बंने पदार्थो एक साथे ज वर्तता होवा छतां, उपादानरूप पदार्थ पोताना उत्पाद–व्यय–
धु्रवतारूप स्वभावने ज स्पर्शे छे, निमित्तने ते जरापण स्पर्शतो नथी; तेम ज निमित्तभूत पदार्थ पण तेना
पोताना उत्पाद–व्यय–धु्रवतारूप स्वभावने ज स्पर्शे छे, उपादानने ते जरा पण स्पर्शतुं नथी, उपादान अने
निमित्त–बंने जुदे जुदा पोतपोताना स्वभावमां ज वर्ते छे.
अहो, पदार्थोनो आ एक उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वभाव बराबर ओळखे तो भेदज्ञान थईने, स्वद्रव्यना ज
आश्रये निर्मळ पर्यायनो उत्पाद थाय ने मलिनतानो व्यय थाय; तेनुं नाम धर्म छे, ने ते ज सर्वज्ञभगवानना
सर्व उपदेशनुं तात्पर्य छे.
लोकोत्तर पदार्थविज्ञान
श्री प्रवचनसार गा. १ ऊपरना पू. गुरुदेवना प्रवचनमांथी
(वर स. २४८१ अधक भदरव वद १०)
हे जीव! तारो आत्मा अने जगतना बधा पदार्थो द्रव्य–गुण–पर्यायस्वरूप स्वतंत्र वस्तु छे. क्षणे क्षणे
पलटाती तारी पर्यायनो संबंध तारा द्रव्य–गुण साथे ज छे, परनी साथे तारी पर्यायनो संबंध नथी. परना
द्रव्य–गुण–पर्यायथी तारा द्रव्य–गुण–पर्याय अत्यंत जुदा छे. माटे, भगवाने कहेला आवा लोकोत्तर
पदार्थविज्ञानने जाणीने, पर पदार्थो साथेना संबंधनी बुद्धि छोड, ने तारी पर्यायने अंतरमां वाळीने द्रव्य–गुण
साथे एकता कर, तो सम्यक् श्रद्धा–ज्ञान–आनंदरूप धर्म थाय.
आ आत्मा ज्ञानस्वभावी वस्तु छे; ने जगतना स्व–पर बधा पदार्थो तेना ज्ञानना ज्ञेयो छे; ते
ज्ञेयपदार्थोने जाणवानो आत्मानो स्वभाव छे, पण बीजा ज्ञेयपदार्थोनुं कांई करी द्ये–एवो स्वभाव नथी. दरेक
पदार्थ स्वतंत्र छे, परथी भिन्न छे, पोताना द्रव्य–गुण–पर्यायनी सत्तामां ज दरेक पदार्थ समाई जाय छे, पोताना
द्रव्य–गुण–पर्यायनी सत्ताथी आत्मा कांई करी शकतो नथी. आवा परथी भिन्न ज्ञान स्वभावनो निर्णय करवो ते
ज आत्माने शांतिनो उपाय छे.
जगतना जड–चेतन पदार्थो स्वयंसिद्ध छे, ते अनादिअनंत छे; कोई पदार्थ तद्न नवो उत्पन्न थतो नथी,