: आसो: २४८१ : ३०३ :
तेम ज तेनो तद्न नाश पण थई जतो नथी; पोते स्वयंसिद्ध सत् छे, कोई तेनो कर्ता के हर्ता नथी. हवे,
स्वयंसिद्ध पदार्थ कायम रहीने तेमां क्षणे क्षणे नवी हालत थया करे छे,–दरेक पदार्थ पोताना स्वभावथी ज नवी
नवी हालतरूपे थया करे छे. तेमां बीजो पदार्थ कांई करी द्ये–एम बनतुं नथी.
जुओ, आ पदार्थविज्ञान. पदार्थोनो जेवो स्वयंसिद्ध स्वभाव छे तेवो ज्ञानथी जाणवो ते ज खरुं
पदार्थविज्ञान छे. पदार्थना स्वभावनी जेने खबर न होय तेने पदार्थ विज्ञान कहेवाय नहीं.
पदार्थनो केवो स्वभाव छे–ते अहीं बतावे छे. जगतना बधा पदार्थोनी आ वात छे. पदार्थ पोते कायम
पोतापणे टकीने क्षणे क्षणे नवी नवी पर्यायपणे प्रणम्या करे छे. क्षणे क्षणे अवस्था पलटवा छतां पोताना मूळ
स्वभावपणे पदार्थ कायम टकी रहे छे, मूळस्वभाव कदी नाश थई जतो नथी.–आम जाणे तो, परमां हुं कांई करुं के
परथी मारामां कांई थाय–एवी मिथ्याबुद्धि छूटी जाय. मारा द्रव्य–गुण–पर्याय मारामां, ने परना द्रव्य–गुण–पर्याय
परमां,–एम भेदज्ञान करीने पोते पोताना स्वभावसन्मुख परिणमतां शांति ने आनंदनो अनुभव थाय छे.
परथी तो मारा द्रव्य–गुण–पर्याय नहि, एम निर्णय कर्यो एटले परना आश्रयथी तो बुद्धि न रही; अने
हवे पोतामां पण एक क्षणिक राग के क्षणिक ज्ञानपर्यायना अंश जेटलो ज आखो आत्मा नथी,–पण पर्याय
पलटवा छतां सळंगपणे (अन्वयपणे) आखुं द्रव्य वर्ते छे–एम नक्की कर्युं त्यां एकली अंशबुद्धि न रही–
पर्यायबुद्धि न रही, पण धु्रवद्रव्यनो आश्रय करीने, धु्रव साथे पर्यायनी अभेदता थई, ते सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्ररूप धर्म छे. आ सिवाय बहारमां बीजी कोई रीते धर्म के शांति नथी.
जुओ भाई, जगतमां चेतन पदार्थो छे, ने जड–अचेतन पदार्थो पण छे, ते बधा सत् छे. ते सत सदाय
टकीने क्षणे क्षणे नवी पर्याय रूपे परिणमे छे, एटले के उत्पाद–व्यय–ध्रौव्यरूप छे. पलटवां छतां कोई पदार्थ
पोताना मूळस्वभावने छोडता नथी.
चेतनद्रव्य पलटीने कदी जडरूपे थई जतुं नथी;
जडद्रव्य पलटीने कदी चेतनरूपे थई जतुं नथी.
चेतन सदा चेतनरूपे बदले छे;
जड सदा जडरूपे बदले छे.
वळी कोईपण पदार्थ बदल्या विना पण रहेतो नथी, क्षणे क्षणे पोतानी अवस्था बदल्या ज करे–आवो ज
वस्तुनो स्वभाव छे.
हवे वस्तुनी अवस्था बदले छे ते पोताना द्रव्यगुण साथे संबंध राखीने ज बदले छे, पण परनी साथे
संबंध राखीने पदार्थनी अवस्था बदलती नथी. आवा स्वतंत्र स्वभावने जाणवो ते वीतरागी विज्ञान छे.
पदार्थनी पर्यायो पोताना द्रव्य–गुण साथे ज एकता राखीने बदले छे; पण अज्ञानी एम माने छे के
निमित्तने लीधे पर्यायो बदले छे, –ए पराधीन मिथ्याद्रष्टि छे. अहो! मारी पर्यायनो संबंध तो मारा त्रिकाळी
द्रव्य–गुणनी साथे छे,–आम अंतरमां द्रव्य–गुण साथे पर्यायनी एकता थतां निर्मळ श्रद्धा ज्ञान–आनंदनी
उत्पत्ति थाय छे.
आत्मानी अवस्थामां श्रद्धा–ज्ञान–आनंद प्रगटे तेनो सबंध पोताना द्रव्य–गुण–स्वभाव साथे छे, पर
साथे तेनो सबंध नथी; त्रिकाळी द्रव्य–गुणने पामीने पर्यायो परिणमे छे, पण द्रव्य–गुणने छोडीने पर्याय
परिणमती नथी.
ए ज प्रमाणे जड–पुद्गलनी अवस्थामां जे स्पर्श–रस–गंध–रूप पलटे छे ते अवस्था पण ते जडना
द्रव्यगुण साथे ज संबंध राखीने पलटे छे, जीवना कारणे नहीं. जे पर्यायो पलटे छे ते पर्यायो पोताना ज द्रव्य–
गुण साथे संबंध धरावे छे, आम द्रव्य–गुण–पर्यायरूप पदार्थस्वभाव छे; आवा पदार्थ स्वभावनो निर्णय करतां
जीव पोते पोताना द्रव्य–गुणना आश्रये निर्मळपर्यायरूपे परिणमे छे. आ ज वीतरागी विज्ञाननुं फळ छे. पर
साथेनो संबंध तोडावीने पोताना द्रव्य–गुणस्वभावसाथे पर्यायनी एकता करावे छे–एवुं आ लोकोत्तर
पदार्थविज्ञान छे, एनुं फळ आनंद अने वीतरागता छे. सर्वज्ञभगवाने कहेलुं आवुं पदार्थनुं विज्ञान जीवे पूर्वे एक
सेकंड पण कर्युं नथी; जो पदार्थना आवा यथार्थ स्वभावने ओळखे तो वीतरागता ने मोक्ष थया विना रहे नहीं.