Atmadharma magazine - Ank 144
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 15 of 21

background image
: ३०४ : : आसो: २४८ :
आवी छे. दिव्यज्ञानी प्रभुता!
(श्र प्रवचनसर ग. ३९ न प्रवचनमथ; वर स. २४८१ वशख वद ४)
(१) आत्मानो ज्ञान ने आनंद स्वभाव छे, तेमांथी सम्यक् ज्ञान अने आनंदनी व्यक्त दशा
थवी तेनुं नाम धर्म छे.
(२) आत्मा स्वयंसिद्ध वस्तु अनादिअनंत छे, कोई तेनो बनावनार नथी; ते ज्ञान ने
आनंदस्वरूप स्वतःसिद्ध वस्तु छे. एकेक आत्मा स्वतंत्र पोताना स्वभावथी परिपूर्ण छे.
(३) आत्मा वस्तुपणे कायम टकीने तेनी अवस्था क्षणे क्षणे नवी नवी थया करे छे; एटले
कायम टकीने क्षणे क्षणे बदलवुं–एवो तेनो अनेकान्तस्वभाव छे.
(४) आत्मानो ज्ञानस्वभाव छे; द्रव्यमां शक्तिरूप सर्वज्ञस्वभाव त्रिकाळ छे, तेमांथी
पर्यायमां सर्वज्ञता प्रगटे ते केवळज्ञान छे. ते केवळज्ञानना दिव्यसामर्थ्यनुं आ वर्णन चाले छे.
(५) अरिहंत भगवंतोने केवळज्ञान साथे पूरो आनंद होय छे; भगवानना केवळज्ञानने
ओळखीने ‘नमो अरहंताणं’ करे तो ते साचा नमस्कार छे. अरिहंत भगवाननुं नाम ल्ये पण
भगवानना केवळज्ञानने ओळखे नहि तो तेणे अरिहंतने खरा नमस्कार कर्या नथी.
(६) केवळज्ञानना निर्णयमां ज्ञानस्वभावनो निर्णय छे; ज्ञानस्वभावनो निर्णय करीने ते
तरफ झूक्यो ते ज मोक्षमार्गनो पुरुषार्थ छे.
(७) हुं ज्ञान छुं, ज्ञान ज मारो परम स्वभाव छे–एवा निर्णय वगर कोना आधारे धर्म
करशे? ज्ञानस्वभावमां एकाग्रतारूप क्रिया ते ज धर्मनी क्रिया छे. ज्ञाननो ज जेने निर्णय नथी तेने
धर्मनी क्रिया होती नथी.
(८) एवी अखंडित प्रतापवंती ज्ञाननी संपदा छे के पोतानी प्रभुताना जोरथी एक साथे
बधा पदार्थोने पोताना ज्ञेय बनावी ल्ये छे. –दिव्यज्ञाननुं आवुं सामर्थ्य छे. जो एक साथे समस्त
ज्ञेयोने पहोंची वळवानुं ज्ञानमां सामर्थ्य न होय तो ए ज्ञानने ‘दिव्य’ कोण कहे?
(९) दिव्यज्ञाननी एवी प्रभुता खीली निकळी छे के आ जीवनी भविष्यनी मोक्ष पर्याय
अत्यारे थई न होवा छतां ते मोक्षपर्यायने पण ते दिव्यज्ञान वर्तमानमां प्रत्यक्ष जाणी ल्ये छे; ए
प्रमाणे त्रणेकाळना समस्त ज्ञेयोने प्रत्यक्ष जाणी ले छे.
(१०) आवा दिव्यज्ञान सामर्थ्यनो जेणे निर्णय कर्यो ते रागनो के अल्पज्ञतानो आदर न
करे, ज्ञानस्वभावनो ज आदर करे. –आ रीते तेने साधकभाव शरू थई जाय छे,–ते ‘सर्वज्ञनो नंदन’
थाय छे.
(११) दिव्य केवळज्ञानमां त्रणकाळनी समस्त पर्यायो एकसाथे अक्रमे जणाई जाय छे ए ज