Atmadharma magazine - Ank 145
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 10 of 21

background image
सम्यग्दर्शनादिक शुद्धभाव ते शिवपुरीनो पंथ छे; अने ते शिवपुरीनो पंथ
श्री जिनेन्द्रभगवंतोए ‘प्रयत्नसाध्य’ कह्यो छे. माटे तुं उद्यमवडे सम्यग्दर्शनादि
शुद्धभावोने जाणीने तेने अंगीकार कर.
श्री भावप्राभृत गा. ६ उपर पू. गुरुदेवना प्रवचनमांथी. वीर सं. २४८१ भादरवा वद १४
आत्माना परम आनंदस्वरूप जे मोक्षदशा, तेनो वास्तविक पंथ शुं छे ते जाण्याविना, अनादि काळथी
अज्ञानी जीव बाह्यसाधनने ज मोक्षनो मार्ग मानी रह्यो छे ने तेथी ते संसारमां रखडी रह्यो छे. मोक्षनुं कारण तो
‘भाव’ छे,–कयो भाव? आत्माना स्वभावनी सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान आचरणरूप शुद्धभाव ते ज मोक्षनो पंथ छे. तेथी
आचार्यभगवान आ ‘भावप्राभृतमां’ कहे छे के हे मोक्षपुरीना पथिक!–मोक्षने चाहवावाळा हे मुमुक्षु! प्रथम तुं
सम्यग्दर्शनादि शुद्धभावोने जाण; भाव वगरना एकला द्रव्यलिंगथी तारे शुं प्रयोजन छे?–एनाथी कांइ सिद्धि नथी.
सम्यग्दर्शनादि शुद्धभावोने ज मोक्षनुं कारण जाणीने तेनी प्राप्तिनो उद्यम कर; केमके श्री जिनेन्द्रभगवाने मोक्षपुरीनो
पंथ प्रयत्नसाध्य कह्यो छे.
आत्मानुं सम्यग्दर्शन शुं, सम्यज्ञान शुं, ने सम्यक्चारित्र शुं, ते शुद्धभावने तो जे ओळखतो नथी, अने
एकला बाह्य द्रव्यलिंगने (शरीरनी दिगंबर दशाने) तथा व्रतादिना शुभरागने ज मोक्षनुं कारण माने छे ते
मिथ्याद्रष्टि छे, तेने शिवपुरीना मार्गनी खबर नथी. तेने आचार्यदेव शिवपुरीनो मार्ग बतावे छे के हे भाई!
जिनेश्वरदेवे तो सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रने मोक्षनो मार्ग कह्यो छे, माटे प्रयत्नवडे पहेलां ते शुद्धभावोने जाण, अने
तेनी आराधनानो उद्यम करः–
जाणहि भावं पढमं किं ते लिंगेण भावरहिएण ।
पंथिय! सिवपुरिपंथ जिणउवइट्ठं पयत्तेण ।। ६।।
जानीहि भावं प्रथमं किं ते लिंगेन भावरहितेन ।
पथिक! शिवपुरीपंथाः जिनोपदिष्टः प्रयत्नेन ।। ६।।
आचार्यदेव प्रेमपूर्वक संबोधन करीने कहे छे के हे शिवपुरीना पथिक! हे मोक्षना अभिलाषी! मोक्षनो मार्ग
तो सम्यग्दर्शन आदि भावरूप छे, ते सम्यग्दर्शन आदि शुद्ध भावरूप मोक्षमार्ग प्रयत्नवडे सधाय छे एम भगवाने
उपदेश्युं छे. भगवाने पोते प्रयत्न वडे मोक्षमार्गने साध्यो छे ने उपदेशमां पण एम ज कह्युं छे के मोक्षनो मार्ग
प्रयत्नसाध्य छे. माटे ते सम्यग्दर्शनादि शुद्धभावोने ज मोक्षनो पंथ जाणीने सर्व उद्यमवडे तेने अंगीकार कर. हे
भाई! सम्यग्दर्शनादि भावथी रहित एवा द्रव्य–
कारतकः २४८२
ः ९ः