ते बधा सिद्धदशामां पण होय छे. सिद्धभगवानने कांई नयथी जोवानुं रह्युं नथी, तेमने कांई साधवानुं बाकी नथी,
अहीं तो साधकजीव पोते पोताना आत्माने प्रमाण अने नय वडे साधे छे तेनी वात छे.
व्याप्त अनंतधर्मोनुं अधिष्ठाता एक द्रव्य छे. ते श्रुतज्ञान प्रमाणपूर्वक स्वानुभव वडे जणाय छे. एटलुं कहीने पछी
४७ नयो द्वारा आत्मानुं स्वरूप समजाव्युं. शिष्यने आ वात समजवानी झंखना छे, एटले आ वात वेठथी नथी
सांभळतो पण अंतरमां आत्माने समजवानी धगशथी सांभळे छे, एवा शिष्यने आ समजाव्युं छे.
आत्मद्रव्यनुं कथन पूरुं करीने पछी तेनी प्राप्तिनी रीत कहेशे.
सुख तो पोताथी जुदी कोई पण वस्तुमां न होय.
बहारमां कयांय तारुं सुख नथी, तारुं सुख तारामां ज
भर्युं छे; ते सुखना अनुभव माटे तारा
वास्तविकस्वरूपने तुं ओळख.
कोई पण संयोगोना भयथी तेओ सम्यक्त्वथी च्युत
थता ज नथी, जे स्वरूपना अवलंबने सम्यक्त्व थयुं छे
ते स्वरूपना अवलंबने पोताना सम्यक्त्वमां ते निःशंक
अने निर्भयपणे परिणमे छे. माटे सम्यग्द्रष्टि निःशंक
अने निर्भय छे.