Atmadharma magazine - Ank 146
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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छूटकारो पामता जीवनी परिणति
[आत्म–उल्लासी संतोने नमस्कार]
वैशाख सुद बीजे रात्रिचर्चामां पू. गुरुदेवे आत्माना छूटकारानी उल्लासभरी वार्ता
कीधीः अहो! जे आत्मा छूटकाराना मार्गे चडयो तेना परिणाम उल्लासरूपे होय छे....ने तेने
छूटकाराना ज विकल्पो आवे छे....स्वप्नां पण एनां आवे. छूटकाराना प्रसंग प्रत्ये ज तेनुं
वलण जाय....तेना विकल्पमां निमित्तपणे पण छूटकाराना ज निमित्तो होय. छूटेला देव,
छूटकारो पामता गुरु अने छूटवानुं बतावनारा शास्त्रो,–एवा छूटकाराना निमित्तो प्रत्ये ज
तेना विकल्पो ऊठे......तेमांय छूटकारानुं साधन तो निजस्वरूपनुं अवलंबन छे, ने देव–
गुरु–शास्त्र पण ए ज करवानुं बतावे छे, एटले ते स्वरूप–साधननी प्रधानता छूटती नथी.
–आवी छूटकारो पामता जीवनी परिणति होय छे. छूटकाराना मार्गथी विरुद्ध विकल्पो ऊठता
नथी.
अहो! खेतरना काममां बंधनथी छूटीने पोताना घरे पाछा फरतां बळद पण
उमंगभेर दोडता दोडता घरे आवे छे, दोरडांना बंधनथी छूटवानो प्रसंग आवतां नानुं
वाछरडुं पण हर्षथी कुदाकुद करी मूके छे. तो पछी अनादिना भवबंधनथी छूटकारानो अपूर्व
प्रसंग आवतां कया मोक्षार्थीनी परिणति आनंदथी उल्लसित न बने! ! छूटकारानो मार्ग
साधता जीवना परिणाम जरूर उल्लासरूप होय छे. अने उल्लसित वीर्यवाळो जीव ज
छूटकारानो मार्ग पामे छे.