‘शुद्धकारण’
ना आश्रये थतुं सादि–अनंत मंगळरूप कार्य
(नियमसार गा. १० उपरना प्रवचनः आत्मधर्म अंक १४३ थी चालु)
‘कारण’ तो सदाय शुद्धपणे वर्ते छे, पण ते कारणनुं अवलंबन लईने ज्यां
शुद्ध कार्य थयुं त्यां खबर पडी के अहो मारुं कारण तो आ छे! ‘कारण’ नुं
अवलंबन लेनार जाग्यो–एटले के कार्य थयुं–त्यारे कारणना महिमानी खबर पडी,
अने तेने कारण साथे कार्यनी अपूर्व संधि थई.
आ आत्माना हितनी अमृत जेवी मीठी वात छे.
हे जीव! तारा धर्मनुं कारण तो तारामां सदाय विद्यमान छे पण तुं तेने
कारण नथी बनावतो.....कारणमां अंतर्मुख थईने कार्य प्रगट करे त्यारे एम थाय
के अहो! आ मारा कार्यनुं कारण! कार्यनुं कारण बीजुं कोई नथी. कारणना
अवलंबने निर्मळकार्य प्रगटे त्यारे ज कारणनुं कारणपणुं सफळ थाय छे.
–पू. गुरुदेव.
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जुओ, एक बीजी वात! जे सिद्धपर्याय जगतमां सामान्यपणे अनादिअनंत छे, साधकपर्याय पण जगतमां
अनादिअनंत छे ने संसारपर्याय पण जगतमां अनादिअनंत छे, तेम कारणशुद्धपर्याय एकेक जीवने सद्रशपणे
अनादिअनंत छे, जीवने तेनो कदी विरह नथी. सिद्धदशा सामान्यपणे जगतमां अनादिअनंत होवा छतां एक
जीवनी अपेक्षाए ते नवी प्रगटे छे, तेम आ कारणशुद्धपर्याय कांई नवी प्रगटती नथी, तेनुं भान करनार जीवने
सम्यग्दर्शनादि कार्य नवुं प्रगटे छे.
(१) जेम सिद्धपर्याय सामान्यपणे जगतमां अनादिअनंत छे, जगतमां पहेलां सिद्धदशा न हती ने
पहेलवहेली नवी शरू थई–एम कदी नथी. एक जीवनी अपेक्षाए सिद्धदशा नवी शरू थाय छे तेथी सादि–अनंत छे.
पण जगतमां कांई सिद्धदशानी नवी शरूआत थई नथी. ‘पहेला सिद्ध कोण?’–तेनो उत्तर ए छे के जगतमां सिद्ध
अनादिथी ज छे. एटले सामान्यपणे सिद्धपर्याय जगतमां अनादि अनंत छे.
(२) जेम सिद्धपर्याय जगतमां अनादि अनंत छे तेम तेना साधनरूप मोक्षमार्ग पण जगतमां अनादि–
अनंत छे. एक व्यक्तिनी अपेक्षाए जुओ तो मोक्षमार्गनी शरूआत नवी थाय छे ने तेनो अंत पण आवी जाय छे
एटले ते सादि–सांत छे, पण जगतमां तो मोक्षमार्ग