कहेतां मोक्षमार्गरूपी कार्य, तेनुं साक्षात्–सीधुं–नजीकनुं कारण कोण ते अहीं बताववुं छे.
जगतमां सौथी पहेलां मोक्ष क्यो जीव पाम्यो?
– मोक्ष अनादिथी ज जगतमां छे.
सौथी पहेलां मोक्षमार्ग कोणे साध्यो?
– मोक्षमार्ग जगतमांअनादिथी ज छे.
संसारमां सौथी पहेलो भव क्यो?
– संसार अनादिथी ज छे.
जेम ए त्रणे प्रकार सामान्यपणे अनादिअनंत छे, तेम द्रव्य–गुणनी त्रिकाळी शक्ति साथे तेना
सद्रशवर्तमानरूप कारणशुद्धपरिणति पण अनादिअनंत सामान्यरूप छे; जेम उपरना त्रण बोल (मोक्ष, मोक्षमार्ग,
संसार) सामान्य लीधा, तेम अहीं द्रव्य गुण अने तेनी कारणशुद्धपरिणति ए त्रणे अभेदपणे अनादिअनंत
सामान्य एकरूप छे. आमां फेर एटलो छे के उपरना त्रण बोल तो जगतमां सामान्यपणे छे, ने आ त्रण बोल तो
एकेक जीवमां सामान्यपणे अनादिअनंत छे. संसार–मोक्षमार्ग के मोक्ष ए विशेष पर्यायो छे.
त्रिकाळी द्रव्य–गुण ते सामान्यधु्रव, ने तेनुं सद्रशरूप वर्तमान ते विशेषधु्रव; आवा द्रव्य–गुण ने तेनुं
सद्रशवर्तमान–ए त्रणे अभेदपणे द्रव्यार्थिकनयनो विषय छे, ते सामान्य छे, दरेक जीवने अनादिअनंत पारिणामिक
स्वभावे वर्ते छे. जगतमां एवो कोई जीव नथी के जेने शुद्ध द्रव्य–गुण अने तेनी धु्रवकारणरूप सद्रशपरिणति न होय.
केवळज्ञान जगतमां क्यारे नथी?–अनादिअनंत छे. अने ते केवळज्ञाननुं ‘कारण’ दरेक जीवमां
अनादिअनंत छे, तेने अहीं कारणस्वभाव ज्ञानउपयोग कहीने वर्णवेल छे.
ज्ञानउपयोगना बे प्रकार कह्या– एक स्वभावरूप अने बीजो विभावरूप.
कुमति वगेरे एकांत विभावज्ञान जगतमां अनादिअनंत छे.
सम्यक्मतिश्रुत वगेरे ज्ञान पण जगतमां अनादिअनंत छे.
केवळज्ञान ते स्वभावज्ञान छे ते पण जगतमां अनादिअनंत छे.
केवळज्ञानना कारणरूप स्वभावज्ञान पण अनादिअनंत छे.
जेम–‘परमार्थवचनिका’ मां कह्युं हतुं के विकारनी परंपरारूप आगमपद्धति, अने शुद्धचेतनापरिणतिनी
परंपरारूप अध्यात्मपद्धति, ए बंने धारा जीवमां अनादिथी चाली आवे छे, तेमांथी शुद्धतानी धाराने
(कारणशुद्धपर्यायने) कारण तरीके स्वीकारतां मोक्षमार्ग शरू थई जाय छे ते आगम–पद्धति छूटती जाय छे.
तेम–अहीं कहे छे के आत्मामां कारणरूप स्वभावज्ञान अनादिथी चाल्युं आवे छे, ने विभावज्ञान पण
अनादिनुं वर्ते छे. तेमांथी स्वभावज्ञानने कारणपणे स्वीकारीने ज्यां तेनुं अवलंबन लीधुं त्यां केवळज्ञान खीली जाय
छे ने विभावज्ञान छूटी जाय छे. ‘कारण स्वभावज्ञान’ कहीने केवळज्ञाननो आधार बताव्यो छे. कारणस्वभावज्ञान
बधा जीवोने अनादिअनंत छे, पण ते कारण तरफ पोतानो उपयोग वाळीने एकाग्र थाय त्यारे ज तेनुं कार्य प्रगटे
छे, अने ते जीवने ज कारणनो खरो महिमा समजाय छे.
म...ह...त्व...नुं
‘कारणशुद्धपरिणति’ कहेतां तेमां त्रिकाळी गुण ने द्रव्य अभेद ज छे, ए बधानुं भेगुं ज आलंबन छे. आ
अभेदना अवलंबने ज सम्यग्दर्शनथी शरू करीने सिद्धदशा सुधीना निर्मळ भावो प्रगटे छे. ‘कारण’ तो त्रिकाळ
शुद्धपणे वर्ते ज छे, पण तेने कारण बनावनारुं कार्य वर्तमान नवुं थाय छे. ‘कारण’ ने कारणपणे स्वीकार्युं कोणे?
स्वीकारनार तो कार्य छे, अने ते ज मोक्षमार्ग छे. आ मोक्षमार्गरूपी कार्य सामान्यपणे जगतमां अनादिअनंत होवा
छतां, व्यक्तिगतपणे ते कार्य नवुं थाय छे. ‘कारण’ दरेक जीवमां अनादिअनंत छे पण ते कारणने अंगीकार करीने
कार्य नवुं थाय छे, कारणने कारण बनावनारुं कार्य नवुं थाय छे. कारणने कारण तरीके स्वीकारतां शुद्धकार्य थाय छे.
ज्यां आवुं अपूर्व कार्य थयुं त्यां कारणनुं भान नवुं प्रगटयुं, त्यां खबर पडी के ओहो! मारामां आवुं कारण तो
पहेलां पण हतुं पण मने तेनुं भान न हतुं तेथी कार्य न प्रगटयुं.
जुओ आ घणी सरस ने मूळभूत वात छे, अमृत जेवी मीठी वात छे. आत्मामां मोक्षमार्गरूपी कार्य केम
थाय तेनी आ वात छे.
द्रव्य–गुण अने तेनी कारणशुद्धपरिणति ए बधुं अभेद छे. ते अभेद साथे अभेदता करनारुं कार्य जागे त्यारे
तेने कारणनो ख्याल आवे छे. ख्याल न हतो त्यारे पण तेने ‘कारण’ तो पडयुं ज हतुं पण ते कारणने कारण
मागसरः २४८२
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