Atmadharma magazine - Ank 146
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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नथी. कारण तो छे, पण तेने कारण बनावनार तो कार्य छे. कारणमां अंतर्मुख थईने कार्य प्रगट करे त्यारे एम थाय
के ‘अहो! आ मारा कार्यनुं कारण!’ कार्यनुं कारण बीजुं कोई नथी, आ ज कारण छे, आ कारणनुं अवलंबन ल्ये
त्यारे निर्मळ कार्य प्रगटे छे, अने त्यारे ज कारणनुं कारणपणुं सफळ थाय छे.
जुओ, आ कारण साथे कार्यनो मेळ!! पोतानी वर्तमान पर्यायने अभेदकारण साथे भेळवीने आ वात छे.
एकदम अंतरनुं कारण बतावीने, बाह्यकारणोनी द्रष्टि छोडावी छे, ने अंर्तस्वभावनुं अवलंबन कराव्युं छे.
* निमित्तकारणोना आश्रयथी कार्य थाय–ए वात तो दूर गई.
* रागादि व्यवहार कारणोना आश्रयथी कार्य थाय–ए वात पण काढी नांखी.
* पर्यायना अवलंबनथी निर्मळ पर्यायरूप कार्य थाय–एम पण नथी.
* भगवान कारण परमात्मा पोतानी कारणशुद्धपरिणति सहित वर्ती रह्यो छे, ते ज एक कारण छे.
आ रीते अभेद स्वभावने ज कारणपणे बतावीने तेनुं अवलंबन कराव्युं छे, ने निमित्तनुं रागनुं के
पर्यायनुं–त्रणेनुं अवलंबन छोडाव्युं छे. आ एक वात समजे तो बाह्य कारणना बधा झगडानुं समाधान थई जाय,
एटले बाह्यकारणोनी द्रष्टि छूटीने अंर्तस्वभावनी द्रष्टि थया वगर रहे नहि. आवी अपूर्वद्रष्टि प्रगट करनार जीवने
बाह्यकारण तरीके केवां निमित्त होय ते वात पछी प३ मी गाथामां जणावशे. त्यां निमित्त बताववामां पण अलौकिक
वर्णन करशे. टीकाकारनी ढब ज कोई अद्भुत छे!
आ परमागमना अर्थो अमे अमारी कल्पनाथी नथी कहेता, गणधरो अने श्रुतधरोनी परंपराथी सारी रीते
व्यक्त करायेला अर्थो अमने गुरुपरंपराथी मळेला छे–एम कहीने टीकाकारे आ टीका रची छे. एटले आ टीकामां कहेला
अर्थो गणधरादि गुरुपरंपराथी सारी रीते प्रगट करायेला छे, श्रीगुरुओना प्रसादथी अमने आ अर्थो मळ्‌या छे.
वळी हमणां आ परमागमना सार प्रत्येनी पुष्टरुचिथी अमारुं मन फरी फरीने अत्यंत प्रेरित थाय छे, ‘आ
ठेकाणे आवो उपयोग, ने आ ठेकाणे आवी कारणपरिणति’........एम आ परमागमना अर्थो अमारा हृदयमां फरी
फरीने घूंटाय छे, तेथी आ टीका रचाय छे,–आम कहीने टीकामां अलौकिक भावो खोल्यां छे. कुंदकुंदभगवाने मूळ
सूत्रोमां अपूर्व रहस्य भरी दीधुं छे ने अध्यात्ममां मस्त महामुनि पद्मप्रभदेवे टीकामां ते एकदम स्पष्ट कर्युं छे,
अपूर्व आत्मस्वभाव बताव्यो छे.
एकेक आत्मानो परिपूर्ण स्वभाव छे ते घणी स्पष्टताथी अहीं बताव्यो छे. जेम दरियामां पाणीनुं दळ,
एनी शीतळता अने ते दळनी एक सरखी सपाटी–ए त्रणेथी दरियो एम ने एम पडयो–पाथर्यो छे, तेमांथी
नाना–मोटा तरंगो ऊठे छे; तेम आ आत्मा चैतन्यनो दरियो......आनंदनो समुद्र छे, ते द्रव्य–गुण अने
कारणशुद्धपरिणतिथी एम ने एम पडयो–पाथर्यो....वर्तमान–वर्तमानपणे वर्ते छे, ते ज निर्मळ पर्यायो प्रगटवानुं
कारण छे. निर्मळ पर्यायरूपी कलोलनो आधार तो आखो दरियो छे.
जेम लींडीपीपरमां चोसठपोरी (–सोळ आना परिपूर्ण) तीखास भरी छे; अने तेनो स्वभाव वर्तमानमां
पण वर्ती ज रह्यो छे,–प्रगटमां भले ओछी तीखास हो के वधारे हो; तेम आत्मामां तीखो....उग्र.....परिपूर्ण
ज्ञानस्वभाव छे, –
द्रव्य सोळ आना परिपूर्ण
गुण सोळ आना परिपूर्ण
कारणशुद्धपरिणति सोळ आना परिपूर्ण,
ए रीते आत्मानो परिपूर्ण स्वभाव छे, वर्तमानमां पण आवो ज स्वभाव छे. आ स्वभाव–कारणमांथी
मोक्षमार्ग अने मोक्षरूपी कार्य थाय छे. द्रव्य–गुण ते सामान्य धु्रव, ने तेनी साथेनी कारणशुद्धपरिणति ते विशेष धु्रव
एनुं वर्णन करीने अहीं एकदम नजीकनुं सीधुं कारण बताव्युं छे; कार्यनी साथेनुं हाजराहजूर कारण बताव्युं छे. कार्य
जे केवळज्ञान, तेना कारणपणे वर्तमान वर्ततो सर्वथा निर्मळ अप्रगट कारणस्वभाव–ज्ञानउपयोग
मागसरः २४८२
ः २पः