के ‘अहो! आ मारा कार्यनुं कारण!’ कार्यनुं कारण बीजुं कोई नथी, आ ज कारण छे, आ कारणनुं अवलंबन ल्ये
त्यारे निर्मळ कार्य प्रगटे छे, अने त्यारे ज कारणनुं कारणपणुं सफळ थाय छे.
* रागादि व्यवहार कारणोना आश्रयथी कार्य थाय–ए वात पण काढी नांखी.
* पर्यायना अवलंबनथी निर्मळ पर्यायरूप कार्य थाय–एम पण नथी.
* भगवान कारण परमात्मा पोतानी कारणशुद्धपरिणति सहित वर्ती रह्यो छे, ते ज एक कारण छे.
एटले बाह्यकारणोनी द्रष्टि छूटीने अंर्तस्वभावनी द्रष्टि थया वगर रहे नहि. आवी अपूर्वद्रष्टि प्रगट करनार जीवने
बाह्यकारण तरीके केवां निमित्त होय ते वात पछी प३ मी गाथामां जणावशे. त्यां निमित्त बताववामां पण अलौकिक
वर्णन करशे. टीकाकारनी ढब ज कोई अद्भुत छे!
अर्थो गणधरादि गुरुपरंपराथी सारी रीते प्रगट करायेला छे, श्रीगुरुओना प्रसादथी अमने आ अर्थो मळ्या छे.
फरीने घूंटाय छे, तेथी आ टीका रचाय छे,–आम कहीने टीकामां अलौकिक भावो खोल्यां छे. कुंदकुंदभगवाने मूळ
सूत्रोमां अपूर्व रहस्य भरी दीधुं छे ने अध्यात्ममां मस्त महामुनि पद्मप्रभदेवे टीकामां ते एकदम स्पष्ट कर्युं छे,
अपूर्व आत्मस्वभाव बताव्यो छे.
नाना–मोटा तरंगो ऊठे छे; तेम आ आत्मा चैतन्यनो दरियो......आनंदनो समुद्र छे, ते द्रव्य–गुण अने
कारणशुद्धपरिणतिथी एम ने एम पडयो–पाथर्यो....वर्तमान–वर्तमानपणे वर्ते छे, ते ज निर्मळ पर्यायो प्रगटवानुं
कारण छे. निर्मळ पर्यायरूपी कलोलनो आधार तो आखो दरियो छे.
ज्ञानस्वभाव छे, –
गुण सोळ आना परिपूर्ण
कारणशुद्धपरिणति सोळ आना परिपूर्ण,
एनुं वर्णन करीने अहीं एकदम नजीकनुं सीधुं कारण बताव्युं छे; कार्यनी साथेनुं हाजराहजूर कारण बताव्युं छे. कार्य
जे केवळज्ञान, तेना कारणपणे वर्तमान वर्ततो सर्वथा निर्मळ अप्रगट कारणस्वभाव–ज्ञानउपयोग
मागसरः २४८२